मित्रो। … होली मुबारक ! आइए `सुदीप ‘ बनें !…/ ओम प्रकाश , धर्मयुग वाला
डॉ. धर्मवीर भारती किन्हीं अंशों में अपने को शूली पर चढ़े ईसा से जुड़ा मानते थे। सुदीप जी का तो जीवन ही , दूसरों की कमजोरियों और स्वार्थों के लिए शूली पर चढ़े, कतरा-कतरा निचुड़ते चले जाना रहा है। शूली चढ़ाये लोगों की यदि कोई जाति है, तो यह जाति है सुदीप जी की।
बरसों पहले ज्ञानपीठ के मंच से तकष़ि शिवशंकर पिल्लै को सुना था। उन्होंने कहा था-“ मैं साल में जो ८० क्विंटल धान पैदा करता हूँ, उसकी कीमत मेरी किसी भी साहित्यिक किताब से ज्यादा है । ” वे लहलहाती फसलें उगाने के कथाकार थे।
आपने किसी चट्टान पर पड़े किसी बीज के जम आये अंकुए के जी जाने की जद्द्दोजहद को देखा है? जिस पौधे की फुनगी नोंच दी गयी हो,उसे घावों पर मलहम लगाकर दोनों हाथ उठाये फिर से आसमान की ओर बढ़ चलते देखा है? फसलों के जो जवारे पैरों से कुचल उठते हैं,जिनके हाथ-पाँव, सर-धड़ मरोड़ उठाते हैं, उन्हें भी सिर उठा बालियां संजो लेते देखा है?
या आपने ऐसे किसी चट्टान जमे अंकुए को ,ऐसे किसी फुनगी नुचे पौधे को या ऐसे किसी दब उठे जवारे को नयी जमीन, थोड़ा खाद-पानी, थोड़ी सी हाथों की सहलाहट दी है?
दी है तो यह प्राण शक्ति देने की दास्ताँ है दोस्तों। संजीवनी बांटने की दास्ताँ। पत्रकार, साहित्यकार, लेखक, कवि, कथाकार श्री सुदीप इसी आशा-विश्वास, प्राणशक्ति, संजीवनी बांटने के साक्षी, प्रहरी और रचनाकार हैं। उनकी रचनाएँ त्रस्त और पीड़ित मानवता को सहलाती हैं, सहारा देती हैं, ढाढस बंधाती हैं.। उन्हें जीने की एक नयी आश देती हैं। उनकी रचनाएँ जीवन देने की रचनाएँ हैं, और वे जीवन देने के रचनाकार हैं।
इस मायने में, कवि -कथाकार, लेखक, पत्रकार श्री सुदीप का ७ अप्रैल २०१९ को मुंबई में मनाया जा रहा प्लैटिनम जुबली समारोह हम सब लेखकों -पत्रकारों-कलाकारों-रचनाकारों के लिए अपने, जीवन और अपने किये-धरे को देखने-जांचने का एक बेहतरीन मौका भी हो सकता है। हम अपनी रोजी के लिए लिख रहे हैं, अपने ईगो के लिए लिख रहे हैं, लिखने और लेखक कहलाने के लिए लिख रहे हैं, या फिर हमारे भीतर जो मनुष्य है, वह, दबी-कुचली, शोषित-पीड़ित मानवता का परचम फहराने के लिए लिख रहा है?
किस लिए लिख रहे हैं हम? क्या लिख रहे हैं हम? और क्यों लिख रहे हैं हम ? और पत्रकारिता वगैरह की लेखन-मनन से जुडी नौकरियाँ या काम कर रहे हैं तो भी क्यों, कैसे और किसलिए कर रहे हैं? श्री सुदीप का प्लैटिनम जुबली समारोह हम सभी के लिए यह जांचने का भी वक्त है। ८ साल साक्षी हूँ मैं स्वयं, नहीं था पूरी टाइम्स ऑफ़ इंडिया बिल्डिंग में उन जैसा कोई और, जिसने प्रूफ पढ़ने, लेआउट बनाने-जांचने, प्रोडक्शन संभालने जैसे कामों को भी लिखने-पढ़ने से बड़ा काम माना हो, और जिसने इस काम को भी पूजा और धर्म बना दिया हो। किसी ने कभी पूछा था–सुदीप जी का धर्म क्या है? मैंने कहा था-काम। किसी ने कभी पूछा था, सुदीप जी का मर्म क्या है? मैंने कहा था परफेक्शन.। एक मित्र ने अभी ही फेसबुक पर उनके असली नाम और जाति की पड़ताल की है। मैंने उन्हें फ़ोन करके कहा है- उनका असली नाम है- कावेह। द ब्लैकस्मिथ। ईरानी क्रांति का महानायक। जिसने फाड़ी अपनी कमीज, लहराया उसे हवा में, और, अवाम को एक अनुगूंज, परचम और मुकाम मिल गया। कावेह लुहार था। सुदीप जी जुलाहे हैं। कबीर के वंश के। मोची हैं। रैदास से रिश्ता है उनका। पीपा हैं। राज-पाट हम और आप क्या देंगे उन्हें। वे भगत हैं । शेख फरीद। One of those people, who realize the true purpose and meaning of life and acquire virtues of the Divine. And who, through his quest for the Divine, practise higher values of truth, wisdom, kindness and love for all. Who recognize the Creator in the creation.
डॉ. धर्मवीर भारती किन्हीं अंशों में अपने को शूली पर चढ़े ईसा से जुड़ा मानते थे। सुदीप जी का तो जीवन ही , दूसरों की कमजोरियों और स्वार्थों के लिए शूली पर चढ़े, कतरा-कतरा निचुड़ते चले जाना रहा है। शूली चढ़ाये लोगों की यदि कोई जाति है, तो यह जाति है सुदीप जी की।
मेरे अग्रज, जीवन देने का, संजीवनी बांटने का लेखन करते हैं, सो उनके प्लैटिनम जुबली समारोह को हम जोड़ रहे हैं, पांच ऐसे कथानकों से , जो जीवन देने और अमृत बांटने का ही काम करते हैं। वे जो असल `सहित्य’ हैं। उनमें से एक का देखिये कथानक– कोई भी हो, देश में कहीं से भी, किसी भी जाति -धर्म , संप्रदाय से , यदि उसे कैंसर है, और इलाज के साधन नहीं हैं उसके पास, तो ये कुछ लोग हैं जिन्हें पता चले इस बारे में तो वे बढ़िया से बढ़िया डॉक्टर से तुरंत इलाज. कराते हैं। । उसके रहने-खाने की भी व्यवस्था करते हैं। और पुनर्वास की भी। हर रविवार वे बिना नागा अपना दूसरा सारा काम-धंधा छोड़ केवल और केवल कैंसर मरीज़ों की सेवा करते हैं। इस कथानक में कैसी भी परिस्थितियां जोड़ लें , कोई भी पात्र बुन लें। कहने के लिए चाहे जो भी फॉर्मेट चुन लें। ये तो हर हफ्ते ऐसी १०-२० `कहानियां ‘ लिखते चलते हैं।