चित्रकूट रामायण मेला के यशस्वी शिल्पकार आचार्य बाबू लाल गर्ग का महाप्रयाण


-सत्यनारायण मिश्र

एक पत्रकार , साहित्यकार , संस्कृत साहित्य के सर्जक मर्मज्ञ और डॉ राम
मनोहर लोहिया द्वारा संकल्पित रामायण मेला के शिल्पकार आचार्य बाबू लाल
गर्ग का प्रयाण देश समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। आचार्य गर्ग उम्र के
94वें पड़ाव तक लेखन आदि में खासे सक्रिय रहे। तुलसी जन्म शताब्दी वर्ष
में प्रकाशित उनकी संपादित कृति तुलसी परिशीलन अपने आप मे बहु प्रशंसित
एवं बहुआयामी कृति रही है। डॉ लोहिया के रामायण मेला संबंधित आलेख,
कालिदास श्रद्धाञ्जलिका व दो दर्जन से अधिक पुस्तकों के वे रचयिता थे।
अभी हाल ही में प्रकाशित चित्रकूट दर्शन उनकी अंतिम शोधपूर्ण पुस्तक है।


सच कहें तो महाकवि कालिदास के महाकाव्य मेघदूतं के आधुनिक संदेशवाहक थे
वे। महान विद्वान राहुल सांकृत्यायन ने जहां से संस्कृत वाङ्गमय का
अध्ययन किया था, उस जयदेव वैष्णव संस्कृत महाविद्यालय में उनके
अनुयायियों की एक लंबी परंपरा है। छह दशक से अधिक समय तक उन्होंने भारतीय
संस्कृति के अध्येताओं को अपनी विलक्षण प्रतिभा से मुग्ध किए रखा।


आस्थावान इतने थे कि समाजवादी विचारधारा के जनक माने जाने वाले डॉ.
राममनोहर लोहिया भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहे। पांच दशक पहले जब
उन्होंने चित्रकूट में अंतर्राष्ट्रीय रामायण मेले की अवधारणा रखी तो
उसके संयोजक के रूप में उनके मस्तिष्क में आचार्य बाबूलाल गर्ग शास्त्री
का नाम सबसे पहले आया। चौरानबे वर्ष की आयु में इस बुधवार को ही जब उनका
महाप्रयाण हुआ, उसके कुछ दिन पहले तक वे स्वस्थ और साहित्य चिंतन में
निमग्न रहते थे। देश और विदेश में उनके गुणग्राहकों की संख्या कम नहीं
थी। लेकिन अपनी धरती और चित्रकूट के प्रति असीम लगाव ने उन्हें आजीवन
वहां से कहीं निकलने नहीं दिया। अपने सुदीर्घ जीवन काल में उन्होंने दो
दर्जन से अधिक गवेषणा पूर्ण ग्रंथ ही नहीं लिखे, अपितु वे हिंदी
पत्रकारिता के प्रारंभिक दिनों में लंबे समय तक अपनी निष्पक्ष लेखनी के
लिए भी जाने जाते रहे।

राष्ट्रपति के अति प्रतिष्ठित साहित्य महोपाध्याय
पुरस्कार से सम्मानित आचार्य गर्ग अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से
अलंकृत हो चुके थे। लेकिन जीवन के अंतिम समय तक जब तक चेतना बनी रही वे
सबके लिए अत्यंत सहज उपलब्ध बने रहे। वे जितने बड़े साहित्यकार थे, उतने
ही बोधगम्य अध्यापक और उससे भी बड़े समाज सेवी रहे हैं। उनकी विद्वत्ता से
प्रभावित होने वालों में महीयषी महादेवी वर्मा, डॉ. रामकुमार वर्मा,
प्रो. जगदीश गुप्त, प्रो. रघुबंश, फादर कामिल बुल्के, सच्चिदानंद हीरानंद
वात्स्यायन अज्ञेय और हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे मनीषियों से लेकर पूर्व
प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई व अटल विहारी बाजपेयी और आचार्य
विष्णुकांत शास्त्री जैसे उद्भट विद्वान शामिल थे। काशी नरेश भी उनकी
उद्भट प्रतिभा के प्रशंसकों में थे।

आज के समय में जब सारी दुनिया में
लेखन को बौद्धिक संपत्ति माना जाता है, आचार्य गर्ग उन गिनती के साहित्य
साधकों में थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं को कभी निजी जायदाद नहीं माना।
उनकी लेखनी सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय की साधक थी, किताबों में भी और
व्यवहार में भी। क्या लिखना चाहिए और कैसे लिखा जाए, किसके लिए लिखा जाए
आचार्य गर्ग से सीखने को मिलता था।

आचार्य गर्ग का संपूर्ण जीवन समर्पित
साधक व तपस्वी जैसा रहा है। अपनी धुन के पक्के नहीं होते तो इतनी सारी
उपलब्धियों के मालिक नहीं होते। जयदेव वैष्णव संस्कृत महाविद्यालय के
सामान्य अध्यापक से उसी महाविद्यालय के प्रधानाचार्य के पद तक पहुंचना
इसका एक प्रमाण रहा है। राष्ट्रपति पुस्कार व अन्य ढेरों अलंकरणों से
शोभित होना उनके कर्मठ पुरुषार्थ का परिचायक है । जीवन के प्रति कर्मठता
लेकिन यश-कीर्ति और वैभव की कामना से दूर कर्म के प्रति एकनिष्ठ राही
आचार्य बाबूलाल गर्ग को देश और समाज हमेशा याद रखेगा ।

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