सादगी और राजनीतिक सक्रियता का नाम है जमुना प्रसाद बोस

-उमाशंकर पांडेय

बांदा से 4 बार विधायक , तीन बार कैबिनेट  मंत्री रहे  94 वर्षीय  जमुना प्रसाद बोस के पास आज भी अपना मकान नहीं है। आज के दौर में  लोहिया, जेपी, विनोबा, गांधी के संयुक्त रूप को देखना है तो बुंदेलखंड के गांधी सच्चे समाजवादी  जमुना प्रसाद बोस जी की  यह  संक्षिप्त जीवन यात्रा को पठनीय है। त्याग, सादगी जनसेवा, राष्ट्रभक्ति, लोकप्रियता, राजनेता, सच्चे पत्रकार के बारे में जानना चाहते हो तो बोस जी से मिले। 1950 के दौर के इस पत्रकार ने  4 चार मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया।   उत्तर प्रदेश सरकार के बड़े-बड़े मंत्रालय के मंत्री रहे बोस जी के पास आज भी मात्र 2 जोड़ी कपड़े हैं किराए के मकान में रहते हैं दो कमरों के, चार चुनाव जीते बांदा सदर से मोटरसाइकिल साइकिल से प्रचार किया।


25 अक्टूबर 1925 को बांदा में जन्मे 13 वर्ष की उम्र में कक्षा 6 के विद्यार्थी होते हुए भी कानपुर के तिलक हाल में 1937 में देश की आजादी के लिए पंडित नेहरू की बहुत महत्वपूर्ण बैठक में हिस्सा लिया।  शायद विश्वास ना हो, जी हां महापुरुष विलक्षण होते हैं माननीय राम मनोहर लोहिया के प्रिय, माननीय लाल बहादुर शास्त्री जी के निकट, सर्वोदय आचार्य विनोवा भावे के जीवन दानी स्वाधीनता संग्राम सेनानी बोस जी का नाम बोस कैसे पड़ा उस जमाने में डीएवी कॉलेज आठवीं तक चलता था। बांदा की राजकीय हाई स्कूल में प्राइवेट स्कूल के छात्रों को अंग्रेजी जमाने में प्रवेश नहीं मिलता था। बोस जी 9वी में प्राइवेट पढ़ते थे प्राइवेट हाई स्कूल की परीक्षा बीएचयू बनारस में होती थी। तत्कालीन समय महात्मा गांधी के प्रिय पट्टा रमैया कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हार गए थे। नेता सुभाष चंद्र बोस जी का नाम बहुत बड़ा हो गया था गांधी जी ने व्यक्तिगत अपनी पराजय मानी थी बोस जी से प्रेरणा लेकर देश की आजादी के लिए बांदा में उस समय कक्षा नौ के छात्र होते हुए विद्यार्थी कांग्रेस की स्थापना की 100 छात्रों को साथ लेकर उन छात्रों ने उसी दिन बाबू जमुना प्रसाद जी को बांदा के बोस की उपाधि थी। 
उस दिन से उपनाम बोस हो गया बंगाल में अकाल के दौरान सब जगह से खाने के लिए गल्ला  मांगा जा रहा था। अंग्रेजी शासन में जिलाधिकारी जबरदस्ती घरों में घुसकर जो गल्ला नहीं देता था उसको मारते थे। ऐसी ही घटना बांदा के गांव में हुई तत्कालीन जिलाधिकारी ने सीबी राव ने एक व्यक्ति को पेशाब पिलाई सबके सामने जिसकी शिकायत तत्कालीन अंतरिम सरकार के उत्तर प्रदेश के संयुक्त प्रधानमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत से की गई थी। पंथ जी ने अपने संसदीय सचिव श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को जांच के लिए बांदा भेजा बोस जी के साथ।  यह घटना सही निकली जिलाधिकारी को हटाया गया। बोस जी 1942 तथा 1946 में जेल गए अंग्रेजी सरकार ने डी आई आर के अंतर्गत जेल भेजा स्वतंत्रता का सिपाही देश को आजाद करये बगैर रुकने वाला कहा था। 19 अक्टूबर 1946 में मेरठ के कांग्रेस संगठन बैठक में भाग लिया तथा 1947 में कानपुर की कांग्रेस पार्टी की बैठक में भाग लिया जब संगठनों और पार्टी अलग थी। 
देश के पूर्व प्रधानमंत्री माननीय लाल बहादुर शास्त्री जी बोस जी को बोस महाराज कहकर बुलाया करते थे। बोस जी के प्रयास से बुंदेलखंड के प्रसिद्ध व्यक्तियों के बीच जयप्रकाश नारायण जी, विनोबा जी का मिलन हुआ। जयप्रकाश जी ने विनोबा जी के भूदान आंदोलन के लिए जीवनदान दिया यह ऐतिहासिक घटना है। भारत आजाद होने के बाद गोवा आजाद नहीं था पुर्तगाल के कब्जे में था बोस जी ने गोवा को आजाद कराने के लिए लंबा संघर्ष किया संघर्ष किया इमरजेंसी की मीसाबंदी में 19 महीने नैनी जेल में बिताए उनके साथ  मुरली मनोहर जोशी, जनेश्वर मिश्र, राम नरेश यादव, राजनाथ सिंह राम प्रकाश गुप्त साथ थे इनमें से मात्र माननीय जमुना प्रसाद बोस जी की एकमात्र विधायक थे बांदा से। 
 बाद में उनके 3 साथी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुए श्री राम नरेश यादव, श्री राम प्रकाश गुप्त, श्री राजनाथ सिंह तथा 2 साथी केंद्र में वरिष्ठ मंत्री हुए श्री मुरली मनोहर जोशी, श्री जनेश्वर मिश्र वर्तमान में श्री राजनाथ सिंह जी गृहमंत्री हैं। बुंदेलखंड के बांदा की धरती में  राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, राज नारायण,  मधु लिमए,मधु दंडवते,  जॉर्ज फर्नाडीज, आचार्य नरेंद्र देव,  लाल बहादुर शास्त्री जी की सभा कराई जो आज स्वप्न है। उसे साकार किया, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री माननीय चंद्रशेखर जी तथा माननीय मुलायम सिंह जी के निकट संबंध होते हुए भी उसी प्रकार जोशी जी से निकट की दोस्ती थी। समाजवादी होते हुए भी दल से नहीं, दिल से दोस्ती थी। 
सर्वप्रथम 1974 में विधायक, फिर 1977 फिर, 1985 फिर ,1989 तथा उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राम नरेश यादव जी तथा बाबू बनारसी दास तथा मुलायम सिंह जी के मंत्रिमंडल में कई विभागों के वरिष्ठ मंत्री रहे।
1 दर्जन से अधिक मंत्रालय उनके अधीन रहे पूर्व प्रधानमंत्री शेखर जी जिस प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के मंत्री थे उस प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बोस जी संयुक्त मंत्री थे अध्यक्ष पद होता ही नहीं था। बोस जी की निष्ठा और योग्यता का परिचय हो सकता है, इतना कहना पर्याप्त है बोस जी ने अपने कार्यकाल के दौरान बांदा जिले के प्रत्येक गांव में सड़क, जल संरक्षण के लिए हर गांव में तालाब खुदवाये थे जो आज भी मौजूद है। चित्रकूट में राष्ट्रीय रामायण मेला के स्थापना में लोहिया जी के साथ बड़ा योगदान रहा है, जो कि वर्तमान में भी आप संरक्षक हैं। 
पत्रकारिता के क्षेत्र में 1950 में अंग्रेजी समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड, हिंदी नवजीवन देश की तत्कालीन सबसे बड़ी न्यूज़ एजेंसी पीटीआई, इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान समाचार पत्र जैसे बड़े उस जमाने के समाचार पत्रों में अपनी शर्तों पर पत्रकारिता की मिशन के रूप में, 1977 तक समाजवादी होते हुए भी नेशनल नवजीवन में पत्रकारिता करना अपने आप में अलग है। बोस जी ने बताया कि जब मैं कलम चलाता था तब मैं केवल पत्रकार होता था, पत्रकारिता तब मिशन थी पत्रकारों का बहुत सम्मान था, मेरी लेखनी की वजह से पीटीआई जैसी एजेंसी ने मुझे पूरे प्रदेश में कहीं से भी खबर लिखने की अनुमति दी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभान गुप्ता जी ने पीटीआई के लिए लिखने के लिए कहा तो श्री वियोगी जी ने हिंदुस्तान अखबार में पत्रकारिता के लिए प्रेरित किया मेरे संपादक तत्कालीन के.रामा राव जिन्होंने तत्कालीन समय में 20 अखबारों से त्याग पत्र दिए थे जिनका इंटरव्यू पंडित नेहरू, गोविंद बल्लभ पंत, आचार्य नरेंद्र देव किदवई, जी ने लिया था उनके साथ मुझे काम करने का मौका मिला है। पत्रकारिता मे उनके बेटे के विक्रम राव देश के बड़े पत्रकार हैं, तब शासन की मान्यता पत्रकारों की सरकार की नहीं संपादक के हाथ में होती थी। 
कलम के धनी व्यक्ति को पत्रकार माना जाता था, सिफारिश  जुगाड़ वाले पत्रकार नहीं बनते थे।अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों का गठजोड़ होते हुए भी पत्रकार से भयभीत रहते थे उस समय सरकार पत्रकार की पूरी सुरक्षा करती थी हर लिखी खबर की जांच होती थी। जमुना प्रसाद बोस ने कहा कि कहा कि मैं बांदा की जनता का ऋणी हूं जिसने मुझे चार बार विधायक बनाया मेरी जात का आधा प्रतिशत बोट इस विधानसभा में नहीं है शायद आने वाले समय में चार बार विधायक बनना किसी भी जनप्रतिनिधि के लिए कठिन होगा। मेरी मां ने मेरी फीस के लिए अपने जेवर बेच दिए थे पिता ने बहन की शादी में मकान बेच दिया था, मैं अपने बड़े भाई का बहुत आभारी हूं जिन्होंने मेरा मेरे परिवार का पालन पोषण किया मैंने जब देश की आजादी के लिए अपने को समर्पित किया था उसी दिन संकल्प कर लिया था कि मैं बगैर मकान, बगैर गाड़ी बगैर साधन के पत्रकारिता, समाज सेवा राजनीति करूंगा, लेकिन ना भ्रष्टाचार करूंगा, न करने दूंगा आज भी मेरे संकल्प में भगवान मेरा साथ दे रहा है।इमानदारी व्रत कठिन है लेकिन बड़ा आनंद है आज मेरे पास अपना रहने के लिए मकान नहीं है, गाड़ी नहीं है, सुविधाएं नहीं है, लेकिन मेरे पास मेरा आत्मबल है, स्वाभिमान है। 

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