वायु प्रदूषण का ठीकरा आखिर किसानों पर ही क्यूं ? दिल्ली में पराली, गुवाहाटी में क्या ??

-सत्यनारायण मिश्र


देश की राजधानी नई दिल्ली और उससे लगे दिल्ली एनसीआर के तमाम इलाके
दमघोंटू वायु प्रदूषण के कारण गैस-चैंबर में तब्दील हो रहे हैं। दिल्ली
और केंद्र सरकारें इसके लिए पंजाब व हरियाणा के खेतों में जलाई जाने वाली
पराली को प्रमुख जिम्मेदार बताती हैं। अदालतें कई बार आदेश दे चुकी हैं
कि वहां किसानों को पराली जलाने से रोका जाए। आदेश पर आदेश पारित हुए
हैं। लेकिन न पराली जलना रुक रहा है और न ही दिल्ली में वायु प्रदूषण।


यहां सवाल यह भी है कि दिल्ली में पराली जानलेवा वायु प्रदूषण का कारण है
तो असम की राजधानी गुवाहाटी-दिसपुर की आबोहवा किस पराली के कारण बेहद
खतरनाक स्थिति तक प्रदूषित हो रही है। यहां से दो हजार किमी दूर तक कहीं
कोई पराली नहीं जलाई जाती। आज जब हम यह प्रसंग उठा रहे हैं, गुवाहाटी के
कई स्थानों पर बीजोमीटर के अनुसार वायु प्रदूषण की हालत ठीक नहीं है।
दिल्ली के प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट को स्वयं आगे आना पड़ा है।
सोमवार को उसने केंद्र और दिल्ली सरकारों को लताड़ तो लगाई ही, यह भी कहा
कि इसके लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। अदालत ने दो टूक कहा, एक-दूसरे
पर आरोप मढ़ने के बजाए केंद्र और दिल्ली सरकारें काम करें। ऐसे ही लोगों
को मरने के लिए नहीं छोड़ सकते। सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी जायज है। उसने
सही कहा है कि हर साल दिल्ली चोक हो जाती हैैऔर हम कुछ नहीं कर पा रहे।
लोगों के जीने के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। क्या बच्चे, क्या बूढ़े और
क्या जवान सभी इससे बीमार हो रहे हैं। सरकारें कर क्या रही हैं। सुप्रीम
कोर्ट ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि अब केेंद्र करे या दिल्ली सरकार
उसे इससे कोई मतलब नहीं है। यह समस्या हल होनी चाहिए।
सही है, आखिर सरकारें कर क्या रही हैं। किसानों को अदालत के आदेश नकार
पराली जलाने को मजबूर क्यों होना पड़ रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि अगर
उन्हें मशीनें उपलब्ध करा दी जाएं तो पर्यावरण के लिए कथित तौर पर विनाश
का कारण बनी वही पराली ताप विद्युत गृहों आदि में सप्लाई की जा सकती है।
किसानों को आर्थिक लाभ भी होगा, वायु प्रदूषण भी रुकेगा और कम लागत में
ऊर्जा उत्पादन का एक विकल्प भी मिल जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी है कि
हमें इस मुद्दे पर दीर्घकालीन उपाय करने होंगे। पंजाब व हरियाणा में
पराली जलाने के कारण क्या हैं। पराली जलाने पर रोक है तो दोनों सरकारें
भी जिम्मेदार हैं। ग्राम पंचातें और सरपंच क्या कर रहे हैं। सुप्रीम
कोर्ट ने विशेषज्ञ से सलाह की जरूरत भी जताई है।
सुप्रीम कोर्ट का सारा जोर पराली जलाना रोकने पर ही रहा है। पराली जलाना
रोकना होगा, यह सही है। लेकिन क्या अकेले पराली जलाना रोकने से यह समस्या
हल हो जाएगी। देश की राजधानी और दिल्ली-एनसीआर में रोजाना लाखों की
संख्या में हो रहे कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाली और हवा में बहुत
आसानी से काफी ऊंचाई तक छा जाने वाली  राखी की परत कम दोषी है क्या।
पंजाब से 400 किमी दूर तक पराली के धुएं का गहरा गुबार दिल्ली पर छा सकता
है, तो क्या खुद वहीं से उठने वाली दमघोंटू डस्ट कहीं बैठी भजन-कीर्तन कर
रही होती है।
दुर्भाग्य का विषय है कि हमारे देश में अधिकांश नीति-निर्धारकों और
ज्ञानी-गुणी लोगों को हमले के लिए सबसे पहले किसान ही मिलता है। पीढ़ियों
का खून-पसीना खपा कर सबका पेट भरने के लिए अन्न पैदा करने वाला किसान
प्रकृति और अभावों की मार तो झेलता ही है, भाग्य नियंता बने मुट्ठी भर
मस्तिष्कों की सीमित मानसिकता का भी शिकार होता आ रहा है। देश की राजधानी
की तुलना में पंजाब हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान के कहीं नजदीक है। पंजाब
में जलाई जाने वाली पराली का धुआं महज 40 किमी दूर पाकिस्तान में नहीं
जाता, तकरीबन 400 किमी दूर दिल्ली तक धावा मार देता है। क्या धुआं भी
देशभक्त हो गया है जो ऊपर उठने और हवा के प्रवाह की दिशा में जाना भूल
दुश्मन देश नहीं जाकर अपने देश की राजधानी में माथा नवाता है। यह गजब
नहीं तो और क्या है।

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