पार्टी लालू के साथ रहेगी : राहुल

न्यूज़ गेटवे / बिहार कांग्रेस / नई दिल्ली / 

जिस लालू के मुद्दे पर राहुल गांधी ने कभी अपनी ही सरकार का अध्यादेश फाड़ दिया था, वही राहुल भाजपा के ख़िलाफ संघर्ष में लालू का साथ नहीं छोड़ना चाहते।

बिहार कांग्रेस में टूट की आश्‍ांका के बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी दो दिनों तक विधायकों से लगातार मिले। राहुल ने बुधवार व गुरुवार को 21 विधायकों व दो विधान पार्षदों से मुलाकात की। इससे पार्टी पर छाया विभाजन का संकट फिलहाल टल गया। लेकिन, राहुल गांधी ने नाराज विधायकों की राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़ने की सलाह नहीं मानी।

जिस लालू के मुद्दे पर राहुल गांधी ने कभी अपनी ही सरकार का अध्यादेश फाड़ दिया था, वही राहुल भाजपा के ख़िलाफ संघर्ष में लालू का साथ नहीं छोड़ना चाहते। विधायकों के साथ बैठक में राहुल ने संकेत दे दिया पार्टी लालू के साथ रहेगी। हालांकि, यह भी तथ्‍य है कि बीते सात सालों के दौरान राहुल ने कभी भी लालू के साथ राजनीतिक मंच साझा नहीं किया है।
राहुल ने बिहार कांग्रेस में फेरबदल के भी संकेत दिए। राहुल ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष के नाम की जल्द ही घोषणा की जाएगी। सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी ने विधायकों के साथ बैठक के दौरान कहा कि अशोक चौधरी उनके विश्वासपात्र रहे हैं, लेकिन पार्टी विधायकों को तोड़ने में उनकी भूमिका रही।


राहुल बिहार कांग्रेस में टूट की आशंका को टालने में फिलहाल कामयाब दिख रहे हैं। बैठक में पहुंचे विधायकों की संख्या से साफ हो गया कि कांग्रेस विधायक दल को तोडऩे की कसरत करने वालों के पास अब नंबर नहीं है। लेकिन, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर स्टैंड लेकर जिस राहुल गांधी ने अपनी अलग छवि बनाई थी, उनपर अब राजनीतिक हमले तय लग रहे हैं। लालू के मुद्दे पर राहुल ने अपनी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगाई है।

राहुल से विधायकों की गुरूवार को हुई मुलाकात के बाद पार्टी सूत्रों ने कहा कि अशोक चौधरी और सदानंद सिंह ही विधायकों को लालू प्रसाद के विरोध के नाम पर तोडऩे की कोशिश कर रहे थे। लालू के साथ रहने में राजनीतिक नुकसान की बात के बहाने ही चौधरी ने करीब 13 विधायकों से हस्ताक्षर कराए थे। मगर कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ विधायक बने जदयू से आए चार-पांच लोगों के अलावा पार्टी के अधिकांश विधायकों ने केंद्रीय नेतृत्व में भरोसा जताया है।


राहुल से बुधवार को 11 विधायकों ने मुलाकात की थी। जबकि गुरूवार को 10 विधायक और दो एमएलसी राहुल से मिले। इस तरह पार्टी के 27 में से 21 विधायकों से रुबरू होकर हाईकमान ने सीधी बात की। इसमें सदानंद सिंह भी शामिल थे, जिन्हें राहुल ने समझाने के साथ नसीहत भी दी। लेकिन, अशोक चौधरी ने पत्नी व बेटी की बीमारी का हवाला देकर आलाकमान से मिलने से परहेज किया।

दरअसल, कांग्रेस में फूट को लेकर अटकलों को बल कांग्रेस नेताओं द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना में नरम रवैया बरतने से मिला। साथ ही महागठबंधन सरकार गिरने के बाद उसमें शामिल रहे राजद के मंत्रियों को बंगला खाली करने का नोटिस तो दिया गया पर कांग्रेस कोटे के मं​त्रियों में से अशोक चौधरी और अवधेश कुमार सिंह से सरकारी बंगले खाली नहीं कराए गए। इससे भी अटकलों को बल मिला।

बिहार की नई राजग सरकार में सीएम नीतीश कुमार ने आठ मंत्रियों की जगह अभी भी खाली छोड़ रखी है। कहा जा रहा है कि ये सीटें कांग्रेस छोड़कर आने वालों के लिए रिजर्व रखी गई हैंं।



स्‍पष्‍ट है कि पार्टी नेतृत्‍व भाजपा के खिलाफ लालू प्रसाद यादव को मजबूत करने का पक्षधर है। लेकिन, बिहार कांग्रेस के नेताओं का एक धड़ा मानता है कि लालू का साथ देने पर पार्टी को नुकसान झेलना पड़ सकता है। ऐसे में पार्टी पर छाया आसन्‍न संकट भले ही टल गया हो, आगे की राह आसान नहीं दिख रही।

राहुल के यह साफ करने के बाद कि अब आगे का सफर लालू के साथ करना है, नाराज पार्टी विधायकों को रोकना मुश्किल होगा। राहुल और कांग्रेस के राजद समर्थक विधायकों को इसका अहसास है कि राज्य में मुस्लिम-यादव वोट बैंक के ‘एमवाइ’ समीकरण से नीतीश के नेतृत्व वाले राजग से मुकाबला आसान नहीं होगा। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर स्टैंड लेने वाले राहुल पर राजनीतिक हमले भी तय हैं।
माना जा रहा है कि लालू के मुद्दे पर राहुल ने अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाया है। इसके बाद अगर पार्टी में टूट होगी तो उसका ठीकरा भी राहुल के सिर पर फोड़ा जाएगा कि वे विधायकों को भी रोकने में विफल रहे।

 

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