रायपुर : 400 साल पुराने पेड़ को श्रद्धांजलि
रायपुर में आज शाम 7 बजे एक अनोखी श्रद्धांजलि सभा होगी। सिटी कोतवाली चौक पर सारे लोग जमा होंगे। मकसद है उस 400 साल पुराने पेड़ को श्रद्धांजलि देना जिसे बेरहम प्रशासन ने स्मार्ट सिटी के लिए बलि चढ़ा दिया।मैंने बचपन से उस पेड़ को देखा। सड़क चौड़ी करने के लिए पेड़ तो कटेंगे ही मगर उस पेड़ को काटने पर एक अजीब सा मलाल है और पूरा शहर इसे कोस रहा है।,
,
यह तस्वीर जिस नदी की है उसमें भी 11 गन्दे नाले मिल रहे हैं और एक दिन शायद ये रायपुर की प्राणदायिनी खारुन भी स्मार्ट सिटी की भेंट चढ़ जाएगी। आप कमरे में ‘एसी’ में बैठ रायपुर को बालिका वधु बना कर नकली श्रृंगार करते कोसते रहिए हमे कि हम विकास विरोधी हैं, जनाब , दुनिया बनाने वाले ने सबको जीने का हक दिया है पेड़ हो या नदी।आप उनसे हिलमिल चलिए वरना पेड़ सिर्फ फाइलों में होंगे और नदियां मानचित्रों में ही देखी जा सकेंगी।
खारुन नदी के साथ बहते हुए
गुरुवार, 12 मई 2011
यह अच्छी बात है कि देर से ही सही रायपुर को जीवन देने वाली खारुन नदी की सफाई पर सबका ध्यान गया है मगर निराश करने वाला मुद्दा यह है कि सफाई का काम उतना जोर नहीं पकड़ पाया है जिसकी अपेक्षा शुरुआत के समय की गयी थी और इस दिशा में आगे आए उद्योगपतियों ने जो उत्साह दिखाया था वो बदस्तूर जारी नहीं है|
खारून नदी को पिकनिक स्पाट बनाने की योजना है और इस मद में 12 करोड़ रूपये जारी हुए हैं, ऐसा दावा किया जाता है| पर फिलहाल तो इस योजना पर पानी फिरता दीखता है| साफ़ लग रहा है कि अगले महीने बरसात के पहले खारुन की सफाई हो जाना संदिग्ध है। जबकि उद्योगपतियों ने बढ़ चढ़ कर दावे और वादे किये थे और प्रदेश सरकार ने भी सतत काम करने के निर्देश दिए हैं|
यह बताने कि जरुरत है कि खारुन रायपुर की जीवन रेखा है जैसे यमुना दिल्ली की है| खारुन अब एक नाला बनती जा रही है| तालाबों में गिराया जाने वाला धार्मिक कचरा ढोते हुए खारुन हुगली जैसी लगने लगी है| जैसे राम की गंगा मैली हो गई पापियों के पाप ढोते-ढोते|
दरअसल मुद्दा सिर्फ खारुन नहीं है| देश भर में नदियाँ नाला बन रही हैं और तालाब पी कर लोग उन पर शापिंग मॉल्स बना रहे हैं| सामुदायिक जीवन की प्राचीन चेतना पर शहरी लोभ ने कचरा डल दिया है और कृषि उत्पादकता की बेलगाम हवस के चलते उर्वरकों -कीटनाशकों का इस कदर इस्तेमाल हुआ कि नदियों की सेहत खतरे में पड़ गयी है।
खेती विरासत मिशन नामक एक गैर सरकारी संगठन यह चीख-चीख कर कहते आ रहे हैं| पानी, खान-पान और वायुमंडल सभी पर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का असर देखा जा सकता है। यह कहानी उस समय की है जब छत्तीसगढ़ अस्तित्व में ही नहीं आया था और वह मध्यप्रदेश का ही हिस्सा था । छत्तीसगढ़ की एक बड़ी सहायक नदी शिवनाथ को अंधेरे में रखकर रेड़ियस वाटर लिमिटेड़ को बेच दिया गया। बोरई ग्राम के किसानों के नैसर्गिक अधिकार पर आक्रमण करते हुए पानी लेने और मत्स्याखेट पर पूरी तरह रोक लगा दी गई ।
खारुन शिवनाथ की प्रमुख सहायक नदी है। खारुन नदी दुर्ग जिले के संजारी से निकलती है और फिर रायपुर से बहती हुई सोमनाथ के पास शिवनाथ नदी में मिल जाती है। शिवनाथ महानदी की प्रमुख सहायक नदी है। महानदी और उसकी सहायक शिवनाथ, मांड़, खारून, जोंक, हसदो आदि नदियों मानव बसाहट और संस्कृतियां जल-स्रोतों, नदियों, समुद्रों के किनारे फली- फूली है | जमीनों की पहचान करके गांव बसाए जाते रहे हैं और उसी के साथ-साथ तालाबों की खुदाई भी होती रही है। अब सब कुछ सूखता सा लगता है| रायपुर-जगदलपुर मार्ग पर स्थित राज्य की पुरानी राजधानी बस्तर गांव में कहा जाता है कि ‘सात आगर सात कोरी’ यानि 147 तालाब होते थे।
याद आते हैं वो लोग वो ज़माना जब तालाब के लिए लोग जान लगा देते थे| घटना राजनादगांव के लोगों को याद है| 1954-55 में शहर के प्रतिष्ठित व्यवसायी बजरंग महाराज ने भरकापारा के तालाब की गंदगी से दुखी होकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी थी। समाज को जगाने के लिए किया गया यह अनशन कुल तीन दिन चला था कि प्रेरित और प्रभावित समाज ने तब तालाब की सफाई का काम उठा लिया।आज रानी सागर जैसे तालाब शहर की शोभा बने हैं| वो पानीदार लोग भी याद आते हैं जो पानी में रम जाते थे|
बिलासपुर जिले के डभरा गांव के पास एक जोसी है जिनके बारे में कहते हैं कि उन्हे जमीन में पानी की आवाज सुनाई देती है। वे सिर्फ धरती माता पर कान लगाकर बता देते हैं कि कितने हाथ पर कैसा कितना पानी और बीच में कितने हाथ पर रेत और पत्थर मिलेंगे। ऐसे लोग और ऐसे लोगों की मुहिम जब तक साझा नहीं चलेगी और पानी के लिए पानीदार चेतना जागृत नहीं होगी कुछ कहना फिजूल है|(ऊपर छत्तीसगढ़ के जुझारू छायाकार रुपेश यादव की फ्लिकर द्वारा सराही गयी खारून नदी की तस्वीर)