हिंदी हमारी जिंदगी है : राजीव कटारा 

  • संपादक की पसंद / राजीव कटारा की फेसबुक वाल से /

हमें जब देशभर के लिए फिल्म बनानी होती है, तो वह हिंदी के अलावा किसी और भाषा में क्यों नहीं बनती? श्याम बेनेगल, बासु चटर्जी, मणिरत्नम, कल्पना लाजमी, करन जौहर, एमएस सथ्यू वगैरह को कन्नड़, बंगला, तमिल, पंजाबी होते हुए हिंदी में फिल्म क्यों बनानी पड़ती है? कर्नाटक संगीत कितना भी महान क्यों न हो, लेकिन देशभर में तो हिंदुस्तानी संगीत की ही तूती बोलती है। ये तूती किसकी वजह से बोल रही है। भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व, किशोरी अमोनकर, प्रभा अत्रे, अजय चक्रवर्ती। इनमें से कौन हिंदीभाषी है?

दस-बारह साल पहले की बात होगी। मैं एक सेमिनार में था। और खाना खाते हुए अचानक अपने को एक तमिल और एक बंगाली के बीच पाया। दोनों अपनी अपनी भाषा के प्यार से लबालब भरे हुए। बंगाली बाबू ने जब अपनी बंगला को बेहतर बताने की कोशिश की तो दूसरा कैसे चुप रहता। मैं अपनी हिंदी को लेकर किसी बहस में पड़ना नहीं चाहता था। वे हिंदी में ही बात कर रहे थे। कभी-कभी अंगरेजी में भी। मैंने बस यही कहा था कि बंगला और तमिल दोनों महान भाषाएँ हैं। हिंदी आपकी मजबूरी हो सकती है। आपके लिए इस्तेमाल की भाषा। लेकिन मेरे लिए तो वह जिंदगी है। उसके बाद खाने पर बहस खत्म हो गई थी। दोनों ने आराम से मान लिया था कि हमारी भाषा हमारी जिंदगी होती है।

मैं तो हिंदी के बिना अपने होने की कल्पना भी नहीं कर सकता। मुझे तो सब हिंदी ने ही दिया है। हिंदी भाषी परिवार में जन्म हुआ। हिंदी समाज में पला बढ़ा। उसीमें पढ़ाई-लिखाई हुई। और उसीमें करियर भी बना। अब इस सबके बावजूद मैं हिंदी से प्यार न करूं? यह कैसे हो सकता है? हिंदी ही मुझे पालपोस कर यहां तक ले आई है। मैं उसे क्या दे पाया? शायद कुछ भी नहीं।
हिंदी कमजोर है या मजबूत है, यह सवाल ही अलग है। वह राष्ट्रीय भाषा है या राजभाषा है या दोनों ही नहीं है। अगर वह राष्ट्रीय और राजभाषा न भी होती तब भी हमारे लिए तो वही सब कुछ थी। वह तकनीकी तौर पर राष्ट्रीय भाषा है या नहीं मुझे उस पचड़े में नहीं पड़ना। राज या राष्ट्रीय भाषा की राजनीतिक कीचड़ में जो कमल उगाना चाहते हैं, उन्हें मैं सलाम करता हूं। वे अपना काम करते रहें। राष्ट्रीय, राजकीय या संपर्क…अपनी हिंदी कुछ भी हो। लेकिन इतना तय है कि वह देश की सबसे जरूरी भाषा है। अगर वह जरूरी नहीं होती, तो अपने हर प्रधानमंत्री को लालकिले से उसमें बोलने की जरूरत ही महसूस नहीं होती। नेहरूजी तो अंगरेजी में भाषण देना पसंद करते थे, लेकिन वहां सिर्फ हिंदी में ही बोले। देवगौड़ा साहब को तो बकायदा भाषण देने के लिए सीखनी ही पड़ी। नेहरू के बाद कामराज जैसे नेता को यह कहना पड़ा कि इस देश का नेता होने के लिए हिंदी बहुत जरूरी है। देश के आम चुनाव में हिंदी का बोलबाला क्यों होता है? आप कहीं भी कुछ खरीदने-बेचने जाते हैं, तो हिंदी से काम कैसे चल जाता है?

हमें जब देशभर के लिए फिल्म बनानी होती है, तो वह हिंदी के अलावा किसी और भाषा में क्यों नहीं बनती? श्याम बेनेगल, बासु चटर्जी, मणिरत्नम, कल्पना लाजमी, करन जौहर, एमएस सथ्यू वगैरह को कन्नड़, बंगला, तमिल, पंजाबी होते हुए हिंदी में फिल्म क्यों बनानी पड़ती है? कर्नाटक संगीत कितना भी महान क्यों न हो, लेकिन देशभर में तो हिंदुस्तानी संगीत की ही तूती बोलती है। ये तूती किसकी वजह से बोल रही है। भीमसेन जोशी, कुमार गंधर्व, किशोरी अमोनकर, प्रभा अत्रे, अजय चक्रवर्ती। इनमें से कौन हिंदीभाषी है? फिर आपको देशभर के लिए चैनल लॉन्च करना है। हिंदी के अलावा आप किसी भाषा में सोच सकते हो? ये कुछ चीजें ही हैं। इससे कुछ तो समझ में आता ही है न। अब जो न समझना चाहें उनका क्या?
अगर देश में हिंदी इस कदर जरूरी है तो हमें अपनी कुंठा छोड़कर उस भाषा का जश्न मनाना चाहिए। सरकार की अपनी मजबूरियां हैं। सरकार से कुछ मत कहो। उसे कुछ करना भी नहीं है। बस, अपनी हिंदी से प्यार करो। उसमें अभी बहुत कमियां हैं, उसे दूर करने की कोशिश करो। हम जो भी कर सकते हैं करें। नहीं कर सकते, तो कम से कम भाषण न पिलाएं और न ही मर्सिया पढ़ें।

हमारी एक छोटी सी कोशिश जरूर बड़ा असर दिखाएगी। बड़ी कोशिशों का हाल तो हम देख ही चुके हैं। सो, हिंदी हमारी जिंदगी है। हम उसे अपनी जिंदगी की तरह चाहें। आमीन!

You may have missed

Subscribe To Our Newsletter