एन एस डी . कुछ चिंताएं ,कुछ शंकाएं / रवीन्द्र त्रिपाठी

न्यूज़ गेटवे / आज NSD जाना है / नई दिल्ली /

आज NSD जाना है। दोपहर ढाई बजे के करीब। वहां के छात्र संघ को मेरे एक पोस्ट पर कुछ आपत्ति है। उनका कहना है कि वे इस बारे में बात करना चाहते हैं। इसलिए आज का समय तय किया है। इस सिलसिले में ये आज लिख दूं कि इस छात्र संघ के बारे में मेरी क्या धारणा है। ध्यान रहे कि ये सिर्फ वहां के छात्र संघ के बारे में छात्रों के बारे में नहीं। वहां के छात्र बहुुत प्रतिभाशाली और होनहार हैं।

बहरहाल छात्र संघ से मेरे कुछ सवाल-

1) 2017 के अक्तूबर के आखिरी दिनों में एनएसडी के स्टूडेंट प्रोडक्शन होने थे। एक शातंनु बोस के निर्देशन में `उजला स्याह’ और दूसरा आसिफ अली के निर्देशन में `टुकड़ा शहर’। ताऱीख की घोषणा हो चुकी थी। दूसरे रंग प्रेमियों की तरह में भी देखने पहुंचा।किस नाटक के लिए उस दिन गया था ये अभी याद नहीं। पर गेट पर मालूम हुआ कि नाटक नहीं होेंगे। क्यों? कोई आधिकारिक जवाब नहीं मिला लेकिन अनौपचारिक रूप से बताया गया कि छात्र संघ ने फैसला किया वे नाटक नहीं करेंगे। ये शायद एनएसडी में पहला अवसर था जब बिना कारण बताए नाटक मंचित नहीं हुए। दूसरे-तीसरे दिन सबने, यानी जो एनएसडी जाते रहते हैं, देखा कि छात्र पेड़ तले बैठकर गा रहे हैं- `नहीं चाहिए मीठी गोली नहीं चाहिए। गाने के धुन उनके ही कंपोज किए थे। मालूम हुआ कि उनको निर्देशक वामन केंद्रे से कई शिकायतें है। लेकिन उनकी तरफ से, यानी छात्र संघ की तरफ से, ऑफिसियल कुछ नहीं था। उनका कहना था कि ये उनका आपसी मामला है इसलिए मीडिया को कुछ नहीं बताएंगे। हालांकि बाद मे ये नाटक हुए पर दो-तीन दिनों तक गाना बजाना चलता रहा। हड़ताल का समां बंधा था। पर वामन औऱ छात्र संघ का दोस्ताना भी दिख रहा था। दोनों तऱफ से मौजां ही मौजां था।

2) मेरा पूछना ये है कि ये उनका आपसी मामला कैसे हो गया? छात्रों को जो स्कालरशिप दी जाती है, जो मोटी रकम होती है, वह जनता के पैसे से दी जाती है। इसलिए छात्र संघ बिना बताए नाटक होना कैसे रोक सकते है? एनएसडी जनता के पैसे से चलता है। वह न वामन केंद्रे की निजी जायदाद है न वहां के छात्र संघ की। ये दीगर बात है कि वामन ने उसी निजी जायदाद में बदल दिया है। और छात्र संघ के पदाधिकारियों का रवैया था ऐसा है मानों वे एनएसडी को पिकनिक स्पॉट मानते हैं। जब मन किया तब नाटक लिए रिहर्सल किया और जब मन हुआ छोड़ दिया।  उस गाने बजाने के कार्यक्रम को, जो हड़ताल भी नहीं था, वामन केंद्रे और छात्र संघ की जुगलबंदी न कहा जाए तो क्या कहा जाए?

3) वामन केंद्रे भारत रंग महोत्सव को ध्वस्त कर जो ग्रीस की एक संस्था के लिए थिएटर ओलंपिक कर रहे हैं, उसमें छात्र दो महीने के लिए पढाई लिखाई से मरहूम रहेंगे। आखिर एनएसडी एक अकादमिक संस्थान है और वामन केंद्रे ने इसे अकादमिक स्वरूप को लगभग नेस्तनाबूद कर दिया है। मैंने तो आज तक नहीं सुना कि छात्र संघ इसे लेकर किसी तरह चिंतित है और संस्कृति मंत्रालय को वामन के इस दुराचार के बारे में बताया हो (हालांकि हो सकता है कि इस बारे में मुझे पूरी जानकारी नहीं हो)। ऐसे छात्र संघ को छात्रों का हिमायती कहा जाए या वामन केंद्रे का?

यही मेरी बुनियादी आपत्तियां है। अगर छात्र संघ वाले मुझे इस बारे में धारणा बदलने की तरफ ले जा सके तो भी मुझे खुशी होगी। मूलत: मैं रगंमंच का प्रेमी हूं लेकिन पेश से पत्रकार भी हूं।

फेसबुक : रवीन्द्र त्रिपाठी की वाल से

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