नगा समझौते पर केंद्र की चुप्पी और एनएससीएन के दावों से बेचैन तीन राज्य

सत्यनारायण मिश्र / न्यूज़ गेटवे / नगा समझौते पर केंद्र की चुप्पी / गुवाहाटी। /

दो साल पहले केंद्र और एनएससीएन (आईएम) के बीच कथित तौर पर ग्रेटर नगालिम पर हुए फ्रेमवर्क समझौते का सच क्या है। समझौता नगालैंड में स्थायी शांति लाएगा, सरकारी पक्ष इससे अधिक अन्य कोई दावा नहीं कर रहा। फ्रेमवर्क
समझौते के तमाम विंदुओं पर केंंद्र अभी तक चुप्पी साधे है।

जिस ग्रेटर नगालिम के लिए एनएससीएन (आईएम) मुख्यालय से लगातार दावे किए जा रहे हैं, उसका वास्ता नगालैंड के अलावा असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर से भी है। दावा सही निकला तो तीनों राज्यों का बहुत बड़ा हिस्सा उनसे अलग हो जाएगा। मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश की सरकारों ने तो अपनी जमीन नगालिम में जाने की आशंका को ले गहरी चिंता के साथ आक्रोश भी जाहिर किया है।

असम सरकार अपनी एक इंच जमीन भी नगालिम में नहीं जाने देंगे, कहने से आगे अभी तक नहीं
बढ़ी। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की पूरी लीडरशिप ने पांच दिनों तक नगालैंड से लगने वाले असम के गांवों में डेरा डाले रखा। अब आसू और अन्य जातीय संगठन भी एनएसीएन (आईएम) नेतृत्व के दावों को ले विरोध पर उतर आए हैं। सत्ताधारी भाजपा की तरफ से अवश्य कहा गया था कि फ्रेेमवर्क समझौते में ग्रेटर नगालिम को मानने और असम की नगा आबादी वाले इलाकों को उसमें शामिल करने की कोई बात नहीं है। लेकिन ना जाने क्यों यही बात केंद्र और राज्य, कोई सरकार खुलकर नहीं कह रही। एनएससीएन (आईएम) ने दावा किया है कि भारत सरकार उसके साथ फ्रेमवर्क समझौते में सैद्धांतिक तौर पर ग्रेटर नगालिम की मांग मान चुकी है।

अगस्त 2015 के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में भारत सरकार और नगा उग्रवादी संगठन एनएससीएन (आईएम) के बीच ऐतिहासिक नगा शांति समझौता हुआ था। इसे आजाद भारत में किसी विद्रोही संगठन के साथ हुए सबसे महत्वपूर्ण समझौते के रूप में चर्चित किया गया था। समझौते का सच क्या है यह तो भारत सरकार या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही कर सकेंगे। लेकिन एनएससीएन नेताओं के दावों ने वाकई असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के
सीमावर्ती नगा आबादी के गांवों को दहशत में डाल रखा है। इस बात को इन तीनों राज्यों की जनता किसी हालत में स्वीकारती नहीं दिख रही।

भारत सरकार जिस कथित फ्रेमवर्क समझौते को ले दसकों पुराने नगा उग्रवाद पर विराम लगने की उम्मीद पाल चुकी है, और जिसे ले एनएससीएन (आईएम) भी काफी खुश नजर आ रहा है, क्या वह वाकई फलप्रसु होगा। इसे लेकर भी शंकाएं ही
हैं। वजह साफ है। एनएससीएन (आईएम) इसके बावजूद नगालैंड और भारत को अलग-अलग राष्ट्र मानने की थ्योरी पर ही चल रहा है। गवर्नमेंट आफ द पीपुल्स रिपब्लिक आफ नगालिम (जीपीआरएन) के नाम से गठित उसकी समानांतर
सरकार के फरमान अभी भी नगा आबादी वाले तमाम इलाकों पर असर डाल रहे हैं। हेब्रोम स्थित उसके मुख्यालय का दावा है कि फ्रेमवर्क समझौते में सभी नगा क्षेत्रों के एकीकरण के लिए नगा लोगों के वैध अधिकार को माना गया है।

क्या सच में फेमवर्क समझौता नगाओं को एक विकसित राजनीतिक नागरिक के तौर पर आगे बढ़ने की अधिकतम सार्वभौमिक शक्ति देने की बात को स्वीकारता है। क्या वाकई नगा विद्रोही संगठन के दावे के अनुरूप नगाओं के यूनिक इतिहास, पहचान, संप्रभुता और सीमाओं को स्वीकारा गया है। केंद्र ने केवल तीन राज्यों ही नहीं समूचे देश की भौगोलिक सीमा को प्रभावित कर सकने वाले कथित फ्रेमवर्क समझौते को इतना पोशीदा क्यों बना रखा है, यह और भी बड़ा
सवाल है।

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