पूर्वोत्तर में भी ‘आप’ को मिली हार
न्यूज़ गेटवे / ‘आप’ को मिली हार / नई दिल्ली /
पूर्वोत्तर में हुए चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। नगालैंड और मेघालय में जनता ने अरविंद केजरीवाल की पार्टी को नकार दिया है। इन राज्यों में ‘आप’ को बेहद कम वोट मिले हैं। हार पर अक्सर ‘आप’ पार्टी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है, इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। इस हार पर भी केजरीवाल व पार्टी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
दिल्ली में पूर्ण बहुमत से काबिज ‘आप’ ने 8 जनवरी को घोषणा की थी कि पार्टी मेघालय की 60 विधानसभा सीटों में से 35 पर चुनाव लड़ेगी। इससे पहले दिसंबर में नगालैंड में सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही थी। पार्टी की ओर से राज्यसभा सदस्य संजय सिंह, पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष व आशीष खेतान को पूर्वोत्तर की जिम्मेदारी दी गई थी। मगर, पार्टी ने जिन लोगों से चुनाव लड़ने के लिए संपर्क किया था। उन लोगों ने पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने के ही इन्कार कर दिया था।
कपिल ने उठाए सवाल
‘आप’ के नाराज विधायक कपिल मिश्रा का कहना है कि मेघालय में ‘आप’ केवल छह सीटों पर ही प्रत्याशी उतार सकी। ‘आप’ को सभी छह सीटों को मिलाकर केवल 1140 वोट मिले। इससे अधिक नोटा पर वोट पड़ गए। वहीं, नगालैंड में भी ‘आप’ को कुल मिलाकर 7355 वोट मिले। मिश्रा ने आरोप लगाते हुए कहा कि केजरीवाल बताएं कि अगर उनकी नीतियां सही हैं, तो सभी जगहों से हार क्यों मिल रही है।
कुमार विशवास ने कसा तंज
पूर्वोत्तर में ‘आप’ की करारी हार पर कुमार विशवास ने भी तंज कसा है। कुमार ने ट्वीट कर कहा कि ‘अपने असुरक्षाग्रस्त वैचारिक पतन पर विचार करने की अपेक्षा मतदान व मतगणना की प्रक्रियाओं पर प्रश्न खड़े करने वाले नवपतित आदोलनकारियों को जनता ईवीएम की बजाय अंगुलियों पर गिनने योग्य वोट दे रही है। फिर भी वे नकारात्मकता चमचाच्छादित ओछेपन में मगन हैं। लोकतंत्र के लिए कमजोर विपक्ष घातक है।’
‘आप’ को मिली हार
गौरतलब है कि इससे पहले 27 फरवरी को पंजाब के लुधियाना में नगर निगम के 95 वार्ड के हुए चुनाव में भी ‘आप’ बुरी तरह औंधे मुंह गिरी थी। इसे केवल एक सीट पर ही जीत हासिल हो सकी थी। नवंबर में हुए उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के समय भी ‘आप’ हार गई। वहीं, गुजरात विधानसभा चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा। गोवा विधानसभा चुनाव में ‘आप’ की सभी सीटों पर जमानत जब्त हो गई थी। दिल्ली नगर निगम चुनाव भी ‘आप’ को शिकस्त का सामना करना पड़ा था।