आंखों की गुस्ताखियां माफ हों / मुकुंद
न्यूज़ गेटवे / मुहब्बत का काउंट डाउन शुरू / नई दिल्ली /
फरवरी के पहले हफ्ते मुहब्बत का काउंट डाउन शुरू होगा। 14 फरवरी को सारी दुनिया वेलेंटाइन डे मनाएगी। सबके अपने-अपने वेलेंटाइन होते हैं। इन पर पहरे भी होंगे। मगर मुहब्बत के दीवानों पर क्या फर्क पड़ता है। चाहतों का यह संसार आबाद है। …आबाद रहेगा। किताबों में लिक्खे हैं चाहत के किस्से, हकीकत की दुनिया में चाहत नहीं है…। हम आप सब इस गीत के मुखड़े को कभी न कभी गुनगुनाते जरूर हैं। मगर इन किताबों से इतर एक अलग आंखों की दुनिया है। …और ये आंखों की गुस्ताखियां ही होती हैं कि कोई अचानक अच्छा लगने लगता है। वह-गली मोहल्ले का भी हो सकता है। वह आभासी दुनिया में सात समंदर का भी हो सकता है।
ऐसी गुस्ताखियां सावन की बूंदों से भी ज्यादा हंसीं लगती हैं। उस पपीहे की मानिंद…जो स्वाति नक्षत्र की एक बूंद के लिए आसमान को टकटकी लगाए निहारता है। मकबूल शाइर खालिद जमां खान अकसर कहते हैं- प्यार वही कर सकता है, जिसके सीने में जिंदा दिल धड़कता है। वैसे ये मुहब्बत कब हो जाती है, इस पर पक्केतौर पर कभी भी कुछ नहीं कहा जा सकता।
अनादिकाल से अब तक संन्यासी, लेखक, कवि, मनोवैज्ञानिक एवं कलाकार इसकी अपने-अपने तई व्याख्या करते आ रहे हैं। वह रचनाओं, गीतों, कविताओं, कहानियों, उपन्यासों और कलाकृतियों में प्रेम को सतत उकेर रहे हैं। इसे वही उकेर सकता है, जो इसे महसूस करता है। ऐसे में सवाल कौंधता है कि आखिर यह क्यों होता है? कैसे होता है? कब होता है? किससे होता है? सवाल तो और भी हैं पर इनका सही जवाब कोई नहीं दे पाया है। यह मुहब्बत ही तो है, जिसे कभी दुनिया सिर-आंखों पर बैठा लेती है। यह प्रेम ही तो है, जहां तलवारें खिंच आती हैं। गोलियां चल जाती हैं। और खून की नदियों का कुरुक्षेत्र महाभारत रच देता है।
प्रखर समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया का मानना है कि प्रेम में समर्पण, विश्वास और वचनबद्धता का होना जरूरी है। जहां ये नहीं होगा, वहां मुहब्बत नहीं हो सकती। हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। हमारी पीढ़ियां 22वीं सदी के सपने गढ़ रही हैं। ग्लोबलाइजेशन ने दुनिया को मुट्ठी में भर दिया है। इस खतरनाक संक्रमणकाल में मुहब्बत भी बदल रही है। ऐसी मुहब्बत के खतरे सामने आने लगे हैं। बदली मुहब्बत में हैवानियत हदें पार कर रही हैं। अखबारों के पन्ने ऐसी खबरों से तारी होते हैं, जिनमें आशिक ही अपनी माशूका को दोस्तों को सौंप रहा है। आखिर यह कैसी मुहब्बत है? लगता है बदलते युग का यह प्रेम इंतजार करना नहीं जानता। वह सिर्फ और सिर्फ देह से गुजरना चाहता है। बहुत खतरनाक हैं ऐसी आंखों की गुस्ताखियां। इन्हें हरगिज माफ नहीं किया जा सकता।
मोबाइल की स्क्रीन पर उभरी मुहब्बत की यह गुस्ताखियां सीनों पर खंजर चला रही हैं। सामाजिक मूल्य इंटरनेट की दुनिया में दम तोड़ रहे हैं। मौसम की तरह मुहब्बत बदल रही है। ब्रेकअप और पैचअप ऋतुचक्र बन गए हैं। यह पागलपन की स्थिति है। प्राचीन यूनान के लोग इस मुद्दे पर गंभीर बात कह गए हैं। उनकी आंखों ने आज की दुनिया को शायद देख लिया था। तभी तो वह प्रेम को पागलपन का देवता कह गए हैं। महान नाटककार शेक्सपियर भी इससे असहमत नहीं हैं। वह मानते हैं कि प्रेम अंधा होता है। समाजविज्ञानी और दार्शनिक अरस्तू जरूर इन सबसे कुछ अलग राय रखते हैं। वह कहते हैं -प्यार एक ही आत्मा से बना है जो दो शरीरों में निवास करता है। इस सबके बीच मस्तिष्क विज्ञान कहता है की प्यार प्यास की तरह होता है। जैसे प्यासा पानी के लिए तरसता है, वैसे ही प्यार हो जाने के बाद एक व्यक्ति दूसरे के लिए तरसता है।
मस्तिष्क विज्ञान के तमाम शोध इस बात की गवाही देते हैं कि जब कोई व्यक्ति प्यार में होता है तो उसके शरीर में एक खास हार्मोन का प्रवाह बढ़ जाता है। इनमे से एक है आॅक्सीटोसिन होता है। इसे आम भाषा में लव हार्मोन कहते हैं। यह काफी हद तक सच है। मुहब्बत तो वही है जो हवा में खुशबू की तरह तैर जाए। ओस की बूंद की तरह पलकों में बिखर जाए। ख्यालों की लहर सारे वजूद को भिगो जाए। चेतन और अवचेतन मन मस्तिष्क में होने वाली हल्की सी खुमारी, शबनम की चंद बूंदे, चांद का थोड़ा सा नूर और दिल की धड़कनों का यह सुरूर अजब सा सुकून देता है। मानसिक और वैचारिक नदियों का यह संगम मुहब्बत के कुंभ सृजित करता है। प्रकृति का कण-कण प्रेम की ऊर्जा से पल्लवित, पुष्पित और फलित है। यकीन मानिये किसी से प्यार करना या प्यार में होना दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास है।