8वेँ थिएटर ओलम्पिक्स के दौरान किया गया भारतीय रंगकोष के तीसरे अंक का अनावरण
न्यूज़ गेटवे / भारतीय रंगकोष / नई दिल्ली /
8वेँ थिएटर ओलम्पिक्स के दौरान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) ने ‘भारतीय रंगकोष’ पुस्तक के तीसरे अंक का अनावरण किया। यह पुस्तक भारतीय थिएटर के इतिहास का इतिवृत्त है। प्रो. मोहन महर्षि की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के डायरेक्टर प्रो. वामन केंद्रे और मुकेश भारद्वाज मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे।
इस मौके पर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के डायरेक्टर प्रोफ. वामन केंद्रे ने कहा कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा द्वारा अब तक प्रकाशित पुस्तकोँ में भारतीय रंगकोष का स्थान बेहद महत्वपूर्ण है। यह बेहद प्रभावशाली पुस्तक है जो अंतरराष्ट्रीय थिएटर पटल पर भारत का सम्मान बढाएगी। अगर आप भारतीय थिएटर के इतिहास के बारे में पढना चाहते हैं तो यह पुस्तक आपके लिए वन-स्टॉप डेस्टिनेशन साबित होगी।
भारतीय रंगकोष भारत में प्रचलित थिएटर की विभिन्न विधाओँ का ऐतिहासिक संकलन है। इसके पहले दो अंक भारतीय थिएटर के संदर्भ में रेफरेंस बुक के तौर पर हाथोँहाथ लिए गए, जिनमेँ हिंदी ड्रामा पर विशेष फोकस किया गया था। इन अंकोँ में सम्बंधित प्रॉडक्शन के लेखक, डायरेक्टर, ट्रांसलेटर आदि से जुडी तमाम जानकारियाँ दी गई थीँ।
इस पुस्तक की लेखक प्रतिभा अग्रवाल के प्रयासोँ की सराहना करते हुए प्रो. केंद्रे ने कहा कि, सुश्री प्रतिभा अग्रवाल ने ऐतिहासिक जानकारियोँ को संकलित कर पुस्तक के अंक में समाहित करने के लिए सालोँ मेहनत की है। इस प्रक्रिया में उन्हेँ तमाम चुनौतियोँ का सामनाभी करना पडा। हम पूरे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की ओर इन महान महिला को सैल्यूट करते हैं।
प्रो. मोहन महर्षि ने कहा कि, “यह पुस्तक भारतीय थिएटर के सम्पूर्ण इतिहास को बयाँ करती है और यह भारतीय थिएटर की उच्च विरासत की एक झलक है। यह पुस्तक बेहद रोचक है और भारत के उन स्थानोँ की भी जानकारी देती है जो बेहद दोर-दराज में हैं फिर भी थिएटर एक्टिविटीज का आयोजन करते हैं। इस असाधारण पुस्तक को वास्तविकता में बदलने के लिए सुश्री प्रतिभा अग्रवाल ने तमाम चुनौतियोँ और रुकावटोँ का सामना करते हुए निरंतर प्रयास किया है।
‘भारतीय रंगकोष’ की एडिटर सुश्री प्रतिभा अग्रवाल ने कहा कि, “मेरा थिएटर के साथ बेहद गहरा और करीब का नाता है। मैने पहली बार 5 साल की उम्र में थिएटर देखा था और आज मैं 86 वर्ष की हूँ और आज भी थिएटर से जुडी हुई हूँ। मेरे लिए 10,000 से भी अधिक थिएटर ग्रुप्स में से कुछ 100 का चुनाव करना बेहद चुनौती भरा कार्य था। इस पुस्तक में उल्लिखित कुछ थिएटर तो सबसे प्राचीन थिएटर ग्रुप्स में से एक हैं और इनका सांस्कृतिक महत्व बेहद अधिक है। मैं प्रो. वामन केंद्रे और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की शुक्रगुज़ार हूँ, जिन्होने यह कठिन कार्य पूरा करने में मेरा अथक सहयोग किया।
मुकेश भारद्वाज ने कहा, “मैं प्रो. वामन केंद्रे के साथ एक थिएटर फेस्टिवल में हिस्सा लेने के लिए पिछ्ले साल आज़मगढ गया था। मुझे यह देखकर बेहद हैरानी हुई कि इतना छोटा सा शहर थिएटर फ्स्टिवल का आयोजन कर रहा है। यह देखकर मुझे इस बात की तसल्ली हुई कि पुराने भारतीय थिएटर फॉर्म कभी लुप्त नहीं होंगे, आज भी लोगोँ की इनमेँ रुचि है। मुझे इस पुस्तक को पढने का सौभाग्य मिला जो इतिहास का एक हिस्सा बन सकती है। यह पुस्तक बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जिसमेँ देश के विभिन्न हिस्सोँ के थिएटर ग्रुपोँ के प्रयासोँ को उल्लिखित किया गया है। मैं इस कठिन लक्ष्य को पूरा करने के लिए पुस्तक की लेखक और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर, दोनोँ को बधाई देता हूँ।
नाटकोँ के मंचन के साथ-साथ 8वेँ थिएटर ओलम्पिक्स में कई सम्बद्ध कार्यकलापोँ का आयोजन भी किया जा रहा है। इनमेँ ‘लिविंग लेजेंड’ और ‘मास्टर क्लास’ के दौरान जानी-मानी हस्तियोँ से मुलाकात और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के सेमिनार, सिम्पोजियम आदि के आयोजन बाकी बचे 38 दिनोँ के दौरान होते रहेंगे।