पत्रकारिता के मेले झमेले

बांदा के हमारे मीटिंग प्वाइंट स्टेशन रोड पर बी ड़ी गुप्ता जी की केमिस्ट की दूकासन के इर्द गिर्द पत्रकार , अखबार और खबरों की खासी गहमागहमी रहती थी । बी डी गुप्ता टाइम्स ऑफ इंडिया के लिये खबरें भेजते , सुमन मिश नवजीवनके लिए् , जगत नारायण शास्त्री आज के लिए, सुधीर निगम दैनिक जागरण , झांसी के लिए और अश्वनी सहगल रामेश्वर गुप्त के सहयोगी के रूप में खबरें बनाते रहते । यहां के जमुना प्रसाद बोस जो बाद में उत्तर प्रदेश सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री रहे , वे अपने समय पी टी आई के लिए खबरें भेजते थे । … मध्ययुग लोकल अखबार के लिए संतोष निगम , बम्बार्ड के लिए विक्रमादित्य सिंह , कैची के लिए नागेंद्र सिंह खबरों की भट्टी दहकाये रहते थे । बांदा उन दिनों मानिकपुर चित्रकूट के पठारी सूखे , शोषण उत्पीड़न , अपराध , चित्रकूट और रामायण मेला के लिए चर्चाओं में रहता था । बाहर के भी तमाम बड़े पत्रकार कवरेज के लिए आते थे । खबरों की सनसनी के लिए बाँदा डेटलाइन खूब खबरें उगलती थी ।…यह 1975 का साल है , आपातकाल के प्रभाव से देश सहमा सहमा सा है । फिर भी खबरें अपना रंग दिखा रही हैं । अश्विनी सहगल ने एक खबर अभो हाल में रामेश्वर गुप्ता के लिए लिखी हैं , एजेंसी से गई है तो हर जगह छपी है । .. खबर है कि ‘ हनुमान जी को फिर पसीना आया ‘ बड़ा शो हुआ है । रामेश्वर गुप्ता डी एम बाँदा द्वारा बुलाये गए हैं , अश्विनी सहगल अटैची बन साथ में गए हैं । .. आगे का वृतांत खुद रामेश्वर जी सुनाते हैं , भइया हम दोनों बड़े बनठन के पान की गिलौरी दबाए गए । एस पी साहब के चैंबर में घुसे की कड़क आवाज आई , पान थूक कर आइए । सर्दियों के दिन , छूटा दनादन पसीना , पान थूका , मुंह धोया ,गए अंदर पै पसीना न रुके , लगा , का हाय हुइगा । .. .एस पी फिर गरजे , कार्ड रख दीजिए , दिमाग खराब होगया है आप लोगों का , हनुमान जी की फिर पसीना आया । …जाइये खबर लिखना बंद ,जब बुलाया जाय तब आइयेगा । दुम दबा के खिसक आये । .. दरअसल इस खबर में यह आशंका व्यक्त की गई थी कि जब जब हनुमान जी को पसीना आता है तो किसी बड़े व्यक्तित्व का ह्रास होता है , इशारा सीधे इंदिरा ग़ांधी की ओर जा रहा था । …जिले के बहुत सारे लोग बंद हैं जेलों में । भूख से मौतें हो रहीं हैं । …यह काला अध्याय खत्म हुआ जब जनता पार्टी की सरकार आयी । अखबार तेवर बदलने लगे । इन्हीं दिनों का एक वाकिया हैं साथी लोगों के साथ बैडमिंटन खेल रहे थे । संतोष निगम कहीं किसी पत्रकार वार्ता से आये थे । कुछ कागज लिए थे । मैंने पूछा क्या है , अरे ये पत्रकारों का मामला है । वही सुधीर निगम भी थे , मैंने कहा यार अब हमें भी पत्रकार बनाओ । सुधीर ने झांसी जागरण के लिए पत्र बनाया और हमसे कहा कि इस पत्र के साथ खबर भेजिए । …इसी बीच अश्विनी सहगल एक दिन कर्वी के बस अड्डे पर मिल गए । बोले ,बड़ी अजीब घटना हुई है आपके इलाके में , अभी पिछले दिनों शिवरात्रि थी तो गांव की कुछ औरतें शिव जी के मंदिर में पूजा करने गईं ,दिया बाती तो ले गईं पर घी भूल गईं । एक महिला ने कहा अरे कुंड के पानी को ही घीदिये में डाल लेव इसी से दिया जल जाएगा । यही किया गया और दिया जल गया ।…क्या पानी से दिया जल सकता है । …फिर खुद ही बोले क्यों नहीं , हो सकता है पानी में कोई तैलीय पदार्थ हो , कुंड की खुदाई हो तो तेल का भंडार भी मिल सकता है । …खबर बनी और जागरण झांसी में मेरे नाम सहित 5 कॉलम में छपी । आगे भी खबरें भेजी छपने लगी । सिलसिला बन गया ।…खबर लगी कि इलाहाबाद से ‘ अमृत प्रभात ‘ निकाला है । हमने अपने बांदा के साथियों से बात की कर्वी से हमारे लिए भी बात कीजिये । बाँदा से अश्विनी सहगल और सन्तोष निगम भी निशाना साढ़े थे । हमारे शहर के हॉकर ने हमें अमृत प्रभात का सूत्र दिया और वहां संपर्क करने को कहा । अमृत प्रभात में हमारी खबरें लगाने लगीं । हम कर्वी से रोडवेज के कंडक्टर को एक रुपये देते और फाटक सहित खबरों का लिफाफा । बाँदा से अश्विनी सहगल की खबरें भी लगाने लगीं । इसी बीच हमारे साथी तूलचंद गुप्ता ने चित्रकूट धाम समाचार साप्ताहिक निकालने की तैयारी की जिसे अपने साथी नर्मदा प्रसाद मिश्र के सहयोग से निकाला । कर्वी से उस समय वेद प्रताप शुक्ला , जाहरण , शिव प्रसाद सोनी , देशदूत , चंद्रभूषण अवस्थी , आज और बाबूलाल गर्ग , भारत अखबार में सक्रिय थे । बाद में जागरण में सूर्यकां अग्रवाल खबरें भेजने लगे । यहां चित्रकूट मानिकपुर में ददुआ डकैत का भयंकर आतंक था वे धरपकड़ व अन्य आपराधिक वारदात करते रहते । तब भाई गयाप्रसाद गोपाल जानकीकुंड के सद्गुरु सेवा संस्थान में थे ।उनके सहयोग से पाठ के जंगलों में जाना होता । काम के बदले अनाज योजना के तहत मज़दूर आदिवासियों को चेक डैम बनने में काम मिलता । पाठा में इनके घरों में थोड़ा मोटा अनाज और सूखे महुए के अलावा कुछ न होता । गर्मियों में पीने के पानी का संकट काफी बढ़ जाता । इलाके के बड़े राजा तालाब का पानी के अभाव में कीचड़ बन सूखने लगता । बाद त्रासदायक जीवन था । तब यहां पत्रकारिता कठिन और जोखिम थी । अमृत प्रभात ने इस अंचल की त्रासदी पर मेरी रिपोर्ट प्रकाशित की थीं ।…ऐसे समय दिनमान के लिए रिपोर्ट तैयार करने पत्रकार व छायाकार एस अतिबल आये थे । जानकी कुंड में रुके थे , रिपोर्टिंग में भी साथ था । यहां की त्रासदी बयान करते मैंने उन्हें कुछ दोहे सुनाए , उन्होंने नोट किये और दिनमान की अपनी रिपोर्ट में भी शामिल किया ।…विंध्यागिर की पीठ पर / अभिशापित से गांव । सूखे सरवर यों दिखें ज्यों रधिया के पांव । सूखा सूखा साल भर / बहुतय मिला क्लेश । सइयां बइथो ट्रेन मा/ चलव कहूँ परदेश । किसकी ड्योढ़ी बांचिये / यह पठार का दर्द । इसे किताबी मानते अधिकारी नामर्द । …यहां की त्रासदी बयान करता मेरा एक लेख अमृत प्रभात में छपा ‘ विंध्य की तपती तड़पती जिंदगी ‘ ….धर्मयुग में भी इसी त्रासदी पर मेरा लेख छपा ।…उनदिनों के मेरे नाम से आने वाले लेखों में रामायण मेला और पाठा का सूखा और यहां की पेय जल समस्या विशेष होते थे । सन 1978-79 तक धर्मयुग , साप्ताहिक हुन्दुस्तान , बोरीबंदर आदि में लेख छप चुके थे ।चित्रकूट में श्रमजीवी पत्रकार सम्मेलन करने जब के विक्रम राव आये तो बातों बातों में उन्होंने बताया कि यहां की सूखा समस्या पर दिनमान के लिये लिखा है , सोच रहे हैं धर्मगयुग के लिए भी लिख दें , तत्काल मेरे मुंह से निकल गया कि अब रहने दीजिए हमने भे दिया है । अच्छा ठीक है । अब क्या इन वचनों को सत्य सिद्ध करने के लिए लेख लिखा , भेजा , धर्मयुग मैं लेख प्रकाशित हुआ ।…जब रामायण मेला के मंच पर साहित्यकारो की अवमानना का मामला आया तो लेख लिखा ‘ रामायण मेला : कितना हीरा , कितना कोयला ‘ भारत अखबार में छपा । इन्हीं दिनो बम्बई सतीश वर्मा बोरीबंदर ने लिखने के लिए विषय दिया ‘ उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश सीमा , डाकुओं का अभायारण्य ‘ इसी बीच महोबा के पास हसीना डकैत मार डाली गई । यह काम किया फतेहपुर के एस पी अजय सिंह ने ।बड़ा शोर मचा , अजय सस्पेंड हो गए । बांदा के तब एस पी थे टी के जोशी । बी डी गुप्ता जी मुझे अपनी सायकिल में बैठा कर ले गए । अजय जी ये टिल्लन रिछारिया जी बड़े जिम्मेदार पत्रकार हैं , इन्हें बताइए कि सब कैसे क्या हुआ । बम्बई की पत्रिका के लिए इन्हें लिखना है । इसी समय के विक्रम राव जी का सम्मेलन चल रहा था , कई दिनों तक हमलोग साथ रहे । …अजय सिंह ने कहा कि शाम को आपको मेरे साथ महोबा चलना हैं , वहीं सब डिटेल और इंटरव्यू देंगे आप को । महोबा में डिनर हुआ मेज के दोनों ओर चार चार सिपाही खड़े रहे ।उसके बाद अजय सिंह ने मुझे हसीना डकैत फोटो , कुछ पेपर और इंटरव्यू दिया । इसके बाद दी सिपाही मुझे कर्वी तक छोड़ने आये । जब जब बम्बई गया तो नवभारत टाइम्स के विश्वनात सचद्रव जी मेरे उस आर्टिकल और इंटरव्यू की बड़ी तारीफ की । राव साहब के इसी सम्मेलन में आये पत्रकारों ने पास के गणेश बाग के मंदिर को ‘ मिनी खजुराहो ‘ के नाम से खूब प्रचारित किया । मैंने भी बोरीबंदर और अमृत प्रभात के लिए लिखा । मरे इस लेख को पढ़ कर अमृत प्रभात के अंग्रेजी संस्करण नार्दन इंडिया पत्रिका के संपादक अशोक कुमार बोस आये । उनके पास कई जगह अंडरलाइन किया मेरा लेख भी था । मेरे लेख में लिखे हर तथ्य की उन्होंने प्रमाणिकता मांगी , एक एक बात पूछी , फिर बोले कि मिनी खजुराहो की बात बढ़ा चढ़ा कर कहने वाली है । मैंने कहा , मैंने मिनी खजुराहो नही लिखा , मेरी हेडिंग तो थी ‘ गणेश बाग : अल्पायु में ही राजयक्ष्मा का शिकार ‘ , बोले हैं ये ठीक है । पांच दिन की चित्रकूट यात्रा पर आए थे , खूब घुमाया फिराया , यथा संभव स्वागत सत्कार किया । पति पत्नी दोनों काफी प्रसन्न हो कर गए । अमृत प्रभात जब जाते तो मंगलेश डबराल , मनोहर नायक , शैलेश जी मिलते खूब घुमाते इलाहाबाद । माथुर साहब के बगल में ही बैठते वी एम बडोला जी एन आई पी के न्यूज़ एडिटर , काफी सुंदर छवि थी आपकी ।काफी अच्छा माहौल रहता था वहां ।…तम्माम जद्दोजहद , तमाम मेले , तमाम झमेले , कर्वी , बाँदा , इलाहाबाद के फेरे तब तक चले जब तक दिसंबर 1980 में बम्बई का टिकट नहीं कट गया । अब सामने बम्बई का विराट मेला था । कर्वी चित्रकूट के मंदाकिनी तट से आगे बम्बई के लिए बढ़ी यात्रा कितने पड़ावों से गुजरी , यात्रा तो अभी भी जारी है ।

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