न्यूज़ गेटवे / त्रिशंकु विधानसभा / नई दिल्ली /
कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 हर किसी के लिए साख का विषय बना हुआ है. कांग्रेस के लिए एक ओर अस्तित्व बचाने के साथ-साथ नाक का सवाल है. बीजेपी में सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. इसलिए मोदी-शाह की जोड़ी महीने भर से भी पहले से पूरे राज्य में मैराथन रैली, रोड शो, सभाएं कीं. इन सबके बीच राज्य के चुनाव परिणामों को लेकर विशेषज्ञों का आकलन, भविष्यवाणियां और विश्लेषण भी जारी है. सबसे पहले बीजेपी की सरकार बनने का सर्वे आया फिर कांग्रेस को बहुमत मिलने की बातें हुई और अब त्रिशंकु विधानसभा की बात हो रही है. बहरहाल, 15 मई को नतीजे आ जाने के बाद तस्वीर साफ हो ही जाएगी.
इन सबके मद्देनजर ये भी सच है कि चुनाव में हार जीत का दारोमदार स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा  है. केन्द्र की बीजेपी सरकार ने पिछले चार सालों में क्या किया ? इससे ज्यादा लोगों के लिए ये मायने रख रहा है कि पिछले पांच साल में सिद्धारमैया ने कर्नाटक में क्या किया ? हालांकि अगर कर्नाटक में बीजेपी हारती है तो यह मोदीमुक्त भारत का श्रीगणेश भी होगा. 10 में से 7 ओपिनियन पोल कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा वोट दिला रहे हैं. बड़ी बात यह है कि पिछले 35 सालों में कांग्रेस को कभी बीजेपी से कम वोट नहीं मिले. हालांकि तमाम नाराजगियों के बावजूद आम लोगों की भी यही राय है कि जो भी है कांग्रेस मोदी की बीजेपी से तो बेहतर ही है. गौरतलब है कि 1983 से लेकर 2013 तक के सभी चुनावों में सिर्फ 1999 में ऐसा हुआ कि कांग्रेस को 34 प्रतिशत से कम वोट 28.95 प्रतिशत पड़े.
सिद्धारमैया सरकार की अगर बात करें तो तमाम तारीफों और आलोचनाओं के बीच ये भी सच है कि बेंगलुरु शहर की 27 सीटों पर (बीजेपी विधायक व उम्मीदवार की मौत के कारण एक सीट पर चुनाव नहीं हो रहा है) वोट स्थानीय मसलों के आधार पर ही डाले जाएंगे. लेकिन इस संदर्भ में सिद्धारमैया सरकार का रिपोर्टकार्ड उतना प्रभावशाली नहीं है. खासतौर पर सड़कें, बुनियादी सुविधाओं, ट्रैफिक, पीने का पानी, झीलों की साफ सफाई और उनके प्रदूषण पर रोक तथा कचरा प्रबंधन इन सभी मोर्चो पर सरकार का काम बेहद ढीला रहा है. बुनियादी ढांचे की उपेक्षा से विशेष रूप से आईटी सेक्टर के लोगों में कुछ नाराजगी है. बात अगर कचरा प्रबंधन की करें तो बेंगलुरु शहर की ये सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है. शहर की गरीब बस्तियों और झुग्गी या स्लम इलाकों के हालात बदतर हैं, जहां ना पीने का साफ पानी है, ना ही शौचालय और ना कचरा प्रबंधन. जबकि कांग्रेस का इन्हीं इलाकों में सबसे मजबूत जनाधार है. कर्नाटक स्लम विकास आयोग के मुताबिक राज्य में 2804 झुग्गी बस्तियां हैं, जिनमें से अकेले बेंगलुरु में ही 597 स्लम हैं. शहर का हर पांचवा व्यक्ति स्लम में रहता है और राज्य की कुल तीस से चालीस फीसदी आबादी स्लम और गरीब बस्तियों में रहने को अभिशप्त है.
कर्नाटक विधानसभा में बेंगलुरु की सीटों का योगदान 10 फीसदी का होता है. पिछले चुनाव में यहां की कुल 28 सीटों में से कांग्रेस को 13, बीजेपी को 12 और जेडीएस को 3 सीटें मिली थीं. यानी चुनाव जीतने के लिए बेंगलुरु की अनदेखी नहीं की जा सकती, खासकर तब जबकि बीजेपी मुख्य रूप से शहरी लोगों की पार्टी है. इसीलिए पिछले 6 महीने से सिद्धारमैया ने बेंगलुरु की सुध लेना शुरू किया है, चाहे सड़कों का निर्माण या मरम्मत हों या झीलों की साफ सफाई का काम. बेंगलुरु के लिए दस हजार करोड़ के पैकेज की भी घोषणा हुई है, लेकिन ये काफी नहीं है. लोगों में गुस्सा है, कचरा प्रबंधन के मसले पर शहर के तमाम बुद्धिजीवी और प्रबुद्ध लोग भी एकजुट हैं और दलगत राजनीति से अलग हटकर लोगों से काम करने वाले उम्मीदवारों का चयन करने की अपील कर रहे हैं. ऐसे में दावे के साथ नही कहा जा सकता किसकी बनेगी सरकार.

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