यह कला की स्वयत्तता के लिए खतरनाक है : रंगकर्मी अरविन्द गौड़

न्यूज़ गेटवे / रंगकर्मी अरविन्द गौड़ का खुला पत्र /नई दिल्ली / 

साहित्य कला परिषद,दिल्ली के ताजा विज्ञापन मे आपकी फोटो के साथ दो थियेटर फेस्टिवल की सूचना छपी  है। उसमे लिखे एक नियम मे साहित्य कला परिषद के सचिव ने लिखा है कि सरकारी संस्था द्वारा *निर्धारित विषयो पर ही नाटक करने है।*मतलब अगर फेस्टिवल मे आवेदन करना हो तो, नाट्यकर्मियों को आपकी सरकार द्वारा दिए ग्ए विषयों या एजेंडे पर ही नाटक करना होगा।

मनीष सिसोदिया के नाम रंगकर्मी अरविन्द गौड़ का खुला पत्र

मनीष भाई,

साहित्य कला परिषद,दिल्ली के ताजा विज्ञापन मे आपकी फोटो के साथ दो थियेटर फेस्टिवल की सूचना छपी है। उसमे लिखे एक नियम मे साहित्य कला परिषद के सचिव ने लिखा है कि सरकारी संस्था द्वारा *निर्धारित विषयो पर ही नाटक करने है।मतलब अगर फेस्टिवल मे आवेदन करना हो तो, नाट्यकर्मियों को आपकी सरकार द्वारा दिए ग्ए विषयों या एजेंडे पर ही नाटक करना होगा।

सवाल है कि आप की सरकार ने नाट्यकर्मियों को इस लायक भी नहीं समझा कि वे खुद तय कर सकें कि उन्हे किस इश्यूज पर नाटक करना है । मतलब उन्हे नही पता कि नाटकों के माध्यम से वे कैसे अपने समय और समाज से जुड़ सकते हैं। यानि अब सरकार के दिशा निर्देश के तहत ही नाटक के विषय होगे ? अब सरकार तय करेगी कि हमें क्या और कैसे नाटक करने है।

दोस्त , यह कला की स्वयत्तता के लिए खतरनाक और गलत परंपरा की शुरुआत है। नाटक आपके हिसाब से नहीं चलेंगे, सरकार तो आती जाती रहेगी। पर रंगमच हमेशा है और रहेगा। कृपया कला की स्वंतत्रता को नियंत्रित न करें।

आप अपने तय एजेंडे के अनुरुप विषयों पर नाटक ना कराये । कला की स्वतंत्रता को खत्म ना करे।

 

आपने वाट्सअप मैसेज मे मुझे लिखा कि–“सरकार अगर कोई ज़रूरत महसूस करे और रचनाकार से उस विषय पर कुछ रचना तैयार करने के लिए कहे तो इसमें किसी को आपत्ति क्यों हो? सरकार में बैठकर मुझे लगता है कि रचनाकार इन मुद्दों पर भी लिखेंगे तो सरकार जनजागरूकता के लिए उन रचनाओं के माध्यम से भी आगे बढ़ेगी।”* (मनीष सिसोदिया)

मनीष भाई, सरकार की जरूरत के कथित आग्रह पर आप अलग से काम कर सकते है। आपके संदेश से सवाल यह भी उठता है कि क्या अभी तक रंगकर्मी मुद्दे विहीन नाटक कर रहे थे? क्या सही है क्या गलत, हमे अभी तक पता ही नही था ?? अब आप हमे दिशा देकर कृतार्थ करेगे?–सत्ता मे बैठ ऐसी गलतफहमी कम से कम आपको तो नही होनी चाहिए।

साहित्य कला परिषद के भरत मुनि रंग महोत्सव और युवा नाट्य महोत्सव मे विषय की यह शर्त लगा आप रंगकर्मी की स्वायत्तता के हक को बाध्य कर रहे है। –महोत्सव मे आर्थिक पक्ष हटा दीजिए। फिर देखिए कितने रंगकर्मी आपके मुद्दो पर काम करते है??

आपके के इसी तर्क पर जब भाजपा अपनी जरूरत के अनुरूप पाठ्यक्रम मे कुछ जोड़ती है या अपनी ‘जरूरत’ के मुताबिक इतिहास मे संशोधन या बदलाव करती है तो हम/आप आपत्ति क्यो करते है ?

भाजपा और आप की सरकार की जरूरत के मुददो मे अंतर जानता हूॅ। पर तर्क दोनो का एक ही क्यो है ?

दरअसल इसके लिए आपको लेखको की कार्यशाला करनी चाहिए कि वह आपके दिए विषयो पर लिखे फिर रंगकर्मी को तय करने दीजिए कि उसे क्या करना है। करना भी है या नही? इतनी आजादी उन्हे दिजिये। –हाॅ, मुझे साहित्य कला परिषद के बारे मे कुछ कहना या लेना देना नही है। कला के नाम पर वह तो एक नकारा और भ्रष्ट तंत्र है । जिसे ना कपिल मिश्रा ने सुधारा ना आपने समझा।

मनीष भाई मुझे आपकी नीयत पर कोई शक नही है, पर आपके इसी तर्क का सहारा लेकर जब कोई ओर अपनी जरूरत हम पर लादेगा तब हम उसका विरोध किस नैतिक आधार पर करेंगे ?

सबसे महत्वपूर्ण बात- दुनिया के इतिहास मे जब भी रचनात्मकता को सत्ता या सरकार ने दिशा निर्देश जारी किए ,तब तब दोयम दर्जे का काम सामने आया है। आपातकाल से लेकर छद्म राष्ट्रभक्ति तक इसके उदाहरण सामने है।

 

सुझाव : कुछ बेहतरीन नाटक जो इन्ही विषयो के करीब हो, (सरकार की जरूरत के हिसाब से हो) चुन कर उन्हे दे सकते थे। पर आपकी साहित्य कला परिषद समिति मे इतने समझदार कहाॅ है? –आप साहित्य कला परिषद के इस गैर लोकतांत्रिक फैसले की समीक्षा करे । निवेदन है कि विषय की बाध्यता वाले नियम को तुरंत हटाए। याद रखे कि वैकल्पिक राजनीति के लिए सार्थक सांस्कृतिक नीति की भी जरूरत होती है।आपने आन्दोलन मे नाटक की ताकत देखी है। रंगमंच की समस्याए ढेर सारी है।फेस्टिवल करने या फीते काटने से कला संस्कृति का विकास नही होता। उसके लिए बिना आग्रह पूर्वाग्रह के संवाद करना होगा। सिर्फ पसंदीदा लोगो की मीटिंग्स बुला कर कुछ हासिल नही होगा। इस पहलू पर भी ध्यान दीजिए। समस्याओ को हल करे ना कि नए फैसले लादे।

 

मनीष भाई एकतरफा फैसले कर उसे लागू करवाना तो स्वराज की किताब मे भी कही नही लिखा है।

अगर आप चाहे तो कभी भी स्वायत्तता के विषय पर खुले मंच से मुझसे संवाद कर सकते है।

आपके सकारात्मक जबाब के इंतजार मे आन्दोलनो का आपका पुराना साथी —

 

अरविन्द गौड़

अस्मिता थियेटर

@ फेसबुक 

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