बहू-बेटे को सिखाया सबक , बेची कोठी… खरीदा फ्लैट… त्यागा मोह !
विष्णु गुप्त / न्यूज़ गेटवे / बहू-बेटे को सिखाया सबक / नई दिल्ली /
सुबह-सुबह दिल्ली के इन्द्रपस्थ में यशराज जी टहलते मिल गये। अचानक देख कर मैं आश्चर्यचकित ढंग से पूछा.. यशराज जी आप यहां, इस सडक पर, आपके हाथ में न डंडा है और न आपके साथ जर्मन सैफड कुता हैे, न ही आपका नौकर है। पहले तो उन्होंने खामोशी का चादर ओढ लिया पर धीरे-धीरे खुल गये, कहने लगे सब कुछ समाप्त हो गया, सब मोहमाया है, यहां कोई अपना नहीं है, औलाद तो हम जैसे बूढो को बोझ और कबाब मे हड्डी समझते हैं, यह कहते हुए उनके शरीर की भाषाएं यह बोल रही थी कि उनकी पीडा कितनी गहरी है।
यशराज की आईआरएस थे। इन्होंने दिल्ली के पोश इलाके बंसत कुंज में कोठी बनायी थी, वह भी अपने पंसद के। पत्नी की मौत हो चुकी थी। एक दिन बहू उनसे बोलती हे कि पापा आपको पीछे के सर्वेंट क्वाटर में सिफ्ट करना होगा, हम उस सर्वेंट क्वाटर को एयर कंडिशन बनवा देती हूं, आप साथ रहते हैं तो हमलोगों की प्राइवेशी जाती रहती है, आपको भी देख-समझ कर परेशानी होती है, सर्वेंट क्वाटर में आपको कोई परेशानी नहीं होगी, नौकर समय पर खाना दे देगा। यह सुनते ही यशपाल जी को सदमा लगा, हार्ट अटैक हो गया। किसी तरह उनकी जान बची।
उन्होंने निर्णय लिया। वह कोटी जो करीब दस करोड की थी, बेच दी। इन्द्रप्रस्थ स्थित एक अपार्टमेंट में उन्होने एक छोटा सा फ्लैट खरीद लिया। जब खरीददार कोठी पर कब्जा जमाने आया तब बहू और बेटे के पैरों के नीचे की जमीन सिसक चुकी थी, ऐसे सबक देने की उम्मीद नहीं थी। बहू-बेटों ने हर चाल चली पर यशराज माने नहीं। हार कर बहू-बेटे को कोठी खाली करनी पडी, किसी दूसरे ठिकाने का जुगाड करना पडा। आज यशराज जी ने एक नौकर रख लिया है जो समय पर खाना दे देता है, अन्य जरूरतों को भी पूरा कर देता है।
यशराज जी ने अंत में कहा कि विष्णु जी आप सुखी है, और भगवान की दया आप पर है जो आपने शादी नहीं की। मैं किस उम्मीद और समर्पण के साथ बच्चे का पाला था और आज के औलाद माता-पिता को किस प्रकार से देखते हैं, उसका उदाहरण मैं हूं। सिर्फ यशराज जी ही क्यों बल्कि मैं ऐसे दर्जनों लोगों को जानता हूं जो अपने औलाद की करतूतों से दुखी है और एकांत का जीवन जीने के लिए विवश हैं। पर यशराज जी ने जो सबक दिया है वह आज के समाज को आईना दिखाता है। जब औलाद के लिए माता-पिता नही ंतो फिर माता-पिता के लिए औलाद का मोह-माया क्यों? शाबश यशराज जी………… आपको प्रणाम।
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