चित्रकूट टीआरपी सेंटर बने !

चितकूट / अजीत सिंह / जहां साल भर में तकरीबन 2 करोड़ श्रध्दालु आते हैं, जो राम की तपोभूमि है, वह चित्रकूट नहीं है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का टीआरपी सेंटर l
जी हां यह आश्चर्यजनक जरूर है लेकिन सत्य है, क्या पैमाना है टीआरपी का यह तो दिल्ली, गाजियाबाद, नोयडा में बैठे इन घरानों के मालिकान जाने, लेकिन यह तीर्थ क्षेत्र के साथ बड़ा छलावा है, दीपावली, श्रावणी, भदई, सोमवती और शनिश्चरी अमावस्या पर्वों में चित्रकूट में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ता है, बावजूद इसके किसी भी इलेक्ट्रानिक मीडिया में लाइव टेलीकास्ट जैसी व्यवस्था नहीं है, एक बार मेरे मन मे विचार आया कि किसी तरह उच्च पदस्थ माननीयों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करूँ, काफी जद्दोजहत के बाद जब संपर्क सधे तो आरजू और मिन्नत के बाद जवाब मिला, चित्रकूट तो टीआरपी सेंटर ही नहीं है, तब से लेकर आज कई वर्षों बाद भी यह सवाल रह-रहकर कौंधता है कि आखिर इलेक्ट्रानिक मीडिया की टीआरपी का पैमाना क्या है, क्या हाई-फाई सोसायटी उनका मानक है, क्या अयोध्या, बनारस, प्रयागराज, हरिद्वार, मथुरा-वृंदावन, जैसे तीर्थ ही उनकी टीआरपी हैं, क्या राम की उस तपोभूमि में जहां सालभर में 2 करोड़ के लगभग श्रद्धालु आते है उनमें टीआरपी नहीं है, अगर टीआरपी का यह खेल पता चले, पता चले कि वास्तविक मानक क्या है तो शायद यहां के लोग और प्रभु श्री राम खुद उसे पूरा करने की कोशिश करते, टीआरपी पर सवाल उठाना एक पीड़ा है, पीड़ा इस बात की कि अगर यहां के लाइव कवरेज होते, देश-विदेश में बैठे लोग यहां की आस्था, यहां की मूलभूत समस्याओँ से परिचित होते, पर्यटन बढ़ता और रोजगार के साधन, लेकिन शायद उन्हें यह मंजूर नहीं है, मैं चित्रकूट के प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रति कृतज्ञ भी हूँ, जिनके द्वारा अपने स्तर से यहां के धर्म और पर्यटन पर हजारों आलेख और स्टोरियां प्रकाशित और प्रसारित की गईं हैं, लेकिन जरूरत है कि चित्रकूट टीआरपी सेंटर बने l

You may have missed

Subscribe To Our Newsletter