पब्लिशर्स को कंटेंट का भुगतान नहीं किया जा रहा : रूपर्ट मर्डोक

 न्यूज़ गेटवे / विदेशी मुद्रा भंडार / मुंबई  /

सोशल मीडिया को लेकर आजकल चारों ओर चर्चा हो रही है। ऐसे में मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक ने भी एक बयान जारी किया है। उन्‍होंने बताया है कि कैसे इसने मीडिया का परिदृश्‍य ही बदल दिया है।

हाल ही में ‘फेसबुक’ ने न्‍यूजफीड को लेकर बड़े बदलाव की घोषणा की थी। इसमें कहा गया था कि अब ‘फेसबुक’ पर ब्रैंड्स और पब्लिशर्स का कंटेंट कम और दोस्‍तों व परिचितों का कंटेंट ज्‍यादा दिखाई देगा। ‘फेसबुक’ ने फेक न्‍यूज से लड़ने के लिए ये घोषणा की है। इस स्‍ट्रेटजी पर मर्डोक ने गहरी चिंता जताई है। उन्‍होंने यह भी कहा है कि पब्लिशर्स को उनके कंटेंट का भुगतान नहीं किया जा रहा है और यह भुगतान किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि कैरिज फीस के रूप में पब्लिशर्स को भुगतान करने से ‘फेसबुक’ के प्रॉफिट पर तो मामूली असर पड़ेगा लेकिन पब्लिशर्स और पत्रकारों के लिए यह कदम काफी प्रभावशाली रहेगा।।

 

मर्डोक का कहना है, ‘अब समय आ गया है जब चीजों को दूसरे तरीके से देखा जाए। यदि ‘फेसबुक चाहता है कि उसे भरोसेमंद पब्लिशर्स मिलें तो उन्‍हें कैरिज फीस का भुगतान उसी तरह करना चाहिए, जिस तरह का मॉडल केबल कंपनियों ने अपनाया हुआ है। उनका कहना है कि केबल मॉडल में व्‍युअर्स निर्णय लेते हैं कि वे क्‍या देखना चाहते हैं और उस कंटेंट को देखने के लिए भुगतान करते हैं लेकिन ‘फेसबुक’ में ऐसा नहीं होता है। ये पब्लिशर्स अपने कंटेंट और न्‍यूज के द्वारा निश्चित रूप से फेसबुक के मूल्‍यों और अखंडता को बढ़ाने का काम कर रहे हैं लेकिन इस सेवा के बदले उन्‍हें पर्याप्‍त रूप से भुगतान नहीं किया जा रहा है।’

अपने बयान में मर्डोक ने ‘गूगल’ और ‘फेसबुक’ से कहा है कि आजकल इंटनेट पर तमाम सामग्री परोसी जा रही है, जिनकी लोकप्रियता के चलते कंपनियां प्रॉफिट भी कमा रही हैं लेकिन इनमें से अधिकांश सामग्री विश्‍वसनीय नहीं है। उन्‍होंने यह भी कहा है कि इन कंपनियों द्वारा दिए गए सुझाव स्‍वभाविक रूप से पर्याप्‍त नहीं हैं।

मर्डोक का कहना है, ‘स‍बस्क्रिप्‍शन मॉडल को लेकर तमाम चचाएं हुई हैं लेकिन मुझे अभी तक ऐसा प्रस्‍ताव नहीं दिखा है जो पेशेवर पत्रकारिता में सामाजिक मूल्‍यों की पहचान के लिए हो।’ वर्ष 2016 में ‘Pew Research’ द्वारा किए गए एक अध्‍ययन के मुताबिक, करीब 62 प्रतिशत अमेरिकी पाठक न्‍यूज के लिए सबसे पहले ‘फेसबुक’ और अन्‍य सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं जबकि 18 प्रतिशत कभी-कभी ऐसा करते हैं।

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