बहुत याद आएंगे चचा रजनीकर …
बहुत ही दुखद… बहुत याद आएंगे चचा रजनीकर … पत्रकारिता के पुरोधा… चलती फिरती डिक्शनरी… अपनी धुन के पक्के… न सावन हरे न भादों… सिंगल चेसिस और अनूठे मिज़ाज़ में उनका कोई सानी नहीं था…उदास तो कोई उनके सामने कोई रह जाय तो मानो उनकी इन्सल्ट हो जाय… नौकरी उनकी नौकरी करती थी… पच्चीसियों नौकरी छोड़ी पर जब राष्ट्रीय सहारा से जुड़े तो ताउम्र उसी के हो के रह गए…. कहते मैं संपादक कभी नहीं बनना चाहता.. मैं serious नहीं रह सकता… मैं मुँहफट ठहरा….दूसरे दिन बाहर हो जाऊंगा… स्वभाव क्रान्तिकारी लेकिन बच्चे बूढ़े सभी को अपना बना लेते.. मारवाड़ी खानदान में पैदाइश और शुध्द शाकाहारी थे.. उस जमाने में अपना जीवन साथी भी सबसे रिश्ता तोड़ कर चुना.. और बख़ूबी निभाया भी… आज बहुत कुछ कहना चाहता हूं लेकिन दिल भर आया है… ईश्वर ऐसे नायाब इंसान कम ही बनाता है… भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे..