“भारत में दो तरह की सरकारें हैं. एक गवर्नमेंट ऑफ इंडिया. दूसरी गर्वनमेंट ऑफ मीडिया. मैं यहां गवर्नमेंट ऑफ मीडिया तक ही सीमित रहूंगा ताकि किसी को बुरा न लगे कि मैंने विदेश में गर्वनमेंट ऑफ इंडिया के बारे में कुछ कह दिया. यह आप पर निर्भर करता है कि मुझे सुनते हुए आप मीडिया और इंडिया में कितना फ़र्क कर पाते हैं.

एक को जनता ने चुना है और दूसरे ने ख़ुद को सरकार के लिए चुन लिया है. एक का चुनाव वोट से हुआ है और एक का रेटिंग से होता रहता है. यहां अमरीका में मीडिया है, भारत में गोदी मीडिया है. गर्वनमेंट ऑफ मीडिया में बहुत कुछ अच्छा है. जैसे मौसम का समाचार. एक्सिडेंट की ख़बरें. सायना और सिंधु का जीतना, दंगल का सुपरहिट होना. ऐसा नहीं है कि कुछ भी अच्छा नहीं है. चपरासी के 14 पदों के लिए लाखों नौजवान लाइन में खड़े हैं, कौन कहता है उम्मीद नहीं है. कॉलेजों में छह छह साल में बीए करने वाले लाखों नौजवान इंतज़ार कर रहे हैं, कौन कहता है कि उम्मीद नहीं बची है. उम्मीद ही तो बची हुई है कि उसके पीछे ये नौजवान बचे हुए हैं.

एक डरा हुआ पत्रकार लोकतंत्र में मरा हुआ नागरिक पैदा करता है. एक डरा हुआ पत्रकार आपका हीरो बन जाए, इसका मतलब आपने डर को अपना घर दे दिया है. इस वक्त भारत के लोकतंत्र को भारत के मीडिया से ख़तरा है. भारत का टीवी मीडिया लोकतंत्र के ख़िलाफ़ हो गया है. भारत का प्रिंट मीडिया चुपचाप उस क़त्ल में शामिल है जिसमें बहता हुआ ख़ून तो नहीं दिखता है, मगर इधर-उधर कोने में छापी जा रही कुछ काम की ख़बरों में क़त्ल की आह सुनाई दे जाती है.

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