जे पी अवार्ड समारोह 18 नवम्बर को नयी दिल्ली में होगा
20 अक्टूबर, 2022 / लोकनायक जयप्रकाश नारायण की स्मृति में विगत वर्षों की भांति आगामी
20 अक्टूबर, 2022 / लोकनायक जयप्रकाश नारायण की स्मृति में विगत वर्षों की भांति आगामी
पूर्व ऑलराउंडर रोजर बिन्नी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के 36वें प्रेसिडेंट बन गए हैं।
प्रति वर्षों की भांति इस वर्ष भी अंकितग्राम सेवाधाम सांस्कृतिक आयोजनों के साथ मित्र मिलन महोत्सव का
शांति और सद्भावना के अग्रदूत आचार्य डा. लोकेश मुनि जी अंकितग्राम सेवाधाम, उज्जैन में आयोजित
ऋषिकेश, 2 जून। परमार्थ निकेतन में पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के अवतरण दिवस के
नयी दिल्ली , 8 अप्रैल / राजघाट परिसर स्थित गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के
विनम्र श्रद्धांजलि : उमाशंकर पांडेय अमर बलिदानी क्रांतिकारी मंगल पांडे का 165 वा बलिदान दिवस
आयुष मंत्रालय, भारत सरकार ने विश्व स्वास्थ्य दिवस पर लाल किला दिल्ली में मनाया योग
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टिल्लन रिछारिया एक ऐसा शख़्स, जिसके बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानता !… जानता तो इसे बचपन से हूं, स्कूल कालेज में भी इसके साथ रहा… नाटक, रामलीला, कविता, पत्रकारिता करते हुए इसे देखा । बेमतलब की हांकते हुए, अंट शंट सोचते हुए, सपनों के किले बनाते हुए अक्सर इसे पाया । इसका कोई खास नहीं, इसे औरों से कोई आस नहीं ।मतलब यह नहीं कि इस पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही । यह अपने जीवन में आये तमाम छोटे बड़े खुदाओं का शुक्रगुज़ार है । पढ़ाई लिखाई में राम भरोसे, खेल कूद में भी कच्चा कच्चा, न ये ज्यादा किसी को जानता हैं, न लोग इसे ज्यादा जानते हैं, ये खुद भी खुद को नहीं जानता । आता जाता कुछ नहीं पर बना फिलास्फर घूमता है । कहता है, ‘ आनंद की चाह की राह में चिंतन और विचार सर्वथा वर्जित है । ‘ इसका पहला प्यार चित्रकूट, दूसरा बम्बई और तीसरा खुद को बताता है । कहता है, ‘ खुदी कर बुलंद इतना कि कम से कम बुलंद शहर वाले तो खुद ही पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है ।’ प्यार के इज़्हार में बच्चा है, अपनी नज़र में चच्चा है । अपने पे मुग्ध रहता है, खोया खोया रहता है । मन से उपकारी है, बेमतलब ऐंठने की बीमारी है । ऐसा कोई नहीं, यह किसी के लिए बेचैन नही ।… कहता है, ‘ जो भी से प्यार से मिला हम उसी के हो लिए ‘ दोस्तों का मेला रहा नहीं लेकिन कभी रहा अकेला नही…आलोक, अरुण, मुकुंद, गणेश, राजू, लोकेश अनन्य हैं बाकी सब नगण्य हैं । पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण लुभाते हैं, परमार्थ के स्वामी चिदानंद राह दिखाते हैं । बचपन की पाठशाला ‘ बाल विद्यालय ‘ के सपने आते हैं, उसी विद्यालय में अध्यापकी के दिन याद आते हैं, जिन्होंने कान पकड़ के पढ़ाया फिर बाद मे उन्हीं ने संग संग अध्यापकी करते हुए जीवन जीने का ढंग सिखाया । कालेज की पढ़ाई के दिन बरबस याद आते है, सपनों में अभी भी ये चित्रकूट इंटर कालेज पढ़ने जाते हैं । जन्मभूमि चित्रकूटधाम करवी से अब कहने भर का नाता है, स्मृतियों के जंगल में जब यह शख़्स फंस जाता है तो जो गुनाह किया नहीं बेमतलब उसकी भी सज़ा पाता है । ये कभी भी कोई योजना नही बनाता है, कहता है योजना बनाते हुए लोग पकड़ा जाता है । गंभीरता से परहेज है, तरह तरह के आइडिया से लबरेज हैं । अपने बारे में लिखता है… ‘ बुनियादी तौर पर मैं… रस, रंग, कविता और अभिनय के फोर्स व फ्लेवर से संचालित रहा हूँ । मेरी किसी भी किसिम की रचनात्मकता में, समय, समाज और सभ्यता का स्पष्ट वेग रहा है । अपने पहले कृतित्व स्व संपादित पत्रिका ‘ इन्द्रधनुष ‘ ( सन 1975 में संपादित-प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ) और बाद में बम्बई के दौर में हिन्दी एक्सप्रेस, श्री वर्षा, करंट और धर्मयुग के सम्पादकीय-कर्म में ये गुण-तत्व बराबर निखार पाते रहे ।’ चक्रम ‘ और ‘ मेट्रो टाइम ‘ (ये दोनों अखबार क्रमश जून 1987, इलाहबाद और मई 1991, दिल्ली ) के प्रकाशन दौरान ये और निखार पर आए । लेखन-सम्पादन से ज्यादा रुचि कांसेप्ट, प्लानिंग, लेआउट और प्रेजेंटेशन में रही । जिसका भरपूर प्रवाह राष्ट्रीय सहारा के ‘ उमंग ‘ और ‘ खुला पन्ना ‘ में 1991 से 1995 तक प्रदर्शित है । भाषा की रवानी, कथ्य की कहानी, आकषर्क फोटो और ग्राफिक्स से सजे… धर्मयुग, करंट, राष्ट्रीय सहारा के उमंग और खुला पन्ना के वे पन्ने हालाँकि इतिहास के झरोखे से उन लोगों के जेहन में अभी भी झांकते हैं जो उस दौर के हिन्दी-प्रवाह के साथ आँख खोल कर चले और आज भी अतीत की उस श्रेष्ठता को सराहने में झेंपते नहीं ।… और मैं… मैं तो बराबर बेचैन रहता हूँ… नए कैनवास की तलाश में… जहाँ बार बार सृजन का नया बसंत रचा जा सके । कागज़ हो, या कैनवास, पिक्चर ट्यूब हो या वेब जनित फलक प्रक्षेपण का आगाज हो तो नए और समयाकूल तीर अभी भी तैयार हैं मेरे तरकश में।… नया कुछ रचने के लिए।… डॉ. धर्मवीर भारती, डॉ महावीर अधिकारी, शरद जोशी का सान्निध्य और रचना-संजाल अभी भी जीवंत है !… धारदार है !!… अपनी सोच, समझ और अभिव्यक्त्ति की क्षमता, रस, रंग, और कविता के फोर्स और फ्लेवर से अभी भी लबरेज और तरोताजा है ।’ जो आज अभी है , जाहिर है वो अगले पल नहीं रहेगा, ये पल भी सपने मे मिली संपदा हैं, जागते ही गुल हो जायेगें । जो भी मिलेगा सब छूटेगा, जो पाया उससे मोह कैसा… अपना काम सिर्फ काम, हम सब की पल दो पल की कहानी है । इस पार और उस पर की चिंता किसे नहीं होती, इन्हें भी है –