इसरो ने बनाई स्वदेशी परमाणु घड़ी
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न्यूज़ गेटवे / स्वदेशी परमाणु घड़ी / नई दिल्ली /
भारतीय अनुसंधान केंद्र (इसरो) ने एक ऐसी परमाणु घड़ी विकसित की है, जिसका इस्तेमाल अब नेविगेशन सैटेलाइट्स में किया जाएगा। इसके जरिए सटीक लोकेशन डेटा मिल सकेगा। अभी तक इसरो को अपने नेविगेशन सैटलाइट्स के लिए यूरोपियन ऐरोस्पेस मैन्युफैक्चरर ऐस्ट्रियम से परमाणु घड़ी खरीदनी पड़ती है। लेकिन अब इसरो ने दूसरी पार्टी पर निर्भरता को खत्म करने के लिए देसी परमाणु घड़ी विकसित की है, इससे भारत का नेविगेशन सिस्टम (जीपीएस) और ज्यादा मजबूत होगा।
अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी) के निदेशक तपन मिश्रा ने कहा, ‘एसएसी ने स्वदेशी परमाणु घड़ी बनाई है और फिलहाल इस घड़ी को परीक्षण के लिए रखा गया है। एक बार यह सारे परीक्षण पास कर ले, तो यह देसी परमाणु घड़ी नेविगेशन सैटलाइट्स में भी प्रायोगिक तौर पर इस्तेमाल हो सकती है, ताकि पता लग सके कि अंतरिक्ष में यह कब तक टिक सकती है और कितना सटीक डेटा मुहैया करवा सकती है।’
सीएसी के निदेशक ने कहा, ‘इस देसी परमाणु घड़ी के निर्माण के साथ ही इसरो उन चुनिंदा अंतरिक्ष संगठनों में शामिल हो गया है, जिनके पास यह बेहद जटिल तकनीक है। हम आयातित परमाणु घड़ी के डिजाइन और प्रौद्योगिकी के बारे में नहीं जानते हैं। लेकिन देसी घड़ी हमारे डिजाइन और विनिर्देशों के आधार पर विकसित की गई है। यह घड़ी आयात की जा रही घड़ी से बेहतर है। हमें उम्मीद है कि यह घड़ी पांच साल से ज्यादा काम करेगी।’
बता दें कि भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) के तहत लॉन्च की गई सभी सातों सैटेलाइट में से तीन में आयात की हुई रुबिडियम परमाणु घड़ी लगी हुई है। परमाणु घड़ियों के कामकाज पर तमन मिश्रा ने कहा, ‘पहले लॉन्च की गई सातों सैटेलाइट में लगी परमाणु घड़ी को एक समय के साथ जोड़ दिया गया था। अलग-अलग ऑर्बिट में लगी सैटेलाइट्स में इन घड़ियों के बीच लगे समय अंतर नैविगेशन रिसीवर पृथ्वी पर किसी वस्तु की सटीक पोजिशनिंग (स्थिति) बताने में मदद करते हैं।’
अगर परमाणु घड़ी में खराबी आती है, तो इसके और अन्य घड़ियों के बीच समय के अंतर ठीक से पता नहीं लगेगा, जिसके परिणामस्वरूप यह किसी भी वस्तु की गलत पोजिशनिंग (स्थिति) बताएगा। परमाणु घड़ियों के अलावा नेविगेशन सैटलाइट्स में क्रिस्टल घड़ी भी होती हैं, लेकिन ये परमाणु घड़ियों की तरह सटीक जानकारी नहीं देती। यही वजह है कि अगर किसी सैटलाइट की तीन परमाणु घड़ियां खराब होती हैं, तो नए परमाणु घड़ी के साथ बैकअप सैटलाइट लॉन्च करनी पड़ती है। इसरो में सूत्र ने बताया कि सात नेविगेशन सैटलाइट्स में इस्तेमाल हुई 21 परमाणु घड़ियों में से 9 खराब हो गई हैं, इसलिए इसरो 4 बैकअप नेविगेशन सैटलाइट लॉन्च करने की योजना बना रहा है। सूत्र ने यह भी बताया कि बैकअप सैटलाइट्स भेजने के लिए इसरो को पहले सरकार से वित्तीय मंजूरी की जरूरत है।
बीते महीने, 12 अप्रैल को इसरो ने आइआरएनएसएस-1आइ लॉन्च किया था, जिसने भारत के पहले नेविगेशन सैटलाइट आइआरएनएसएस-1ए की जगह ली थी। पहले सैटलाइट की तीनों परमाणु घड़ियों ने काम करना बंद कर दिया था। इस पर तपन मिश्रा ने कहा, ‘परमाणु घड़ियां काफी जटिल तकनीक से बनती हैं। ये कई कारणों से बंद हो सकती हैं। सिर्फ भारतीय नेविगेशन सैटलाइट की ही नहीं, बल्कि गैलिलियो (यूरोपीय संघ का नेविगेशन सिस्टम) की भी परमाणु घड़ियां पहले बंद हो चुकी हैं।’