आत्मा ही सबसे बड़ा तीर्थ : महामण्डलेश्वर स्वामी असंगानन्द सरस्वती
न्यूज़ गेटवे / ’उपनिषद्’ की कथा / ऋषिकेश /
हिमालय की तलहटी में गंगा के पावन तट पर स्थित परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में हिन्दू धर्म के श्रुति धर्मग्रन्थ ’उपनिषद्’ की कथा का आज शुभारम्भ हुआ। विद्वान नेच्चुर वेंकटरमण जी के मुखारबिन्द से सात दिनों तक उपनिषद्ों पर आधारित ज्ञान यज्ञ की धारा प्रवहित होगी। उपनिषद् कथा को श्रवण करने हेतु हजारों की संख्या मंे दक्षिण भारत से श्रद्धालुगण परमार्थ निकेतन पधारे है।
महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी असंगानन्द सरस्वती जी महाराज, परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष, ग्लोबल इण्टरफेथ वाश एलायंस के सह-संस्थापक एवं गंगा एक्शन परिवार के प्रणेता पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज एवं उपनिषद् कथा व्यास नेच्चुर वंेकटरमण जी ने दीप प्रज्जवलित कर कथा का उद्घाटन किया।
परमार्थ निकेतन के पावन गंगा तट पर विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन होते है साथ ही अब यहां पर भारत के विभिन्न प्रांतों से अलग-अलग भाषाओं में कथाओें का आयोजन भी होता है। यह गंगा तट दक्षिण और उत्तर, पूर्व और पश्चिम की संस्कृतियों के मिलन का केन्द्र है और यह संस्कृति भारत की एकता को दर्शाती है। पहले उत्तराखण्ड में गर्मी के मौसम में ही भारी संख्या में पर्यटक एवं भक्त आते थे परन्तु अब प्रत्येक मौसम में तीर्थनगरी में श्रद्धालु एवं पर्यटक आते है यह हिमालय की संस्कृति के साथ पर्यटन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। पिछले वर्षो भी तीन हजार से अधिक भक्तों ने उपनिषद् ज्ञान सप्ताह में शिरकत की थी।
पूज्य महामण्डलेश्वर असंगानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ’आत्मा ही सबसे बड़ा तीर्थ है। आत्मा ही सत्य है; आत्मतत्व हो पहचानें। इस असार जगत में आत्म तत्व ही सार है। उन्होने कहा कि परमार्थ निकेतन के पावन गंगा तट पर सबका अभिनन्दन है।’
हिमालय की धरती आरण्यक संस्कृति है, इस धरती ने पूरे विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र दिया : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने उपनिषद्ों का संदेश देते हुये कहा कि हिमालय की धरती आरण्यक संस्कृति है, यह एक ऐसी धरती जिसने हमारी सभ्यता, संस्कृति एवं संस्कारों को जन्म दिया है; इस धरती ने पूरे विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र दिया; सर्वे भवन्तु सुखिनः की संस्कृति दी है। आज उसी धरती पर उपनिषद्ों के गहन ज्ञान की धारा प्रवाहित हो रही है। उन्होने कहा कि सांसारिक जीवन में रहते हुये मनुष्य अपने जीवन को कैसे आन्नदमय बनाये; जीवन को कैसे पूर्ण बनाया जायें यह हमें उपनिषद् सिखाते है। हम पूर्णता के अंश है और पूर्णमय जीवन जीयें। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि जीवन में हम जो कमाते है उससे अलमारियों से शेल्फ ही भरते रह जाते है लेकिन उपनिषद् संस्कृति हमें सिखाती है कि हम अपने सेल्फ को; भीतर को भी भरे। बाहर से भरी हुई चीजें बाहर ही रह जाती है लेकिन जब भीतर से व्यक्ति खुद को परम शान्ति से भरना शुरू करता है तो वहीं जीवन धन्य बन जाता है फिर आप जंगल में रहे या मंगल में हर समय मंगल ही मंगल रहता है।’
उपनिषद् में ब्रह्म, जीव और जगत का ज्ञान है समाहित : स्वामी नेच्चुर वेंकटरमण
विद्वान नेच्चुर वेंकटरमण जी ने कहा कि उपनिषद् में ब्रह्म, जीव और जगत का ज्ञान समाहित है। उपनिषद्, भारतीय दर्शन के मूल स्रोत्र है और इसे गंगा तट पर श्रवण करने से जीवन धन्य हो जाता है।
पूज्य स्वामी जी ने उपनिषद् कथा व्यास नेच्चुर वेंकटरमण जी को शिवत्व का प्रतीक रूद्राक्ष का पौधा भंेेट किया।
कथा के पश्चात सभी भक्तों ने परमार्थ गंगा तट पर होने वाली दिव्य आरती में सहभाग किया। भक्त मंत्रमुग्ध होकर आरती का आनन्द लें रहे थे उन्होने कहा कि हम इस दिव्य आरती को लाइव देखते थे आज परम सौभाग्य का दिन है कि हम साक्षात इस आरती के अंग है। सैकड़ों की संख्या में साधक गंगा आरती में आन्नदित होकर झुम रहे थे। आरती के पश्चात सभी साधकों ने पूज्य स्वामी जी एवं जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी के सत्संग में भाग लिया।
कथा के पश्चात सभी भक्तों ने परमार्थ गंगा तट पर होने वाली दिव्य आरती में सहभाग किया। भक्त मंत्रमुग्ध होकर आरती का आनन्द लें रहे थे उन्होने कहा कि हम इस दिव्य आरती को लाइव देखते थे आज परम सौभाग्य का दिन है कि हम साक्षात इस आरती के अंग है। सैकड़ों की संख्या में साधक गंगा आरती में आन्नदित होकर झुम रहे थे। आरती के पश्चात सभी साधकों ने पूज्य स्वामी जी एवं जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी के सत्संग में भाग लिया।