कैंब्रिज एनालिटिका के पास भारत के 600 जिलों और सात लाख गांवों के आकड़े
न्यूज़ गेटवे / कैंब्रिज एनालिटिका/ नई दिल्ली /
डाटा लीक के आरोपों का सामना कर रही ब्रिटिश कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका (सीए) के पास भारत के 600 जिलों और सात लाख गांवों के आकड़े हैं। कंपनी इन आंकड़ों को लगातार अपडेट करती रहती है। कैंब्रिज एनालिटिका के पूर्व रिसर्च प्रमुख डेविड वाइली ने बताया है कि उनकी कंपनी ने भारत में राजनीतिक दलों को जातिगत आंकड़ा मुहैया कराने के लिए भी काम किया है। इसके अलावा पार्टियों को वोटिंग पैटर्न के बारे में भी जानकारी बेची गई है।
कैंब्रिज एनालिटिका भारत में स्ट्रैटजिक कम्युनिकेशंस लेबोरेटरी (एससीएल) के जरिये सक्रिय थी। एससीएल की पैरेंट कंपनी एनालिटिका ही थी। वाइली ने कहा है कि 2003 से 2012 तक भारत के कई चुनावों में सीए ने काम किया है। उन्होंने सिर्फ एक पार्टी जनता दल यूनाइटेड का नाम लिया है, जिसके लिए कंपनी ने 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में काम किया था। उल्लेखनीय है कि जदयू प्रवक्ता केसी त्यागी के बेटे अमरीश त्यागी एससीएल इंडिया के प्रमुख थे।
वाइली ने बुधवार को ट्वीट किया कि कई भारतीय पत्रकारों ने मुझसे भारतीय चुनावों में सीए की भूमिका को लेकर जानकारी मांगी है। मैं भारत की कुछ परियोजनाओं की जानकारी शेयर कर रहा हूं। इसके साथ ही मैं यहां सबसे ज्यादा पूछे गए सवाल का जवाब देना चाहूंगा कि एससीएल/सीए भारत में भी काम करता है। इसके वहां कई ऑफिस हैं।
इस ट्वीट के साथ उन्होंने तीन ग्राफिक तस्वीरें भी शेयर की हैं। इसमें लिखा है कि 2011-2012 में एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के लिए एससीएल ने उत्तर प्रदेश में जातिगत जनगणना की। इस दौरान घर-घर जाकर जाति के आधार पर वोटरों की पहचान की। वाइली ने हालांकि यह नहीं बताया है कि ये आंकड़े किसी सोशल मीडिया से लिए गए या इनका कोई दूसरा स्रोत है। सीए के पूर्व रिसर्च प्रमुख वाइली अब व्हिसिल ब्लोअर बन गए हैं।
एससीएल इंडिया का मुख्यालय गाजियाबाद के इंदिरापुरम में था। इसके अलावा अहमदाबाद, बेंगलुरु, कटक, गुवाहाटी, हैदराबाद, इंदौर, कोलकाता, पटना और पुणे में इसका क्षेत्रीय कार्यालय था।
इन चुनावों में किया काम
-उत्तर प्रदेश चुनाव-
2012 : इस साल एससीएल ने एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए जातिगत सर्वे किया था। इसके साथ ही पार्टियों के मुख्य मतदाताओं और बदलने वाले वोटरों के व्यवहार का विश्लेषण भी किया गया था।
2011 : चुनाव से एक साल पहले एससीएल ने करीब 20 करोड़ वोटरों पर जाति आधारित रिसर्च किया था। प्रत्याशियों को जो डाटा मुहैया कराया गया, उससे समर्थकों को लामबंद करने में आसानी हुई।
2007 : विधानसभा चुनाव में एससीएल ने एक प्रमुख पार्टी के लिए पूरे राज्य का राजनीतिक सर्वे किया था। इसमें पार्टी के ऑडिट समेत राजनीति से जुड़े लोगों की अहम जानकारियां जुटाना शामिल था।
2009 में आम चुनाव
एससीएल ने कई लोकसभा प्रत्याशियों को चुनाव अभियान चलाने में मदद की। प्रत्याशियों ने एससीएल इंडिया के डाटा का इस्तेमाल किया। इससे पार्टियों को सफल योजनाएं बनाने में आसानी हुई।
2010 में बिहार
सत्ताधारी जदयू ने चुनावी रिसर्च और प्लानिंग बनाने के लिए एससीएल से संपर्क किया था। इसने करीब 75 फीसद घरों में सर्वेक्षण किया था। इससे पार्टी को चुनाव में सही समीकरण बिठाने में मदद मिली।
2007 में छह राज्य
एससीएल ने 2007 में केरल, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में लोगों की समझ और समीकरणों का पता लगाने के लिए एक अभियान में हिस्सा लिया था।
2003 में मध्य प्रदेश
एससीएल ने 2003 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए चुनावी विश्लेषण किया था। इसका मुख्य उद्देश्य आखिरी समय में फैसला करने वाले वोटरों की राय जानना था।
2003 में राजस्थान
एक मुख्य राजनीतिक दल ने एससीएल के साथ दो अहम सेवाओं के लिए संपर्क किया। पहला काम था पार्टी की अंदरूनी ताकत जानना और दूसरा मतदाताओं के वोटिंग पैटर्न का पता लगाना।
दिल्ली, छत्तीसगढ़
दिल्ली और छत्तीसगढ़ के चुनावों में भी एससीएल की तरफ से मतदाताओं के व्यवहार से जुड़े कुछ विश्लेषण किए गए थे। हालांकि, इस दस्तावेज में चुनावों के साल की जानकारी नहीं दी गई है।