स्वयं से प्रेम करना सीखने से बड़ा सुख कोई नहीः संतश्री हेमभाई

  • सत्यनारायण मिश्र


गुवाहाटी :  जाने-माने गांधीवादी समाज सुधारक और संतश्री की उपाधि सेविभूषित हेमभाई के मुताबिक जिसके हृदय में सदैव परमात्मा का चिंतन रहताहै, वही सुखी है। यह स्थिति उसी को प्राप्त होती है जो स्वयं से प्रेमकरना सीख जाता है।
वे बुधवार को यहां बशिष्ठ स्थित शांति साधना आश्रम में आयोजित एक विशेषकार्यक्रम में बोल रहे थे। आश्रम परिसर में विगत 28 वर्ष से संचालितशिक्षा संस्थान जीवन साधना विद्यालय के नवीन भवन के उद्धाटन के उपलक्ष्यमें आयोजित इस कार्यक्रम में नगर के अनेक गण्यमान्य नागरिक, बच्चों केअभिभावक और विद्यार्थी उपस्थित थे।   

         

शांति साधना आश्रम अपने आध्यात्मिक, बौद्धिक और अध्यवसायिककार्यों के लिए जाना-पहचाना जाता है। विगत चार दशक से अधिक समय से जन-जनको जीवन साधना का पाठ पढ़ाते आ रहे इस केंद्र में पिछले 28 वर्षों सेसाधन-विहीन बच्चों को निःशुल्क शिक्षादान की व्यवस्था संचालित है।प्राथमिक कक्षा से लेकर आठवीं तक के लगभग दो सौ विद्यार्थियों को शिक्षादी जाती है।


गीता-रामायण और अन्य धार्मिक आख्यानों के निष्कर्ष रूप में सुख की अत्यंतसारगर्भित व्याख्या हेमभाई ने की। स्वस्थ देह और स्वस्थ मन के महत्व परप्रकाश डाला। खान-पान में संयम, निरामिष आहार और रात नौ बजे सो जाने तथाप्रातः चार बजे जगने एवं इस बीच रात 12 बजे से 1 बजे तक नियमित तौर परईश्वर चिंतन की विशिष्ट सीख दी।
निर्बल व अति गरीब श्रेणी के बच्चों के लिए संचालित इस विद्यालय से निकलकर इस समय पुणे में हिंदी साहित्य के क्षेत्र में शोध करने वाली सुरभिसुतीया के अलावा विद्यालय की अन्य छात्राओं ने इस अवसर पर अपनी नृत्यपस्तुतियों से सबका मन मोहा।

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