फ्रेमवर्क समझौते का सच क्या है
सत्य नारायण मिश्र / न्यूज़ गेटवे / ग्रेटर नगालिम / गुवाहाटी /
केंद्र और नगा विद्रोही संगठन एनएससीएन (आईएम) के बीच कथित फ्रेमवर्क शांति समझौते को हुए धीरे-धीरे तीन साल होने जा रहे हैं। पड़ोसी राज्यों की भौगोलिक संप्रभुता प्रभावित नहीं होने के दिलासे के सिवाय केंद्र सरकार की तरफ से इस बारे में कोई तथ्यगत खुलासा अभी तक नहीं किया गया। इस बीच गत दिवस केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु ने असम के वार्ता
समर्थक अल्फा सहित अन्य संगठनों की संविधान सम्मत मांगों पर केंद्र की संवेदनशीलता का इशारा जरूर किया है। रही बात नगालिम पर हुए ड्राफ्ट समझौते की तो एक बार फिर चुप्पी साध ली गई है। बिना किसी शक असम सहित पूर्वोत्तर के सभी लोग स्थायी शांति के चिरकामी हैं। चाहते हैं कि यहां दशकों से व्याप्त उग्रवाद और विद्रोह की आग हमेशा के लिए शांत हो जाए।
नगालैंड में जारी देश के सबसे पुराने विद्रोही आंदोलन ने अप्रतिम शौर्य के धनी नगा समुदाय की तरक्की के अलावा नगा भूमि के विकास को लगभग पूरी तरह से रोक रखा है। वहां एनएससीएन के सभी धड़े अगर केंद्र की किसी पहल से राजी हो जाएं तो इसमें किसी अन्य पूर्वोत्तरीय राज्य को कोई आपत्ति नहीं होगी। लेकिन असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के नगालैंड की सीमा से लगने वाले नगा आबादी के इलाकों को कथित गे्रटर नगालिम में शामिल करने पर तो यहां कोई भी सहमत नहीं होगा। पेंच यहीं फंसा हुआ है।
केंद्र यह साफ नहीं कर रहा कि आखिर एनएससीएन(आईएम) के साथ हुए दो साल से अधिक पूराने ड्राफ्ट समझौते में है क्या। वहीं एनएससीएन (आईएम) के मुख्यालय से इन तमाम इलाकों में बराबर यह अहसास कराया जा रहा है कि ये सब ग्रेटर नगालिम के हिस्से हैं। सरकारी दावे-दिलासे कुछ भी बताएं, इन इलाकों में हर दिन-प्रतिदिन की जरूरत से जुड़ी चीजों पर कर उगाही से लेकर अन्य प्रकार की प्रशासकीय गतिवििधियां उग्रवादी संगठन की समानांतर सरकार की ही पुरअसर दिख रही है।
पहले भी कहा जा चुका है कि विद्रोही संगठन का ग्रेटर नगालिम का दावा सही निकला तो नगालैंड की सीमा से लगे असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के अकूत प्राकृतिक संपदा से लबरेज कई सारे इलाके चले जाएंगे। एनएससीएन (आईएम) का
तो बराबर यही कहना है कि अगस्त 2015 के फ्रेमवर्क समझौते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में सैद्धांतिक रूप से ग्रेटर
नगालिम स्वीकार हो चुका है। आजाद भारत में किसी उग्रवादी या विद्रोही संगठन के साथ हुए सबसे बड़े समझौते के रूप में बहु-प्रचारित इस फ्रेमवर्क करार पर अब तक केंद्र सरकार का मौन जब तक नहीं टूटेगा, संबंधित राज्यों से सवाल तो उठते ही रहेंगे। केंद्र को यह साफ करना चाहिए कि क्या वाकई नगा विद्रोही संगठन के कहे मुताबिक फ्रेमवर्क समझौते में नगाओं को एक सार्वभोम विकसित राजनीतिक नागरिक के तौर पर आगे बढ़ने की अधिकतम सार्वभौमिक शक्ति देने की बात को स्वीकारा गया है। औऱ क्या सचमुच में नगा विद्रोही संगठन के दावे के अनुरूप नगाओं के यूनिक इतिहास, पहचान, संप्रभुता और सीमाओं को माना गया है।