नेमैटोलॉजी के बेताज बादशाह , चित्रकूटधाम,करवी के डॉ. मोहम्मद रफीक सिद्दीकी
न्यूज़ गेटवे / नेमैटोलॉजी के बेताज बादशाह /नई दिल्ली /
>>हजारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा – बहुत पुराने अशआर हैं अल्लामा इकबाल के। डॉ. मोहम्मद रफीक सिद्दीकी नहीं रहे सुनकर झटका लगा। सदमा इस बात का है कि दुनिया में नेमैटोलॉजी के क्षेत्र में अनेक न्यू जेनेरा और न्यू स्पेसीज जिनकेनाम से पहचाने जाते हैं, उस विश्व वरेण्य नेमैटोलॉजिस्ट को हमारे देश में ही वह मरतबा नहीं मिला।
पेशवा बाजीराव द्वितीय के अधीन रहे और बाद में अंगे्रजों की छावनी के तौर पर विकसित उत्तर प्रदेश के तत्कालीन बॉंदा जिले के कर्वी कस्बे में 6 मई 1934 को जन्म हुआ था, आगे चलकर नेमैटोलॉजी के क्षेत्र में नायाब खो करने वाले मोहम्मद रफीक सिद्दीकी का। वर्ष 1955 में एमएससी, 1960 मे पीएचडी और 1966 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से डीएससी करने के दौरान ही वे अपनी प्रतिभा से पश्चिमी देशों को चकाचौंध कर चुके थे। अगले साल 1967 में ही उन्हें कॉमनवेल्थ एग्रीकल्चरल ब्यूरॉक्स ऑफ हेल्मिन्थोलॉजी, यूके में प्रिंसिपल नेमैटोलॉजिस्ट के रूप में नियुक्त कर लिया गया। उन्हें नेमैटोलॉजी विभाग का प्रभारी बनाया गया था। बाद के वर्षों में वे सीएबी इंटरनेशनल के सलाहकार के रूप में आस्ट्रेलिया, मलेशिया और कोलंबिया सहित कई देशों में भेजे गए थे।
अनेक अंतर्राष्ट्रीय बैठकों और संगोष्ठियों में भाग ले चुके डॉ. सिद्दीकी ने नेमैटोलॉजी (सूत्रकृमि विज्ञान) के क्षेत्र में तीन दर्जन से अधिक असाधारण खोजें की थीं। विज्ञान के क्षेत्र में विश्वस्तर पर उनके शोधपत्रों का अमूल्य धरोहर के रूप में स्थान है। वर्ष 1959 से लेकर विगत 25 अगस्त को इस्लामी मान्यता के अनुसार बेहद पाक तसद्दुक यानी धू अल-हज के समय जुम्मा को लंदन के एक अस्पताल में भारतीय समय के अनुसार सुबह 7.15 (यूके समय 2.45) बजे 83 साल की उम्र में इंतकाल हुआ था। संयोग से उस दिन हिंदुओं का पवित्र गणेश चतुर्थी का पर्व भी था।
जन्म से मुस्लिम होने के बावजूद डॉ. रफीक के मन में हिंदू धर्म के प्रति भी काफी आदर का भाव था। लंदन में रहते हुए भी वे लगातार अपनी जमीन से जुड़े रहे और साल में एक या दो बार अपने मूल गृह नगर कर्वी अवश्य आते थे।
वर्ष 1991 में अफ्रो-एशियन जर्नल ऑफ नेमैटोलॉजी का प्रकाशन और संपादन हाथ में लेने वाले डॉ. सिद्दीकी लगातार 18 वर्षों तक अफ्रो-एशियन सोसाइटी ऑफ नेमैटोलॉजिस्ट्स के प्रेसीडेंट रह चुके हैं। उनकी लिखी दर्जनों शोधपरक पुस्तकों में से टाइलेन्चिडाःपैरासाइट्स आफ प्लांट्स एंड इन्सेक्ट्स नेमैटोलॉजी के इतिहास में एक मील का पत्थर मानी जाती है। नेमैटोलॉजी के क्षेत्र में डॉ. मोहम्मद रफीक सिद्दीकी क्या चीज थे, इसका अहसास इतने भर से किया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर एक नए सबक्लास, 15 नए ऑर्डर्स, आठ नई सुपरफेमिलीज, 31 नई फेमिलीज, 31 नई सबफेमिलीज, 240 नए जेनेरा, 643 नई स्पिसीज और सबस्पिसीज उन्होंने ही दुनिया को बताईं। नेमैटोलॉजी की दुनिया में उनके असाधारण योगदान के कारण दो नए जेनेरा और 28 नई स्पिसीज का नामकरण डॉ.सिद्दीकी के नाम से किया जा चुका है।
अंतिम समय में अस्पताल में पास रही डॉ. मोहम्मद रफीक सिद्दीकी की बेटी साफिया फातिमा सिद्दीकी ने बताया कि विज्ञान के साथ उनका मजहब के साथ भी गहरा नाता था। अल्लाताला ने चाहा तो उनकी आखिरी किताब कुरान एंड साइंस अगले साल प्रकाशित हो जाएगी। वर्ष 1991 में अफ्रो-एशियन जर्नल ऑफ नेमैटोलॉजी का प्रकाशन और संपादन हाथ में लेने वाले डॉ. सिद्दीकी लगातार 18 वर्षों तक अफ्रो-एशियन सोसाइटी ऑफ नेमैटोलॉजिस्ट्स के प्रेसीडेंट रह चुके हैं। उनकी लिखी दर्जनों शोधपरक पुस्तकों में से टाइलेन्चिडाःपैरासाइट्स आफ प्लांट्स एंड इन्सेक्ट्स नेमैटोलॉजी के इतिहास में एक मील का पत्थर मानी जाती है। नेमैटोलॉजी के क्षेत्र में डॉ. मोहम्मद रफीक सिद्दीकी क्या चीज थे, इसका अहसास इतने भर से किया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर एक नए सबक्लास, 15 नए ऑर्डर्स, आठ नई सुपरफेमिलीज, 31 नई फेमिलीज, 31 नई सबफेमिलीज, 240 नए जेनेरा, 643 नई स्पिसीज और सबस्पिसीज उन्होंने ही दुनिया को बताईं। नेमैटोलॉजी की दुनिया में उनके असाधारण योगदान के कारण दो नए जेनेरा और 28 नई स्पिसीज का नामकरण डॉ.सिद्दीकी के नाम से किया जा चुका है।
ऐसे डॉ. मोहम्मद रफीक सिद्दीकी अपनी मिट्टी से हजारों मील दूर सुपुर्दे-खाक हो गए। देश के मीडिया में यह खबर नहीं बनी। उनके पुश्तैनी शहर उत्तर प्रदेश के कर्वी (चित्रकूट) को तो शायद अहसास ही नहीं है कि उसने कितना बड़ा और नायाब कोहिनूर खो दिया है।
- सत्यनारायण मिश्र / लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं