बांदा का पानी बाबा

इसे क्या कहेंगे? जुनून..! या और कुछ..! जो भी हो, पर इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती| बासू मिठाई वाले के समानांतर बांदा का पानी बाबा बनकर उभरे रामकिशुन गुप्ता उर्फ बासू की बांदा के पेयजल संकट से निपटने की एडवांस तैयारियों को कोई चाहे तो चलताऊ चुनावी चश्मे से देख सकता है| लेकिन हाल फिलहाल दूर दूर तक जब कोई चुनाव नजर नहीं आता तो इसे नेकनीयती मानने में किसी को हर्ज नहीं होना चाहिए|

नियराती गर्मी में इस बार बुंदेलखंड का पेयजल संकट बड़ा हो सकता है| यह अच्छा है कि संभावित संकट को लेकर यूपी की योगी सरकार संजीदा दिख रही है और फौरी उपायों के लिए खजाने का मुंह भी खोल दिया है|

लेकिन इस सबके बावजूद संभावित पेयजल संकट से निपटने को लेकर बांदा जल संस्थान का रवैया ज्यादा उम्मीद नहीं जगाता| बल्कि जनवरी की शुरुआत में बाधित जलापूर्ति के साथ सामने आई जल संस्थान की तीन दिवसीय नाकामी और बाद में केन नदी के तेजी से साथ छोड़ने की खबरों ने बांदावासियों की चिंता बढ़ा रखी है|

ऐसे में पेयजल संकट से निपटने में निजी प्रयासों की आहुति देने का बासू का जुनूनी अंदाज बांदा शहर के बाशिंदों को एक हद तक आश्वसान जैसा है| बासू बाबा की तैयारी काबिलेगौर है| नए टैंकरों का निर्माण कराया जा रहा है और दो महेंद्रा ट्रैक्टरों के फाइनेंस की प्रक्रिया को तेजी से अंतिम रूप दिया जा रहा है| योजना है कि ज्यादा संसाधन जुटाकर बस्ती दर बस्ती टैंकरों से जलापूर्ति सुनिश्चित की जाएगी|

इस नेक काम को लेकर जल संस्थान के रवैए पर पिछली गर्मी में तब सवाल खड़े हो गए थे जब बासू के टैंकरों को नवाबटैंक के पास वाले ट्यूबवेल से पानी भरने से रोक दिया गया था| इसे राजनैतिक दबाव से जोड़ कर देखा गया था| लेकिन बासू ने दूरी बढ़ने के बावजूद जमुनादास के महाबीरन स्थित ट्यूबवेल से बांदा शहर में टैंकरों के जरिए जरूरी जलापूर्ति का सिलसिला चलाए रखा था|

और यही वह दौर था जब बासू ने नई पहचान बनाई| बासू मिठाई वाले के साथ अब उन्हें बांदा का पानी बाबा भी कहा जाता है|

नए व पुराने धनकुबेरों की भरमार वाले बांदा शहर में लगातार गहराते पेयजल संकट के मोर्चे पर जब निजी प्रयासों का फकत टोटा नजर आता हो या सारे प्रयास प्याऊ खोलने और वाटरकूलर मुहैया कराने तक सिमटे दिखते हों तब बांदावासियों को पेयजल संकट से उबारने की बासू की भगीरथ तैयारियां सहज ही ध्यान खींचती हैं|

क्या हम जनहित का जुनून प्रदर्शित करती इस पहल को सराहने की उदारता बरत सकते हैं?

यदि नहीं तो क्यों?

फेसबुक : ओम  तिवारी की वाल से

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