दुनिया की सबसे ऊंची नदी ब्रह्मपुत्र इन दिनों सुर्खियों में है। खबर है कि चीन ब्रह्मपुत्र के किनारे जलविद्युत परियोजनाएं स्थापित करने के साथ-साथ बांध बनाकर इसके पानी को मोड़ने की तैयारी कर रहा है। यदि चीन इसमें सफ़ल हुआ तो पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है, जहां के लिए यह नदी जीवनरेखा के समान है। पवित्र ब्रह्मपुत्र नदी भारत के लिए आत्मा के समान है। खासकर पूर्वोत्तर भारत के लिए। तिब्बत में करीब 4 हजार मीटर की ऊंचाई पर कैलाश मानसरोवर पर्वत के ग्लैशियर से शुरू होने वाली यह दुनिया की सबसे ऊंची नदी है। दुनिया की सबसे तेज प्रवाह वाली नदियों में भी यह एक है। पूर्व दिशा में बहने वाली यह नदी तिब्बत में करीब दो हजार किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले में प्रवेश करती है। अरुणाचल प्रदेश के बाद असम और मेघालय से गुजर कर यह बांग्लादेश में प्रवेश करती है। उद्गम स्थल से लेकर समुद्र में मिलने तक इसकी कुल लंबाई करीब 2900 किलोमीटर है।
ब्रह्मपुत्र गंगा के बाद भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। असम की सभ्यता, संस्कृति और अर्थव्यवस्था के लिए तो ब्रह्मपुत्र नदी जीवनरेखा की तरह है। असम के अधिकांश लोग खेती से जुड़े हैं और ब्रह्मपुत्र नदी से उन्हें सालों भर सिंचाई की सुविधा मिल जाती है। असम के प्रमुख शहर डिब्रूगढ़, तेजपुर और गुवाहाटी इसी नदी के किनारे स्थित हैं। यह नदी असम के लोकगीतों और वहां की संस्कृति का भी प्रमुख हिस्सा है। चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी की जलधारा मोड़ने की खबरों के बीच असम के लोग इसके दुष्प्रभाव को लेकर आशंकित हैं। ब्रह्मपुत्र के जल प्रवाह पर चीन का नियंत्रण होने से न केवल पूर्वोत्तर भारत के खाद्य उत्पादन पर विपरीत असर पड़ेगा, बल्कि अरुणाचल प्रदेश और असम की तमाम पनबिजली परियोजनाएं ठप हो जायेंगी। बिजली उत्पादन प्रभावित होने का असर पूर्वोत्तर के साथ-साथ पूरे देश के औद्योगिक विकास पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि ब्रह्मपुत्र के पानी को मोड़ने से इसके निचले हिस्से में पोषक तत्वों से युक्त तलछट कम हो जायेंगे। इससे भारत पर तो असर पड़ेगा ही, बांग्लादेश को भी व्यापक नुकसान होने की आशंका है, क्योंकि वह खेती और पानी की अन्य जरूरतों के लिए व्यापक रूप से ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्भर है।
भारत-चीन संबंधों में सीमा विवाद के अलावा नदी जल का मुद्दा भी प्रमुख है। संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा पारित कानूनों के मुताबिक कोई भी देश किसी अंतर्राष्ट्रीय नदी के पानी के प्रवाह को बाधित नहीं कर सकता है लेकिन चीन ने इस अंतर्राष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। इसका कारण यही है कि अनेक बड़ी नदियों का उद्गम स्थल चीनी नियंत्रण वाला तिब्बत क्षेत्र है। तिब्बती पठार के 25 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर नियंत्रण होने के कारण चीन ब्रह्मपुत्र नदी का भरपूर लाभ उठाने की स्थिति में है। इसी का फ़ायदा उठाते हुए चीन ने ब्रह्मपुत्र को मोड़ने की योजना पर पिछले साल ही काम शुरू कर दिया है। इस योजना के अगले पांच से सात वर्षो में पूरी होने की संभावना है। ब्रह्मपुत्र नदी भारत और बांग्लादेश के बड़े भू-भाग से होकर गुजरती है, लेकिन इस नदी के पास निर्माण कार्य शुरू करने से पहले चीन ने दोनों देशों से किसी तरह की बातचीत की जरूरत नहीं समझी, जबकि चीन की यह योजना दोनों देशों के लिए गंभीर परेशानी का सबब बन सकती है।
दरअसल, कई दशक से दक्षिणी और उत्तरी चीन के लोगों के जीवन का आधार रही यांगत्जे नदी में आज जलस्तर गिरने लगा है। कहीं-कहीं तो यह लगभग सूख गयी है। नदियों के किनारे बसे शहरों और उसके निवासियों की सासें नदी जल की धारा पर ही निर्भर करती है। इसलिए यांगत्जे नदी के सूखने से चीन के अधिकारियों को बड़ी आबादी के जीवन संकट का अहसास होने लगा है। अपने निवासियों को इस संकट से उबारने के लिए ही चीन के कुछ लॉबिस्ट ने अपनी सरकार को ब्रह्मपुत्र नदी पर डैम बनाने का सुझाव दिया। उत्तर चीन के शहरों को जल संकट से बचाने के लिए चीन ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को उत्तर दिशा की ओर मोड़ कर अपनी येलो नदी को भरना चाहता है। इसके अलावा इस योजना से चीन के एक बड़े भूभाग में सिंचाई की सुविधा भी सुलभ होगी। चीन ने वह स्थान भी चिह्नित कर लिया है, जहां से इसका रुख मोड़ा जाना है। इतना ही नहीं, चीन इस पर 40 हजार मेगावाट क्षमता की एक जल विद्युत परियोजना लगाने की भी तैयारी कर रहा है, जिससे उत्पादित बिजली भारत और बांग्लादेश को बेची जायेगी।
अनुमानों के मुताबिक चीन ब्रह्मपुत्र नदी के करीब एक तिहाई पानी को अपने देश की और मोड़ेगा। एक बार यह योजना पूरी हो जाने के बाद चीन ब्रह्मपुत्र के और पानी को भी देश के दूसरे हिस्सों की ओर मोड़ने पर काम शुरू कर सकता है। चाइनीज सोसाइटी ऑफ़ हाइड्रोपॉवर इंजीनियर्स के डिप्टी जनरल सेक्रेटरी झांग बोटिंग ने अभी हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि छोटी नदियों के सूखने के कारण चीन में बिजली की कमी हो गयी है। इस कमी को पाटने की जरूरत है, नहीं तो विकास की दर प्रभावित होगी। इसके लिए ज्यादा से ज्यादा हाइड्रोइलेक्ट्रिक डैम के निर्माण की जरूरत होगी। नवंबर 2010 से चीन ने तिब्बत के झंगमू में पहले हाइड्रोपावर डैम का निर्माण कार्य आरंभ किया। इसकी क्षमता 510 मेगावाट है। चीन के अधिकारियों का कहना है कि यह परियोजना 2014 तक तैयार हो जायेगी। यह डैम चीन के 28 हाइड्रोपावर डैम परियोजना का पहला चरण है। चीन की योजना ब्रह्मपुत्र नदी पर 28 और डैम के निर्माण की है। हालांकि अभी इसे मंजूरी नहीं मिली है। ब्रह्मपुत्र पर चीन वहीं डैम बना रहा है, जहां से यह भारत की ओर मुड़ता है।
चीन ने हालांकि कहा है कि डैम बनाने से भारत को कोई नुकसान नहीं होगा और भारत में ब्रह्मपुत्र नदी पूरी वेग से बहती रहेगी लेकिन अनेक सामाजिक संगठनों और पर्यावरणविदों ने उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों एवं अन्य प्रमाणों के आधार पर कहा है कि चीन अपने भू-भाग में ब्रह्मपुत्र नदी पर 11 बड़े जल संग्रहण टैंक, दो बड़ी नहरों और पांच विशाल डैम का निर्माण कर रहा है। उक्त निर्माण कार्य 2015 तक पूरा होने का अनुमान है, जिसके पूरा होने पर भारत और बांग्लादेश के हिस्से में आने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का जल प्रवाह 20 फ़ीसदी तक रह जाने की आशंका है। ऐसे में यह नदी 2050 तक पूरी तरह सूख सकती है। जाने-माने पर्यावरणविदों एवं सामाजिक संगठनों ने चीन की तैयारियों को गंभीरता से लेते हुए भारत सरकार से इसके खिलाफ़ विश्व मंच पर आवाज उठाने की मांग की है।