बजट 2019: वर्ष का अंतरिम बजट, 5 साल बाद आज कहां खड़ा है देश
जीएसटी काउंसिल में लिए कदम से फायदा मिलने की उम्मीद
बजट 2019 एक इलेक्शन बजट होगा-सूत्र
किसानों के लिए राहत पैकेज का एलान करने में भी हैं मुश्किलें
नई दिल्लीः 1 फरवरी यानी बजट का दिन आने में सिर्फ 2 दिन बाकी है. अंतरिम वित्त मंत्री पीयूष गोयल इस बार 1 फरवरी को बजट पेश करने जा रहे हैं क्योंकि मौजूदा वित्त मंत्री अरुण जेटली अमेरिका में अपना इलाज करा रहे है. बजट दस्तावेजों की छपाई का काम चल रहा है और इस दौरान बजट प्रक्रिया से जुड़े किसी भी अधिकारी को बाहरी व्यक्तियों से संपर्क करने की इजाजत नहीं है.
इस बार बजट को देखते हुए बड़ा सवाल ये है कि क्या मोदी सरकार रिफॉर्म के मोर्चे पर कुछ कड़े फैसले ले पाएगी या इस बार लोकलुभावन फैसले लिए जाएंगे, क्योंकि 2019 लोकसभा चुनाव होने में बस कुछ ही वक्त बाकी बचा है. जहां तक जानकारों का मानना है चुनावी मजबूरियों को देखते हुए सरकार बड़े रिफॉर्म जैसे कि बड़ी कंपनियों के लिए टैक्स में कटौती करने और बजटीय घाटे को कम करने के लिए कोई कदम उठाने से हिचकिचा सकती है.
जीएसटी काउंसिल में लिए कदम से फायदा मिलने की उम्मीद
हाल ही में दिसंबर में हुई जीएसटी काउंसिल की 31वीं बैठक में सरकार ने 23 वस्तुओं के जीएसटी स्लैब को कम किया और 3 सेवाओं पर भी जीएसटी रेट घटाया है जो 1 जनवरी से लागू हो चुका है. इसके जरिए सरकार उम्मीद कर रही है कि आम जनता और कारोबारियों की तरफ से सरकार को समर्थन मिलेगा क्योंकि इस फैसले का सीधा फायदा उन्हें मिलने वाला है.
बजट 2019 एक इलेक्शन बजट होगा-सूत्र
वित्त मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी के मुताबिक बजट 2019 पूरी तरह से चुनावी बजट होगा और इसमें किसी भी तरीके से नए टैक्स या बोझ को जनता, कंपनियों पर डाले जाने की संभावना न के बराबर है. ज्यादातर आर्थिक रिफॉर्म्स के फैसलों को टाल दिया जाएगा. इसके अलावा कंपनियों की कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती की मांग को भी न माने जाने के ही आसार नजर आ रहे हैं. सरकार को अभी भी अपना 3 साल पुराना वादा पूरा करना है जिसके तहत कहा गया था कि बड़ी कंपनियों पर कॉर्पोरेट टैक्स 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी किया जाएगा. बड़ी कंपनियों को आज तक उस वादे के सच होने का इंतजार है
किसानों के लिए राहत पैकेज का एलान करने में भी हैं मुश्किलें
सरकारी सूत्रों के मुताबिक किसानों के राहत पैकेज के लिए भी सरकार को काफी मशक्क्त करनी पड़ सकती है क्योंकि इसका अनुमानित व्यय करीब 1400 करोड़ डॉलर आ सकता है. इतने भारी खर्च को उठाने की स्थिति में आगे चलकर सरकार का वित्तीय बैंलेंस बिगड़ सकता है और देश का वित्तीय घाटा बेतहाशा बढ़ सकता है. ये कदम चुनाव में भले ही मोदी सरकार को फायदा पहुंचाए लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद इसका वास्तविक असर देश की इकोनॉमी पर निगेटिव रूप से आ सकता है.