जलियांवाला से पहले अंग्रेजों ने पथारूघाट में किया था 140 किसानों की सामूहिक हत्या

न्यूज़ गेटवे / पथारूघाट / गुवाहाटी /

जलियांवाला सामूहिक नरसंहार को तो आजादी की लड़ाई के सबसे लोमहर्षक कांड के रूप में सारी दुनिया में जाना जाता है। लेकिन उससे 25 साल पहले 28 जनवरी 1894 को असम के पथारूघाट में अंग्रेजों के भू-लगान का विरोध करने वाले 140 किसानों की शहादत को हमारे देश में ही बहुत कम लोग जानते हैं। हालांकि जिला प्रशासन ने उस महानतम सामूहिक शहादत की याद में किसान शहीद दिवस मनाकर अपना दायित्व जरूर निभाया।

देश में इसके पहले अंग्रेजों के जुल्मो-सितम के खिलाफ इतना बड़ा किसान आंदोलन शायद कहीं और नहीं हुआ। अंग्रेजों ने जब भारत में किसानों पर बेहिसाब लगान अदा करने के लिए बेइन्तिहा जुल्मो-सितम शुरू किए तो असम के किसानों ने विद्रोह कर दिया। अंग्रेज सिपाहियों ने वर्तमान दरंग जिले के पथारूघाट में हजारों की संख्या में विद्रोह पर उतरे किसानों पर अंधाधुंध
गोलियां बरसाई, जिससे 140 किसान वहीं पर शहीद हो गए थे।

ब्रिटिश शासन की इस बर्बरतम घटना का जिक्र स्वाधीनता संग्राम के स्वर्णिम इतिहास में अभी भी धूमिल-सा है। इसे कभी देश की आजादी की लड़ाई की शुरुआत में असम के किसानों के अन्यतम योगदान के रूप में सीबीएसई अथवा अन्य
राज्यों के पाठ्यक्रमों में जगह नहीं मिल पाई। दुर्भाग्य से अभी तक की केंद्र और राज्य सरकारों ने भी इस दिशा में कोई विशेष कदम नहीं उठाया। सेना के रेडहॉर्न डिवीजन ने अवश्य वहां एक स्मारक बनवाया। देश में किसानों अथवा नागरिकों की याद में सेना की ओर से निर्मित यह संभवतः अकेला स्मारक है। इस स्मारक के बनने के बाद वर्ष 2000 से हर साल इन शहीद किसानों की याद की जाने लगी है। भला हो दरंग जिला प्रशासन का, जिसने रविवार को अवकाश का दिन होने के बावजूद अपने जिले के किसानों के इस अप्रतिम बलिदान की 124वीं बरसी पूरी श्रद्धा से मनाई।

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