दशहरा शौर्य से शान्ति की ओर बढ़ने की यात्रा
ऋषिकेश, 25 अक्टूबर। आज विजयादशमी के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि दशहरा शौर्य से शान्ति की ओर बढ़ने का पर्व है। प्रभु श्री राम और माँ दुर्गा ने शान्ति की स्थापना हेतु असुर शक्तियों का शौर्य से सामना कर विजय प्राप्त की थी।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजीत डोभाज जी ने .आज प्रातःकाल की बेला में माँ गंगा का दर्शन कर परमार्थ प्रांगण मे स्थित विशाल पीपल, वटवृक्ष और पाकड़ के विशाल पेड़ों के निहारते हुये प्रकृति रक्षा का संदेश देते हुये कहा कि पेड़ पौधों की रक्षा के लिये सभी को आगे आना चाहिये। उन्होंने कहा कि मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार पूज्य स्वामी जी के नेतृत्व में आध्यात्मिक गतिविधियों के साथ पर्यावरण संरक्षण के विषय में भी उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। परमार्थ निकेतन के पवित्र वातावरण में हो रहे प्रातःकालीन यज्ञ और प्रार्थना का दर्शन करते हुये श्री डोभाल जी के परिवार और उनकी पूरी टीम ने विदा ली।
श्री डोभाल जी ने कहा कि मेरा परमार्थ का प्रवास आनन्द और ऊर्जा से युक्त रहा। परमार्थ निकेतन वास्तव में स्वर्ग है। यहां पर स्थित अति प्राचीन पीपल, वट और पाकड़ के विशाल वृक्ष पंचवटी की याद दिलाते है। ये विशाल वृक्ष ही मुझे तो तपस्पी लगते हैं, मानो सदियों से यहां तपस्यारत हों, इन वृक्षों की सघन छांव में बैठकर यज्ञ और प्रार्थना करना वास्वत में एक सुखद और अलौकिक अनुभव का एहसास कराता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि दशहरा पर्व को विजयादशमी या आयुध-पूजा आदि विभिन्न नामों ने जाना जाना जाता है परन्तु संदेश एक ही है सत्य की असत्य पर विजय। हमारे शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री राम ने इसी दिन रावण का वध किया था।
दशहरा पर्व को चाहे हम भगवान श्री राम की रावण पर विजय के रूप में या माँ दुर्गा की महिषासुर पर विजय के रूप में मनायें, दोनों ही रूपों में यह सत्य की असत्य पर विजय, शक्ति की आराधना और शस्त्रों के पूजन का ही पर्व है। भारतीय संस्कृति हमेशा से ही वीरता और शौर्य की उपासक रही है।
वास्तव में देखे तो दशहरा का पर्व बदले का नहीं बल्कि बदलाव का पर्व हैं। बदलाव कहीं बाहर नहीं बल्कि स्वयं के अन्दर, सोच, आदत, व्यवहार में सकारात्मक बदलाव ला सकते है। स्वामी जी ने कहा कि सकारात्मक बदलाव चाहे स्वयं के लिये हो, परिवार के लिये, समाज के लिये, राष्ट्र के लिये या समष्टि के लिये हो सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि मानव जीवन के अस्तित्व और प्रगति के लिये बदलाव जरूरी है परन्तु बदलाव ऐसा न हो कि नैतिकता पर ही सवाल उठने लगें। नए युग के साथ नई तकनीक जब-जब आती है, तो उसके साथ नए प्रयोग होना जरूरी है। यह प्रयोग समाज के विकास के लिये जरूरी भी होता है परन्तु तकनीक का प्रयोग न केवल मानव जीवन के उत्थान में बल्कि इस तरह होना चाहिये कि इसका लाभ पूरे जीव जगत एवं प्रकृति को भी हो। भगवान श्री राम ने जो शौर्य दिखाया था उसका लाभ मानव जाति के साथ समस्त प्रकृति और पर्यावरण के लिये भी था।
स्वामी जी ने कहा कि हम प्रतिवर्ष दशहरा के अवसर पर दस सिर वाले रावण का दहन करते है, उससे हमें एक शिक्षा अवश्य लेनी चाहिये कि रावण के जो दस सिर थे वे मनुष्य के अन्दर विद्यमान अवगुणों के ही प्रतीक हैं। मनुष्य के अन्दर भी कई बार काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और झूठ जैसे अवगुणों का समावेश हो जाता है जो हमारे स्वभाव का अंग होते है परन्तु कई बार हम जान नहीं पाते या पहचान नहीं पाते। दशहरा पर्व हमें उन अवगुणों का परित्याग करने की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। आईये संकल्प लें कि हम बदला नहीं बल्कि बदलाव की ओर बढ़ेगे। कोरोना माहमारी में सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें। बचाव में ही बचाव है। इसका ध्यान रखें तथा नियमों का पालन करें।