गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार ने भारत रत्न पुरस्कारों की घोषणा की
नई दिल्ली : गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर सरकार ने एक साथ तीन भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा की है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अब देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित होंगे। उनके साथ जनसंघ के प्रमुख नेता व सामाजिक कार्यकर्ता रहे नानाजी देशमुख और अपनी गायिकी से पूर्वोत्तर के साथ-साथ देशभर में दिलों पर राज करने वाले भूपेन हजारिका को भी भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। देशमुख और हजारिका को मरणोपरांत यह सम्मान दिया जाएगा।
एक साथ तीन भारत रत्न दिए जाने के फैसले को लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक रूप से भी अहम माना जा रहा है। खासकर प्रणब दा का चयन चौंकाने वाला है। यूं तो प्रणब दा केराष्ट्रपति काल में न सिर्फ सरकार के साथ उनका समन्वय बहुत अच्छा था, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार के अन्य प्रमुख लोगों के साथ व्यक्तिगत संबंध भी मधुर थे।
यह सब कुछ तब था जबकि राष्ट्रपति चुनाव के वक्त भाजपा ने प्रणब दा के विरोध में वोट दिया था। जाहिर तौर पर प्रणब दा ने पद की गरिमा का परिचय दिया था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि इस सम्मान के लिए मैं समस्त देशवासियों के प्रति विनम्रता और कृतज्ञता प्रकट करता हूं। मैं हमेशा कहता रहा हूं कि इस महान देश के नागरिकों ने मुझे जितना दिया, मैं उतना उन्हें नहीं दे पाया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर तीनों को भारत रत्न दिए जाने पर खुशी जताई है। उन्होंने कहा है कि प्रणव दा हमारे समय के उत्कृष्ट राजनेता हैं। उन्होंने दशकों तक निस्वार्थ भाव से अनवरत देश की सेवा की है। उन्होंने राष्ट्र के विकास पथ पर एक मजबूत छाप छोड़ी है। मुखर्जी के ज्ञान की प्रशंसा करते हुए पीएम ने कहा कि मुझे खुशी हुई कि उन्हें भारत रत्न दिया गया है।
हजारिका के बारे में पीएम ने कहा कि भूपेन हजारिका के गीत और संगीत की हर पीढ़ी के लोगों ने प्रशंसा की है। इसके जरिए उन्होंने न्याय, सौहार्द्र और भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने भारत की संगीत परंपरा को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया। भूपेन दा को भारत रत्न दिए जाने पर प्रसन्नता हुई।
नानाजी के बारे में पीएम ने कहा कि ग्रामीण विकास की दिशा में नानाजी देशमुख के अहम योगदान ने हमारे गांव के लोगों को सशक्त बनाने का एक नया रास्ता दिखाया। वह सच मायने में भारत रत्न हैं।
प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने कहा कि यह परिवार के लिए सम्मान और गौरव का क्षण है। प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने कहा है कि ये उनके लिए बेहद खुशी की बात है।उन्होंने कहा कि उनके पिता के काम को देश ने सम्मान दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर ये फैसला लिया है। अभिजीत ने कहा कि 50 साल के सार्वजनिक जीवन में उनके पिता ने कई काम किए हैं। राजनीति में आलोचनाएं तो होंगी, लेकिन कुछ फैसले राजनीति से प्रेरित नहीं होते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रणब मुखर्जी, भूपेन हजारिका और नानाजी देशमुख को भारत रत्न मिलने पर खुशी जताई।
प्रणब मुखर्जी का जन्म पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के मिराती गांव में 11 दिसम्बर 1935 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। प्रणब मुखर्जी के पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी और माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी है। प्रणब दा 13वें राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बनने से पहले वे कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सदस्य थे। प्रणब मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में एमए के साथ साथ कानून की डिग्री भी हासिल की। वे वकील, पत्रकार और प्रोफेसर रह चुके हैं। उन्हें मानद डी.लिट उपाधि भी प्राप्त है।
प्रणब मुखर्जी ने 1969 में राज्य सभा सांसद के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब दा ने कांग्रेस पार्टी को अलविदा कह दिया था। प्रणब ने इसके बाद खुद की एक अलग पार्टी बनाई, लेकिन तीन साल बाद 1991 में पीवी नरसिंहा राव की सरकार बनने के बाद वह दोबारा कांग्रेस में शामिल हो गए। केंद्र में रहते हुए प्रणब मुखर्जी ने वित्त मंत्री से लेकर विदेश विभाग और रक्षा मंत्री तक का पदभार भी संभाला है।
पूर्व राष्ट्रपति पश्चिम बंगाल के लिए भावनात्मक मुद्दा
भारत रत्न के लिए पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के चुनाव को लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाना भी लाजिमी है। गौरतलब है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की सबसे प्रबल प्रतिद्वंद्वी है। पार्टी की ओर से वहां 22 सीटों का लक्ष्य भी रखा गया है। ऐसे में प्रणब का भारत रत्न चुना जाना प्रदेश में भावनात्मक मुद्दा बन सकता है। राष्ट्रपति बनने से पहले प्रणब दा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे। वह मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग की दोनों सरकारों में महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे। पिछले साल नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में उनके शामिल होने पर बहस भी हुई थी।
नानाजी को सम्मान से बढ़ेगा संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल
नानाजी देशमुख के लिए यह सम्मान संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाएगा। नानाजी देशमुख पूर्व में भारतीय जनसंघ से जुड़े थे। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तब उन्होंने मंत्री बनने से इन्कार कर दिया था। वह जीवनभर दीनदयाल शोध संस्थान के लिए कार्य करते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया था। वाजपेयी सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया था।
जानें नाना जी देशमुख के बारे में
नानाजी का जन्म 11 अक्टूबर सन 1916 को बुधवार के दिन महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के एक छोटे से गांव कडोली में हुआ था। इनके पिता का नाम अमृतराव देशमुख था तथा माता का नाम राजाबाई था। नानाजी के दो भाई एवं तीन बहने थीं।
नानाजी जब छोटे थे तभी इनके माता-पिता का देहांत हो गया। वे बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दैनिक शाखा में जाया करते थे। बाल्यकाल में सेवा संस्कार का अंकुर यहीं फूटा। जब वे 9वीं कक्षा में अध्ययनरत थे, उसी समय उनकी मुलाकात संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से हुई। डा. साहब इस बालक के कार्यों से प्रभावित हुए।
मैट्रिक की पढ़ाई पूरी होने पर डॉ. हेडगेवार ने नानाजी को आगे की पढ़ाई करने के लिए पिलानी जाने का परामर्श दिया तथा कुछ आर्थिक मदद की भी पेशकश की, पर नाना को आर्थिक मदद लेना स्वीकार्य न था। वे किसी से भी किसी तरह की सहायता नहीं लेना चाहते थे। उन्होंने डेढ़ साल तक मेहनत कर पैसा इकट्ठा किया और उसके बाद 1937 में पिलानी गए। पढ़ाई के साथ-साथ निरंतर संघ कार्य में लगे रहे। कई बार आर्थिक अभाव से मुश्किलें पैदा होती थीं परन्तु नानाजी कठोर श्रम करते ताकि उन्हें किसी से मदद न लेनी पड़े। सन् 1940 में उन्होंने नागपुर से संघ शिक्षा वर्ग का प्रथम वर्ष पूरा किया। उसी साल डाक्टर साहब का निधन हो गया। फिर बाबा साहब आप्टे के निर्देशन पर नानाजी आगरा में संघ का कार्य देखने लगे।
ग्रामोदय से राष्ट्रोदय का अभिनव प्रयोग
ग्रामोदय से राष्ट्रोदय के अभिनव प्रयोग के लिए नानाजी ने 1996 में स्नातक युवा दम्पत्तियों से पांच वर्ष का समय देने का आह्वान किया। पति-पत्नी दोनों कम से कम स्नातक हों, आयु 35 वर्ष से कम हो तथा दो से अधिक बच्चे न हों। इस आह्वान पर दूर-दूर के प्रदेशों से प्रतिवर्ष ऐसे दम्पत्ति चित्रकूट पहुंचने लगे। चयनित दम्पत्तियों को 15-20 दिन का प्रशिक्षण दिया जाता था। प्रशिक्षण के दौरान नानाजी का मार्गदर्शन मिलता था।
राजनीतिक जीवन
जब आरएसएस से प्रतिबंध हटा तो राजनीतिक संगठन के रूप में भारतीय जनसंघ की स्थापना का फैसला हुआ। गुरूजी ने नानाजी को उत्तरप्रदेश में भारतीय जनसंघ के महासचिव का प्रभार लेने को कहा। नानाजी के जमीनी कार्य ने उत्तरप्रदेश में पार्टी को स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी। 1957 तक जनसंघ ने उत्तरप्रदेश के सभी जिलों में इकाइयाँ खड़ी कर लीं। इस दौरान नानाजी ने पूरे उत्तरप्रदेश का दौरा किया जिसके परिणामस्वरूप जल्द ही भारतीय जनसंघ उत्तरप्रदेश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गयी।
यूपी की बड़ी राजनीतिक हस्ती चन्द्रभानु गुप्त को नानाजी की वजह से तीन बार कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। एक बार, राज्यसभा चुनाव में कांग्रेसी नेता और चंद्रभानु के पसंदीदा उम्मीदवार को हराने के लिए उन्होंने रणनीति बनायी। 1957 में जब गुप्त स्वयं लखनऊ से चुनाव लड़ रहे थे, तो नानाजी ने समाजवादियों के साथ गठबन्धन करके बाबू त्रिलोकी सिंह को बड़ी जीत दिलायी। 1957 में चन्द्रभानु गुप्त को दूसरी बार हार को मुंह देखना पड़ा।
यूपी में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की दृष्टि, अटल बिहारी वाजपेयी के वक्तृत्व और नानाजी के संगठनात्मक कार्यों के कारण भारतीय जनसंघ महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बन गया। न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं से बल्कि विपक्षी दलों के साथ भी नानाजी के सम्बन्ध बहुत अच्छे थे। चन्द्रभानु गुप्त भी, जिन्हें नानाजी के कारण कई बार चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था, नानाजी का दिल से सम्मान करते थे और उन्हें प्यार से नाना फड़नवीस कहा करते थे। डॉ॰ राम मनोहर लोहिया से उनके अच्छे सम्बन्धों ने भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही बदल दी।
असम समेत पूर्वोत्तर में पूजे जाते हैं हजारिका
भूपेन हजारिका को पूर्वोत्तर और खासकर गृह प्रदेश असम में प्रचंड समर्थन है। लोगों के दिलों में उनके लिए इतनी श्रद्धा है कि असम की राजधानी गुवाहाटी में उनकी याद में मंदिर भी है। ऐसे में चाहे-अनचाहे हजारिका के सम्मान को भी राजनीतिक आईने से देखा जाएगा। हजारिका ने असमिया के साथ-साथ हिंदी, बांग्ला समेत कई अन्य भाषाओं में भी गाने गाए।
जानें भूपेन हजारिका के बारे में
भूपेन हजारिका 8 सितंबर 1926 को असम में जन्मे थे। हजारिका 10 भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। हजारिका को गाने की प्रेरणा अपनी मां से मिली थी। वे गुवाहाटी में पले-बढ़े, जहां वे सिर्फ 10 साल की उम्र में असमिया भाषा में गाने गाते थे। जब फिल्मकार ज्योतिप्रसाद अग्रवाल ने उनकी आवाज सुनी तो वे प्रभावित हुए। हजारिका ने बाद में उनकी फिल्म ‘इंद्रमालती’ में दो गाने गाए थे। 1936 में कोलकाता में भूपेन ने गायक, संगीतकार और गीतकार बनने की यात्रा शुरू हुई। 1942 में भूपेन ने आर्ट से इंटर की पढ़ाई पूरी की। साथ ही बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमए किया।
शिक्षा-दीक्षा पूरी करने के बाद हजारिका ने गुवाहाटी में ऑल इंडिया रेडियो में गाना शुरू कर दिया था। हजारिका बंगाली गानों को हिंदी में अनुवाद कर उसे अपनी आवाज देते थे। हजारिका को कई भाषाओं का ज्ञान था। बाद में वे स्टेज परफॉर्मेंस भी देने लगे। जब एक बार वे कोलंबिया यूनिवर्सिटी गए तो उनकी मुलाकात प्रियंवदा पटेल से हो गई। दोनों ने यूएस में 1950 में शादी कर ली।
1952 में प्रियंवदा ने बेटे को जन्म दिया। 1953 में हजारिका अपने परिवार के साथ भारत लौट आए, लेकिन दोनों ज्यादा समय तक साथ नहीं रह पाए। वे गुवाहाटी यूनिवसिर्टी में बतौर अध्यापक नौकरी भी करने लगे थे, बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
हजारिका ने अपने जीवन में एक हजार गाने और 15 किताबें लिखी हैं। इसके अलावा उन्होंने स्टार टीवी पर आने वाले सीरियल ‘डॉन’ को प्रोड्यूस भी किया था। उन्होंने ‘रुदाली’, ‘मिल गई मंजिल मुझे’, ‘साज’, ‘दरमियां’, ‘गजगामिनी’, ‘दमन’ और ‘क्यों’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में गीत गाए।
5 नवंबर 2011 को 85 वर्ष की आयु में भूपेन हजारिका का मुंबई में निधन हो गया था। हजारिका को 1975 में नेशनल अवॉर्ड, 1977 में पद्मश्री और 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें 2009 में असोम रत्न और इसी साल संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, 2011 में पद्मभूषण और 2012 में मरणोपरांत पद्मविभूषण जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
बीस साल बाद तीन को सर्वोच्च सम्मान
एक साथ तीन हस्तियों को इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए 20 वर्ष बाद चुना गया है। इससे पहले 1999 में सितार वादक पंडित रविशंकर, अर्थशास्त्री डॉ. अमर्त्य सेन और स्वतंत्रता सेनानी रहे गोपीनाथ बोरदोलोई को इस सम्मान के लिए चुना गया था।
चार वर्ष बाद यह सम्मान
भारत रत्न की घोषणा करीब चार वर्ष बाद हुई है। इससे पहले 2015 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और स्वतंत्रता सेनानी मदन मोहन मालवीय को यह सम्मान दिया गया था।
अब तक 41 लोगों को मिला है भारत रत्न
अब तक 41 लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। सबसे पहले 1954 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इस सूची में समाज के हर क्षेत्र के लोग शामिल हैं। खेल जगत से भारत रत्न पाने वाले पहले व्यक्ति सचिन तेंदुलकर हैं।
इन सेवाओं के लिए मिल सकता है भारत रत्न
भारत रत्न के लिए कुछ विशेष सेवाओं का चयन किया गया है। इन सेवाओं में कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा और खेल शामिल है। हालांकि, पहले इसमें खेल को शामिल नहीं किया गया था लेकिन बाद में इसे सूची में शामिल किया गया है। एक साल में ज्यादा से ज्यादा तीन व्यक्तियों को ही ‘भारत रत्न’ दिया जा सकता है।
अब तक 12 लोगों को मिला मरणोपरांत
शुरुआत में इस सम्मान को मरणोपरांत देने का प्रावधान नहीं था, लेकिन बाद में साल 1955 में यह प्रावधान जोड़ा गया। जिसके बाद मरणोपरांत भी भारत रत्न देने का रास्ता खुला। अब तक 12 लोगों को यह सम्मान मरणोपरांत प्रदान किया गया है। हालांकि, सुभाषचन्द्र बोस को घोषित सम्मान वापस लिए जाने के उपरांत मरणोपरांत सम्मान पाने वालों की संख्या 11 मानी जा सकती है।
48 : हस्तियों को (1954-2019) अब तक मिल चुके हैं भारत रत्न। इनमें पुरुषों को 43 मिले और महिलाओं को पांच मिले।
6 : प्रधानमंत्री पद पर रह चुके हस्तियां हो चुकी हैं इससे सम्मानित। इनमें से तीन नेहरू परिवार से थे।
22 ऐसे लोगों को भी मिला सम्मान जो राजनीति से जुड़े रहे। इनमें से कुछ स्वतंत्रता सेनानी भी थे। इनमें से 16 कांग्रेस से थे।
4: भारत रत्न अब तक मिल चुके हैं पश्चिम बंगाल को। इनमें प्रणब दा शामिल। प्रणब दा से पहले प्रदेश से भारत रत्न पाने वाले थे बिधान चंद्र राय, सत्यजीत रे और अमर्त्य सेन।
2: भारत रत्न अब तक मिल चुके हैं असम को। इनमें भूपेन हजारिका शामिल। पहले गोपीनाथ बोरदोलोई को मिला था यह सम्मान।
6 : भारत रत्न मिल चुका है महाराष्ट्र से आने वालों को।