मुलाकात आजाद हिंद फौज के पुजारी यायावर राजकमल कार्की से

न्यूज़ गेटवे /  राजकमल कार्की / गुवाहाटी /

गुवाहाटी से सत्यनारायण मिश्र >>

एक तरफ अराजकता का खुला खेल दिखाते कथित करणी सेना के हुड़दंगाई देश का माहौल बनाने में तुले हैं, दूसरी तरफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपना पहला और अंतिम आदर्श मान आजीवन आजाद हिंद फौज की पूर्ण वर्दी धारण करने का संकल्प लिए असम के लाल 52 वर्षीय राजकमल कार्की। परदादा नेताजी के आजाद हिंद फौज में थे। उनकी कहानी सुन राजकमल को कुछ ऐसा जुनून सवार हुआ कि यायावरी को अपने जीवन का लक्ष्य बना नेताजी के विचारों और
राष्ट्रप्रेेम को भारत की भावी पीढ़ी तक पहुंचाने में रम गए।

69 वें गणतंत्र की पूर्व संध्या पर विशेष मुलाकात में राजकमल कार्की ने पूरे जोश और होश के साथ निर्भीक होकर राष्ट्र के नाम पर सबसे तिरंगे के नीचे एक होने का आह्वान किया। कार्की के मुताबिक उग्रवादियों की धमकियों को इस क्षेत्र के निवासी लगातार नजरअंदाज करते आए हैं। इस बार भी सबको मिलकर नारा लगाना है। कहना है कि हम सब भारतवंशी एक हैं।
राज्य के गोलाघाट जिले के लेटेकजान टीस्टेट के राजाबाड़ी गांव के मूल निवासी राजकमल कार्की का घर फिलहाल पूरा देश है। गुवाहाटी में अपना नाम जाहिर नहीं करने वाले एक समाजसेवी ने रहने को निःशुल्क कमरा दे रखा है। सुबह से देर शाम तक आजाद हिंद फौज के परिधान में पैदल 30-40 किमी की दूरी नाप स्कूलों से लेकर अन्य सामाजिक संस्थानों में राष्ट्रप्रेम और तिरंगे के गौरव का अपना संदेश देते फिरते हैं।

गर्व से कहें कि हम सब भारतवासी एक हैं

उनकी इस अनासक्ति देशभक्ति से प्रेरित बहुत सारे लोग अकस्मात ही उनके  विचारों से जुड़ते चले जाते हैं। कब कौन उनके आहार की व्यस्था कर देता है, उन्हें पहले से इसका भी पता नहीं रहता। इस प्रक्रिया में यह बात जरूर
सामने आती है कि राष्ट्र के प्रति असीम प्रेम करने वालों की संख्या किसी भी तरह से कम नहीं है।  राजकमल कार्की को लेकिन इस बात का अफसोस है कि ज्यादातर भारतीयों को नहीं मालूम कि आजादी का पहला शंखनाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कालापानी में 30 दिसंबर 1943 को तिरंगा फहरा कर किया था। उसके बाद मणिपुर के मइरांगकांग्ला में नेताजी के सहयोगी और आजाद हिंद फौज के सेकंड लेफ्टिनेंट एसएम मलिक ने 14 अप्रैल 1944 को तिरंगा फहराया था। पूछे जाने पर कार्की ने बताया कि वर्ष 1993 से अब तक लगातार वे देशाटन कर रहे हैं। ज्यादातर पैदल ही यात्रा करते हैं। जहां जो मिल गया खा लेते हैं। जहां सिर ढकने को जगह मिल गई रह लेते हैं। कभी-कदाचित कुछ जगहों पर आर्थिक सहयोग भी मिल जाता है। आजाद हिंद फौज की वर्दी आदि का खर्च चल जाता है।

आखिर वे चाहते क्या हैं? जवाब में उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ी राष्ट्रीय एकता और अखंडता बनाए रखे, इसकी सीख देते फिरते हैं। अपने जिले गोलाघाट में शांतिनिकेतन के नाम से नेताजी की याद में एक संग्रहालय बनाया है। उनका अनुभव है कि कई लोग गणतंत्र दिवस के समय घरों पर रहना पसंद करते हैं। उन्हें घरों से निकलना चाहिए और गणतंत्र के इस सबसे बड़े पर्व पर
गर्व से भाग लेना चाहिए। अमर शहीद भगत सिंह के कथन हम रहें न रहें, लेकिन हमारा बलिदान ही इस देश को महान बनाएगा का उल्लेख कर उन्होंने आह्वान किया कि एक तिरंगे के नीचे सब नारा लगाएं- हम सब भारतवासी हैं।

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