‘सेवाधाम’ में ‘शांति दूत’ पुरस्कार से सम्मानित होंगे आचार्य डा. लोकेश मुनि

शांति और सद्भावना के अग्रदूत आचार्य डा. लोकेश मुनि जी अंकितग्राम सेवाधाम, उज्जैन में आयोजित 22 जुलाई से 5 अगस्त तक आयोजित कार्यक्रम ‘वर्षा मंगल ‘ में ‘ शांति दूत ‘ पुरस्कार से सम्मानित होंगे। 

प्रखर चिन्तक, लेखक, कवि एवं समाज सुधारक आचार्य डा. लोकेशजी पिछले 39 वर्षों से विश्व में अहिंसा,
शांति एवं सद्भावना की स्थापना, राष्ट्रीय चरित्र निर्माण, मानवीय मूल्यों के उत्थान के लिए निरंतर
प्रयत्नशील है| अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारत में 20000 किलोमीटर की पदयात्रा एवं विश्व के
अनेक देशों की यात्रा कर चुके आचार्य लोकेश का कथन है कि “मेरी आदिम, मध्य और अंतिम आकांशा है
कि मैं विश्व को हिंसा, आतंक और तनाव से मुक्त कर अहिंसा, शांति और सद्भावना की स्थापना में अपना
योगदान दे सकूँ |”


इन्ही महान मूल्यों को साकार करने के लिए उन्होंने ‘अहिंसा विश्व भारती’ संस्था की स्थापना कर अपना
कार्य क्षेत्र विश्वव्यापी बनाया | अहिंसा विश्व भारती के स्थापना के साथ ही उन्होंने समाज से कन्या भ्रूण
हत्या, नशाखोरी, पर्यावरण प्रदूषण आदि सामाजिक बुराईयों के विरोध में आन्दोलन शुरू किया|
आचार्य डॉ लोकेशजी के प्रयासों से अहिंसा विश्व भारती संस्था के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए संस्था के
अंतर्गत विश्व शांति केंद्र की स्थापना की जा रही है जो व्यक्ति निर्माण, अहिंसा प्रशिक्षण तथा शांति शिक्षा
को समर्पित होगा । यह केंद्र विश्व भर में भारतीय संस्कृति एवं मूल्यों के प्रचार-प्रसार का प्रमुख केंद्र होगा।
विश्व शांति केंद्र के लिए सरकार द्वारा गुरुग्राम में आबंटित इस भूखंड का भूमिपूजन 17 अप्रैल 2022 को
किया गया । यह केंद्र अहिंसा, अनेकांत, सद्भावना और सेवा के चार स्तंभों पर खड़ा होगा एवं भगवान
महावीर के संदेशों एवं भारतीय संस्कृति के आदर्शों के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में अहिंसा, शांति, सद्भावना
और भाईचारा बढ़ाने के लिए कार्य करेगा।
प.पू. आचार्य डा.लोकेशजी का जन्म 17 अप्रैल 1961 को राजस्थान के पचपदरा शहर में हुआ| अपनी
प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने जैन, बौद्ध, वैदिक दर्शन के साथ अनेक भारतीय एवं विदेशी
दर्शनशास्त्र का गहन अध्ययन किया| आपको प्राकृत, हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान
है| आपने एक दर्जन से ज्यादा पुस्तकें गद्य एवं पद्य दोनों ही विधाओं में लिखी है| समसामयिक विषयों के
समाधान एवं आधुनिक दृष्टिकोण के कारण आपका साहित्य अत्यंत उपयोगी व लोकप्रिय है, इसका अनेक
भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है|
प.पू. आचार्य डा.लोकेशजी अपनी विलक्षण प्रतिभा, विनम्र व्यव्हार और अथक पुरुषार्थ के कारण वैश्विक
स्तर पर लोकप्रियता और सम्मानित हुए हैं| आप ध्यान, योग और पीस एजुकेशन के विशेषज्ञ हैं| गहरे
अध्ययन एवं परीक्षण के बाद आपने ‘पीस एजुकेशन’ पाठ्यक्रम तैयार किया है जो प्राचीन ध्यान-योग और
आधुनिक विज्ञान का सम्मिश्रण है| यह मनुष्य के अन्दर निहित पाश्विक प्रवृति को समाप्त कर मानवीय एवं
दैविक प्रवृति का जगती है|
वर्ष 2001 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति श्री बिल क्लिंटन आचार्य जी के मौलिक विचारों से बेहद प्रभावित
हुए और उन्होंने प.पू. आचार्य लोकेशजी को अमेरिका यात्रा का निमंत्रण दिया| मार्च 2007 में अमेरिका की
पहली अमेरिका यात्रा के दौरान आचार्य जी ने ‘पीस एजुकेशन और अहिंसा प्रशिक्षण’ के कार्यक्रम को
अमेरिका की सेनेट में प्रस्तुत किया| सितम्बर 2008 में केलिफोर्निया की मिलपितास असेंबली को संबोधित
किया| आचार्य लोकेश ने संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व धर्म संसद सहित विभिन्न राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में

भाग लेकर भारतीय संस्कृति एवं जैन धर्म का गौरव बढाया है| आचार्य लोकेशजी को संयुक्त राष्ट्र संघ के
मंच से प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को संबोधित करने का गौरव प्राप्त हुआ था जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ के
महासचिव बान-की-मून, तत्कालीन भारत की विदेश मंत्री श्रीमति सुषमा स्वराज एवं आध्यात्मिक गुरु श्री
श्री रविशंकरजी भी मौजूद थे।


आचार्य लोकेशजी ने अपनी अमेरिका की एतिहासिक शांति सद्भावना यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो
बाइडन से गन हिंसा से जूझ रहे अमेरिका को समस्या के समाधान के लिए स्कूल शिक्षा में पीस एजुकेशन
(वेल्यू बेस्ड एजुकेशन) को लागू करने की सलाह दी जिससे अमेरिकी राष्ट्रपति काफी प्रभावित हुए। उनकी
यात्रा के दौरान न्यूयार्क में भारतीय दूतावास ने ‘भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों द्वारा शांति व सद्भावना’ विषय
पर कॉन्सिल मुख्यालय पर आचार्य डॉ लोकेशजी का व्याख्यान आयोजित किया था।

वर्ष 2010 में भारत सरकार ने प.पू. आचार्य डा. लोकेशजी को राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव पुरुस्कार से
सम्मानित किया| विज्ञान भवन में आयोजित भव्य समारोह में तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह
एवं उपराष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी ने आचार्य लोकेशजी को पुरुस्कार प्रदान किया| संयुक्त राष्ट्र संघ के
सूचना केंद्र में प.पू.आचार्य लोकेशजी को विश्व शांति और सांप्रदायिक सद्भावना के क्षेत्र में अभूतपूर्व
योगदान के लिए वर्ष 2014 में युनिवर्सल पीस फेडेरेशन की ओर से ‘AMBASSADOR OF PEACE’ सम्मान
के अलंकृत किया गया| आचार्य डा. लोकेशजी द्वारा समाज में अहिंसा, शांति एवं नैतिक मूल्यों के सर्वधर्म में
योगदान के लिए वर्ष 2006 में माननीया श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने गुलजारीलाल नंदा फाउंडेशन के
‘नैतिक सम्मान’ से आचार्य लोकेश को सम्मानित किया|कलिफोर्निया मिल्पितास के मेयर होजे अस्ताविश
ने अहिंसा, शांति और सद्भावना के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए आपको ‘KEY TO MILPITAS’ से
सम्मानित किया|
अनेकता में एकता भारत की संस्कृति की विशेषता है और सर्वधर्म सद्भाव इसका मूलमंत्र| भारत की इस
सभ्यता, शांति और सद्भावना को बनाये रखने के लिए सभी धर्मो में आपसी भाईचारा महत्वपूर्ण है| जब
कभी आसामाजिक तत्वों द्वारा सांप्रदायिक सोहार्द व आपसी भाईचारे को बिगाड़ने का प्रयास हुआ वे उसे
असफल करने के लिए तत्काल सक्रिय हो गए| उत्तर प्रदेश में मुज्जफर नगर दंगो, गुजरात में सांप्रदायिक
हिंसा, पंजाब में सिख समुदाय एवं डेरा सच्चा सौदा के बीच विवाद, राजस्थान के उग्र गुर्जर आन्दोलन,
दिल्ली में जामा मस्जिद बम विस्फोट के बाद उत्पन्न सांप्रदायिक एवं जातिवादी तनाव को ख़त्म कराकर
समाज में शांति व आपसी भाईचारे को स्थापित करने में आचार्य लोकेशजी ने अहम् भूमिका निभाई है|
प.पू. आचार्य डा. लोकेशजी का सम्पूर्ण जीवन मानवी मूल्यों, अहिंसा, शांति और सांप्रदायिक सद्भावना
की स्थापना के लिए समर्पित है| आपका विश्व शांति की स्थापना, राष्ट्रीय एकता, मानवता के उत्थान,
मनुष्यों के कल्याण और आपसी भाईचारे के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिए हैं|

सांस्कृतिक मिलन महोत्सव का आयोजन

प्रति वर्षों की भांति इस वर्ष भी अंकितग्राम सेवाधाम सांस्कृतिक आयोजनों के साथ मित्र मिलन महोत्सव का आयोजन कर रहा है। इस बार का हम इस महोत्सव को  ‘ पर्यावरण संस्कार पर्व ‘ के रूप में आप सब के सान्निध्य में मना रहे हैं।

22 जुलाई से 5 अगस्त 2022 तक

 वर्षा मंगल

 31वां सेवा महोत्सव ‘ पर्यावरण संस्कार पर्व

‘ स्वागत…वंदन…अभिनन्दन…हार्दिक मित्र मिलन!

प्रति वर्षों की भांति इस वर्ष भी अंकितग्राम सेवाधाम सांस्कृतिक मिलन महोत्सव का आयोजन कर रहा है। इस बार का हम इस महोत्सव को   ‘ पर्यावरण संस्कार पर्व ‘ के रूप में आप सब के सान्निध्य में मना रहे हैं।

कार्यक्रम इस प्रकार हैं –
दैनिक आयोजन : प्रतिदिन प्रात:काल

दिव्यांग योग !

पर्यावरणशुद्धिकरण यज्ञ !!

पौधारोपण कार्यक्रम!!!

दैनिक आयोजन : प्रतिदिन संध्याकाल

पर्यावरण भागवत !

बिल्केश्वरमहादेव से ‘गंभीरनदी ’ की आरती का शुभारम्भ ! 

सेवाधाम में पधारे विशिष्ट अतिथियों के आशीर्वचन !


विशेष आयोजन

अंकितोत्सव

सेवाधाम आश्रम केपरोक्ष समाजसेवी मास्टर अंकितगोयल की (22 जुलाई)38 वीं जयंती !

आचार्य बालकृष्ण : अवतरण दिवस 

पतंजलियोगपीठ के वनस्पतिविज्ञानी आचार्यश्री के अवतरणदिवस (4अगस्त) केअवसर पर !

वृक्षारोपण अभियान 

‘ मेरावृक्ष:मेरा जीवन’

जीवन रक्षा अभियान

-22 जुलाई2022 को प्रात:11 बजेआप सब सादर आमंत्रित हैं।


महोत्सव की आयोजक संस्था मध्य प्रदेश के उज्जैन में अंकितग्राम सेवाधाम एक ऐसा आश्रम है, जहां पीड़ितों की पीड़ा को दूर करने और उनकी सेवा-सुश्रुषा करने का काम बड़े मनोयोग से  होता है।  यहां कुछ घंटे पहले जन्मे नवजात शिशु से लेकर वृद्धावस्था के अंतिम दौर में पहुंच चुके बुजुर्ग महिलाओं और पुरुषों की सेवा, देखभाल और प्यार बांटने का काम बिल्कुल निशुल्क और पूरे तन-मन से किया जाता है। इस कार्य को करने में मुझे पीड़ितों में भगवत दर्शन होते हैं।ऐसा करते हुए मुझे कभी भी  हिचकिचाहट या घृणा जैसी  कोई भी अनुभूति हुई।

मुझे सौभाग्य मिला 1976 में पवनार में आचार्य विनोबा भावे से मुलाक़ात करने का। उनसे प्राप्त मार्गदर्शन और बाद में बाबा आम्टे और मदर टेरेसा से मिली शक्ति के  बाद  मैंने  चिकित्सक बनने का सपना छोड़, अनेक सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से दूरस्थ आदिवासी-ग्रामीण-श्रमिक झुग्गी झोपड़ी और गंदी बस्तियों में निराश्रित- मरणासन्न, निःशक्त वृद्धों, मनोरोगियों निःसहाय, असहाय, पीड़ित, शोषित वर्ग की सेवा का काम शुरू कर दिया। इसके पूर्व 13 वर्ष की किशोर उम्र से मैं सेवा कार्यों के प्रति समर्पित हूं।

सेवा ,शिक्षा ,स्वास्थ्य ,स्वावलम्बन ,सद्भाव …को मूलाधार बनाते हुए  पंच सूत्रीय प्रकल्पों के माध्यम से अपने सामाजिक कार्य को गति देते हुए मैंने 1986 में प्रदेश के प्रथम उज्जयिनी वरिष्ठ नागरिक संगठन की स्थापना की और कुष्ठधाम हामूखेड़ी में नारकीय जीवन जी रहे महारोगियों की पीड़ा को समझा। मरणासन्न लकवा पीड़ित कुष्ठरोगी नारायण को अपने ऑफिस गैरेज में लाकर अंतिम सांस तक उसके घावों की मरहम पट्टी के साथ सेवा की। कुष्ठधाम की स्थापना कर उन्हें शिक्षा और स्वावलम्बन के साथ जीवनोपयोगी सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु लम्बा संघर्ष किया, परिणाम स्वरूप आज अनेक महारोगी आत्म स्वाभीमान के साथ स्वावलम्बी जीवन व्यतीत कर रहे है। कुष्ठधाम में बच्चों और महिलाओं की शिक्षा केन्द्रों के विविध प्रशिक्षणों की व्यवस्था की। सेवाधाम की विधिवत स्थापना 1989 में हुई है । 

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