लोक उत्सओं की भूमिका पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी

लोकनायक जयप्रकाश अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विकास केंद्र के तत्वाधान में, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सौजन्य से, भारतीय संस्कृति के विभिन्न परम्पराओं और प्रथाओं की जागरूकता में लोक कला और लोक उत्सओं की भूमिका पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ | इस संगोष्ठी में कला, लोक कला, प्रशासन, सामाजिक  और राजनितिक क्षेत्रों के अनेक विद्वानों और प्रखर वक्ताओं ने शिरकत की | संगोष्ठी में लोक कला और भारतीय संस्कृति के अनेक पहलुओं पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने लोक कला की प्रासंगिकता, विकास और मौजुदा दौर में उपस्थित अनेक चुनौतियों को बेहद सार्थक तरीके से रेखांकित किया | संगोष्ठी का प्रारम्भ जयप्रकश नारायण को सदर पुष्पांजली देते हुए दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ | लोकनायक जयप्रकाश अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विकास केंद्र के राष्ट्रीय महासचिव श्री अभय सिन्हा ने विशिष्ट अतिथियों का सम्मान करते हुए अपने केंद्र के वर्तमान और आगामी सांस्कृतिक पहलों के बारे में विस्तार से बताया | उन्होंने जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति की दृष्टि के महत्त्व को समझाते हुए व्यक्ति और समाज के सर्वांगीण विकास में सांस्कृतिक विरासत और पहलों पर बल दिया | केंद्र के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री ब्रजकिशोर त्रिपाठी ने भी संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रायोजित इस संगोष्ठी की प्रासंगिकता का हार्दिक स्वागत किया और संस्था द्वारा किये गए अन्य सार्थक प्रयासों की सराहना भी की | 
प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना कमल नलनी ने लोक कला और कला में संगीत और नृत्य के योगदान पर विशेष बोलते हुए कला के आंतरिक सौंदर्य और आध्यात्मिक पक्ष को बेहद खूबसूरती से अभिव्यक्त किया | एन.डी. एम. सी की वर्तमान सचिव और प्रशासक श्रीमती रश्मि सिंह ने लोक कला के व्याहारिक पक्ष पर बोलते हुए इस बात पर बल दिया की देश के विभिन्न भागों और ग्राम्य अंचलों में कार्यरत लोक कलाकार को संसाधन युक्त कर उनके कला के विभिन्न रूपों को वर्त्तमान कला बाजार के मानकों से कैसे जोड़ा जा सकता है जिससे उन्हें एक आर्थिक स्वावलम्बन के साथ साथ एक उचित सम्मान भी मिल सके | स्वराज खबर के संस्थापक और चर्चित चिंतक बाबा विजयेंद्र ने लोक कला की प्रासंगिकता को जोरदार तरीके से रेखांकित किया लेकिन साथ ही वर्तमान सामाजिक और राजनितिक तंत्र के उचित कार्यान्वयन के अभाव के कारण सांस्कृतिक चुनौतियों को समझने और उससे साथ मिलकर लड़ने की बात कही ताकि मौजूदा समय में लोक कला और कलाकार की अस्मिता को बचाया जा सके | चित्रकार और कला चिंतक अरविन्द ओझा ने लोक कला पर विस्तार से चर्च करते हुए सारी कलाओं के उदगम को लोक कलाओं के अनिवार्य महत्व से जोड़ा | उन्होंने वर्तमान कला के दोहरे मापदंडों की बात की और लोक कला के संरक्षण, संवर्धन और प्रासंगिकता पर विशेष जोर देते हुए कहा की लोक कलाएं ही संस्कृति का प्राथमिक और अंतिम बिंदु है | प्रसिद्ध संस्कृति कर्मी और पूर्व प्रशासक श्री डी. पी. सिन्हा  ने अपने सार्थक और महत्वपूर्ण विचार रखे और कला और लोक कलाओं की अनेक परम्पराओं और प्रथाओं में अभिव्यक्त कला मूल्यों और कला दृष्टि की बात की | इसी क्रम में खुशी ग्राम संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष श्री अजित कुमार ने भी लोक कला की वर्तमान स्थितियों पर चिंता जतायी और एक नए सांस्कृतिक अभियान की दिशा में पहल करने की जोरदार वकालत की | 

इस संगोष्ठी में सम्मिलित अन्य वक्ताओं ने भी अपने प्रखर विचार रखे जिनमें महत्वपूर्ण है दिल्ली दूरदर्शन के वरिष्ठ पत्रकार श्री सुधांशु रंजन, शिक्षाविद और संस्कृति कर्मी श्रीमती डॉ अंजू महरोत्रा, एडवोकेट और संस्कृति कर्मी श्रीमती सोनाली साह तथा प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ भगवान सिंह | विशिष्ठ अतिथियों में प्रसिद्ध कथक गुरु श्री जीतेन्द्र जी महाराज भी उपस्थित थे |  

अंत में केंद्र के राष्ट्रीय महासचिव अभय सिन्हा ने सबको धन्यवाद अर्पित किया और सारे विशिष्ट अतिथिगणों को पुष्प और चादर से सम्मानित भी किया | संगोष्ठी का बेहतरीन का संचालन कवित्री श्रीमती बबीता गर्ग ने किया |  इस आयोजन का समापन गुरुकुल कथक कला केंद्र द्वारा एक सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति के साथ संपन्न हुआ  | 

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