पृथ्वी पर गंगा का आगमन प्रकृति का अनुपम उपहार है

देवि गंगे !…धरा पर स्वागतम्   !  


-टिल्लन रिछारिया 

पृथ्वी पर गंगा का आगमन प्रकृति का अनुपम उपहार है। खेत,वन,उपवन और मानवों पर बड़ा उपकार है। ऐसी अनुपम सृष्टि प्रकृति ने भारत भूमि को ही दी।   

गंगा लौकिक भी है अलौकिक भी। गंगा के पुरा आख्यान रोमांचक हैं , गूढ़ हैं दार्शिनक  और भक्ति भाव से भरे हैं।  आनंद के चरम अध्यात्म की राह दिखाते हुए  इह लोक से पर लोक  तक ले जाते हैं। मोक्ष का द्वार खोलते हैं। मृत्यु काल में  गंगाजल की दो बूंद इस लोक से बड़े प्रेम से आगे का सफर  सुलभ और सुखद बना देतीं हैं।  गंगा  मोक्षदायनी है।  गंगा का  पृथ्वी पर  अवतरण  प्रकृति  की अप्रतिम घटना है ।     ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी यानी ‘ गंगा दशहरा ‘ पृथ्वी पर गंगा का अवतरण दिवस है। पुराणों  के अनुसार ऋषि भगीरथ को अपने पूर्वजों की अस्थियों के विसर्जन के लिए बहते हुए निर्मल जल की आवश्यकता थी । इसके लिए उन्होंने मां गंगा की कड़ी तपस्या की जिससे मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हो सके । मां गंगा का बहाव तेज होने के कारण वह उनकी इस इच्छा को पूरा नहीं कर पाई । लेकिन उन्होंने कहा की अगर भगवान शिव मुझे अपनी जटाओं में समो  कर पृथ्वी पर मेरी धारा प्रवाहित  कर दें तो यह संभव हो सकता है। उसके बाद ऋषि भगीरथ ने शिव जी की तपस्या की और उनसे गंगा को अपनी जटाओं में समाहित करने का आग्रह किया ।  गंगा ब्रह्मा जी के कमंडल में समा गईं और फिर ब्रह्मा जी ने शिव जी की जटाओं में गंगा को प्रवाहित कर दिया । इसके बाद शिव  ने गंगा की एक छोटी सी धारा पृथ्वी की ओर प्रवाहित कर दी । तब जाकर भगीरथ ने अपने पूर्वजों की अस्थियों को विसर्जित कर उन्हें मुक्ति दिलाई ।…गंगा पूजित है ,वरेण्य है –अनादि काल से गंगा पर्यटकों  के लिए  श्रध्दा और आकर्षण  का  केंद्र  है।  भारतीय पर्यटन के मानचित्र में गंगा  प्रमुख आकर्षण  है। हिमालय से सागर  तक  के अपने सफर में  गंगा  आप को  इतिहास, संस्कृति, तीर्थ ,धर्म-कर्म , उमंग और रोमांच  के इतने पड़ावों से  रू-ब-रू  कराती है कि  आप गंगा के सम्मोहन से  जीवन पर्यन्त मुक्त नहीं हो पाते , बार बार गंगा के सान्निध्य के लिए आते हैं।  


 पुराणों में गंगा को लोकमाता कहा गया है। महाभारत में इसे त्रिपयागामिनी, बाल्मीकि रामायण में त्रिपथगा और रघुवंश और शाकुन्तल में जिस्नोता कहा गया है। विष्णु-धर्मोत्तरपुराण में गंगा को त्रलोवय व्यापिनी कहा गया है। शिवस्वरोदय में इड़ा नदी को गंगा कहा गया है।  पुरा आख्यानों में वर्णित गंगा आज गोमुख से गंगा सागर तक प्रत्यक्ष हैं। सदियों से भारत  समय,समाज और संस्कृति को जीवंत बनाये हुए हैं।  हम गंगा की अभ्यर्थना करते हैं — 


 स्वागतम्  …सुस्वागतम्   …

देवि गंगे !…धरा पर स्वागतम्   !

स्वागतम्  …सुस्वागतम्   …

नमामि गंगे !…धरा पर स्वागतम्   !!

  तुम धरा का प्राण-जीवन 

  तुम धरा की आरती !

  तुम प्रकृति की पूज्य तनया 

  तुम पर निछावर भारती !!

देवि गंगे !…धरा पर आगमन हो शुभम्   !

स्वागतम्  …सुस्वागतम्   …

देवि गंगे !…धरा पर स्वागतम्   !

  तुम धरा की गीत हो 

  काल तुमको गा रहा है!

  सुर,ताल, लय , संगीत हो तुम 

  महाकाल तुमको गा रहा है !!

देवि गंगे !… तुम हो धरा का मन-मरम !

स्वागतम्  …सुस्वागतम्   …

देवि गंगे !…धरा पर स्वागतम्   !!

  तुम धरा पर सत्य हो 

  सत्य का आधार हो !

  सत्य की हो तुम गवाही 

  तुम सत्य का साकार हो !!

देवि गंगे !…धरा पर तुम ही  सत्यम्   !

स्वागतम् …सुस्वागतम …

देवि गंगे !…धरा पर स्वागतम्   !!

शिव सत्व हो तुम,कल्याण तुम हो

  प्रेरणा हो ,धरा के प्राण तुम हो !

  सभ्यता के हर सर्ग की तुम ही रचयिता

  मानवों के अभिशाप का त्राण तुम हो !!

देवि गंगे !…धरा पर तुम ही हो शिवम् !! 

स्वागतम्  …सुस्वागतम्   …

देवि गंगे !…धरा पर स्वागतम्   !!

सहज सुन्दर , देवि छवि , तुम पतित पावन

  धरा है तुम्हारी अल्पना-संकल्पना !

  देव,सुर,नर क्या कर सकेंगे 

  तुम्हारी छवि से मुखर , और कोई कल्पना !!

 देवि गंगे !… तुम धरा पर सुन्दरम्   …अति सुन्दरम्   !!

स्वागतम्  …सुस्वागतम्   …

देवि गंगे !…धरा पर स्वागतम्   !!

शिव,सत्य,सुन्दर जो भी धरा पर 

  सब आपका विस्तार है !

  खेत,वन,उपवन और मानवों पर 

  आपका उपकार है !!

 देवि गंगे !…तुम ही सत्यम्  ,शिवम्,सुन्दरम्   !

नमामि गंगे !…तुम ही सत्यम्  ,शिवम्,सुन्दरम्   !!

स्वागतम्  …सुस्वागतम्  …

देवि गंगे !…धरा पर स्वागतम्   !!

पृथ्वी पर गंगा का आगमन प्रकृति का अनुपम उपहार है। खेत,वन,उपवन और मानवों पर बड़ा उपकार है। ऐसी अनुपम सृष्टि प्रकृति ने भारत भूमि को ही दी। 

भारत की सर्वाधिक महिमामयी नदी ‘गंगा’ आकाश, पृथ्वी , पाताल तीनों लोकों में प्रवाहित होती है। आकाश गंगा या स्वर्ग गंगा, त्रिपथगा, पाताल गंगा, हेमवती, भागीरथी, जाहन्वी, मंदाकिनी, अलकनंदा आदि अनेकानेक नामों से पुकारी जाने वाली गंगा हिमालय के उत्तरी भाग गंगोत्री से निकलकर नारायण पर्वत के पार्श्व से ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयाग, विंध्याचल, वाराणसी, पाटिलीपुत्र, मंदरगिरी, भागलपुर, अंगदेश व बंगदेश को सिंचित करती हुई गंगासागर में समाहित हो जाती हैं।  सागर के साठ हजार पुत्रों को मुक्ति देने वाली  इस गंगा के  जल में कभी कीड़े नहीं पड़ते और यह कभी  दूषित नहीं होती। गंगा के उद्गम पर कुछ ऐसी गुणकारी  जड़ी-बूटियां हैं जिनके स्पर्श करने से गंगा का पानी कभी सड़ता नहीं है और न कभी उसमें कीड़े पड़ते हैं। 

श्री कंठ शिखर से क्षीर गंगा का निकास बताया जाता है। दक्षिण दिशा में हेमकूट पर्वत के पास उत्तरवाहिनी केदारगंगा भगीरथी में मिलती है जहां से भगीरथी रौद्र रूप लिए तीन धाराओं में बहकर ब्रह्मकुंड में गिर जाती है। यहां प्रवाह काफी तीव्र  है। ब्रह्मकुंड के पास ही सूर्य कुंड और गौरी कुंड हैं यहां पर शिवजी ने भगीरथी को अपनी जटाओं में बांध लिया था। गौरी कुंड में जिस शिला पर भगीरथी गिरती है, उस शिला को शिवलिंग की मान्यता है। कहते हैं कि भगीरथी की गति कितनी ही तीव्र हो जाये यह शिला यहीं रहती है, उस पर चढ़कर ही जल आगे बढ़ता है।  

गंगा के किनारे अनेक तीर्थ हैं- गंगोत्री, जहां भगीरथी का उद्गम हुआ, बदरीनाथ, जहां नर-नारायण की तपस्या हुई। देव-प्रयाग, जिस स्थल पर भागीरथी और अलकनंदा दोनों के संगम से गंगा बनी। ऋषिकेश, जिस स्थान पर वह पिता श्री हिमवान से अनुमति लेकर पधारी तथा हरिद्वार जिसे गंगा का द्वार कहा जाता है। तदुपरांत गंगा का तीर्थ है-कनखल, जिस स्थान पर सती ने दक्ष यज्ञ में आत्मदाह किया और शिव ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर डाला था, गढ़मुक्तेश्वर और सोरों, जिन स्थलों पर स्नान करने से मुक्ति मिलती है, प्रयाग जहां गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों का संगम होता है, काशी जो शिव भगवान की पुत्री है। गंगा सागर, सागर के पुत्रों का उद्धार करने वाली तीर्थ स्थली है। 

 उत्तर भारत के बड़े भाग को सिंचित करने वाली गंगा यदि न होती तो प्राकृतिक दृष्टि से यह प्रदेश एक विशाल मरूस्थल हुआ होता। राम की सरयू, कृष्ण की यमुना, रति देव की चम्बल, गजग्राह की सोन, नेपाल की कोसी, गण्डक तथा तिब्बत से आने वाली ब्रह्मपुत्र सभी को अपने में समेटती हुई और अलकनंदा, जाहन्वी, भागीरथी, हुगली, पदमा, मेघना आदि विभिन्न नामों से जानी जाने वाली गंगा अंत में सुंदरवन के पास बंगाल की खाड़ी में समा जाती हैं। 

गंगा अप्रतिम है। गंगा की संस्कृति अप्रतिम है। गंगा भारत की सौभाग्य रेखा है।  प्रति वर्ष करोड़ों पर्यटक गंगा के सान्निध्य में आते हैं।  इसके तट पर आयोजित कुम्भ दुनिया का अप्रतिम मेला है  जो डेढ़ से दो माह तक आबाद रहता है। गंगा पर्यटन के केवल धार्मिक सांस्कृतिक आयाम ही नहीं हैं , सदाबहार घुम्मकडी  के साथ साहस और रोमांच चाहने वालों को भी आकर्षित करती है । गंगा पर्यटन का सिलसिला अनादिकाल से है। इतिहास के गिलयारों ने  फ़ाह्यान , ह्वेनसांग , इब्नबतूता जैसे पर्यटकों को देखा तो हाल फिलहाल   आज के दौर ने  एडमंड हेलेरी और बीटल्स बंधुओं का  स्वागत किया। कितने नाम , कितने अनाम गंगा नहाये लेखा मुश्किल है।  

गंगा विराट है , युग साक्षी है। इतिहास संस्कृति  के लम्बे सफर की गवाह है। रक्त डूबी तलवारों को अपने आंचल से  पोंछने वाली है। शान्ति सौमनस्य के फूल खिलाने वाली है —

 तट पर हुए , बहुत रण मेरे 

मैं जीती हर बार !

जब तक में जीवंत हूँ 

तब तक है संसार !!

  कैसे-कैसे योद्धा आए

  अपने-अपने ध्वज फहराए !

  मैंने क्रूर काल को चूमा 

  इतिहासों पर फूल खिलाए !!

हर युग का हस्ताक्षर हूँ मैं 

मैं जीवन पतवार ! 

जब तक में जीवंत हूँ 

तब तक है संसार !!

गंगा स्वयं विष पी कर अमृत देती है। समय और समाज को वैचारिक आल  जाल सुलझाने के लिए कुम्भ जैसा वैचारिक सांस्कृतिक  मंच देती है। ‘ सर्वे भवन्तु सुखिन: ‘ और ‘ वसुधैव कुटुंबकम ‘ के  उद्घोष साथ बाँहें पसार कर  सब का स्वागत करती है। इसी लिए तो गंगा ‘ मां  ‘ है !

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