हिंदी सिनेमा ने बनाई दुनिया में भारत की छवि : सुभाष घई

Bollywood filmmaker Subhash Ghai interacts with the students of Royal Global University at University premises in Guwahati on Sunday. Photo by Pitamber Newar

सत्य नारायण मिश्र  / न्यूज़ गेटवे / एडवांटेज असम / गुवाहाटी

चार दशक से फिल्म निर्माण क्षेत्र में अपनी असाधारण प्रतिभा का लोहा मनवाते आ रहे हिंदी फिल्मों के महान निर्माता निर्देशक सुभाष घई के मुताबिक अभिनय उनके लिए एक बोरिंग अनुभव रहा है। इसीलिए वे फिल्म मेकिंग से जुड़े और वे मानते हैं कि हर सफलता के लिए असफलता का अहम हाथ होता है।

एडवांटेज असमः ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भाग लेने आए सुभाष घई रविवार को तीसरे प्रहर रॉयल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के सामने नॉलेज गुरु के रूप में मौजूद थे। अपने लंबे कैरियर में टीना मुनीम, माधुरी दीक्षित, मनीषा कोइराला, कैटरीना कैफ, जैकी श्राफ और अनुपम खेर जैसे नामी-गिरामी अदाकारों को ब्रेक देने का जिक्र करते हुए उन्होंने फिल्म
निर्माण से जुड़ी  कुछ बारीकियों पर भी रौशनी डाली।

लेकिन घई के शब्दों में- मेरी जर्नी ने मुझे सिखाया है कि जिंदगी की सबसे खूबसूरत बात असफलता होती है। अगर आप फेल्योर नहीं होंगे तो सफल भी नहीं हो सकते। उनके मुताबिक सुभाष घई आज जो भी है, इन्हीं कम से कम सत्रह असफलताओं के कारण है। सच कहें तो बिना असफलता जिंदगी का कोई लुत्फ नहीं है। उनका मानना है कि सबसे पहले आपको असफलता से प्यार करना होगा। जब तक आप इससे प्यार नहीं करेंगे, ऊर्जस्वित नहीं होंगे।

इस असफलता को सफलता में कैसे बदलेंगे। इस अहम सवाल को उन्होंने खुद विद्यार्थियों के सामने रखा और फिर जवाब भी दिया। कहा कि यह बात उन्होंने सबसे अधिक अभिनय में कदम रखने के बाद सीखा। कई जगह ठुकराए जाने के बाद प्रकाश मेहरा ने बुलाया। लेकिन एक अभिनेता के रूप में मजा नहीं आया। लगा कि यह वे क्या कर रहे हैं।

घई के मुताबिक उन्हें यह सबसे अधिक बोरियत का काम इसलिए लगा कि बतौर अभिनेता उनकी अपनी कोई क्रिएटिविटी तो नहीं होती। निर्देशक जो कहता है वह करना पड़ता है, संगीतकार जो धुन बजाता है और सिंगर जो गाता है उस हिसाब से थिरकना या दिखाना पड़ता है। दर्शक तारीफ तो अदाकार की करते हैं, लेकिन उसके पीछे सारी मेहनत निर्देशक से लेकर अन्य तमाम नेपथ्य में रहने वालों की होती हैं। डायरेक्टर को कौन पूछता है। जबकि डायरेक्टर एक क्रिएटर है। उसका क्रेडिट लेकर कोई और जा रहा है।

फिर सुभाष घई को क्यों स्टार नहीं कहा गया। एक्टर को क्यों स्टार कहा गया। घई के अनुसार सिनेमा का अपना अलग जादू होता है। स्टार जैसा शब्द महज एक इल्यूशन है। यही आपको प्रसन्न और दुखी बनाता है।

सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग टैगलाइन रखते हुए उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों से कहा कि आज की रुलाई ही कल की खुशी बनेगी। इसलिए जमकर पूरे अनुशासित ढंग से मेहनत करें। सफलता तभी मिलेगी।

न्यूज चैनलों को हमेशा देश को डूबता हुआ दिखाने वाला बताते हुए उन्होंने दावा किया कि हिंदी सिनेमा के कारण ही हम दुनिया में भारतीयता का संप्रसार कर पाए हैं। हम सिनेमा वाले हैं जो देश को आगे बढ़ता दिखाते हैं।

पुस्तकें पढ़ने को सबसे महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने विद्यार्थियों से सोशल मीडिया के नकारात्मक पहलुओं से बचने की सीख दी। सोशल मीडिया को युवा पीढ़ी के लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद निरूपित करते हुए उन्होंने कहा कि उसमें दिखने वाली अच्छी बातें ही ग्रहण करें, बुरी को तत्काल डिलिट करते चलें। पोल्यूशन ऑफ नॉलेज से बचें। अपने विद्यार्थी जीवन में जो भी करें, प्यार से करें। उसमें नंबर एक बनें। और आखिरकार यह गांठ बांधकर आगे बढ़ें कि हमारा क्या, जितना मिला उतना मिला। जितना नहीं मिला उसका क्या गिला।

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