21 जनवरी को गुवाहाटी के खानापाड़ा मैदान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर असम प्रांत द्वारा आयोजित लुइतपरीया हिंदू समावेश में मुझे भी सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बचपन में कभी संघ की शाखा में जाने को मुझे किसी ने प्रेरित नहीं किया और न मुझे मौका मिला। बड़े होकरभी कभी संघ से या किसी राजनीतिक दल विशेष से भी कोई दूर-दूर का नाता नहीं रहा है।

शिक्षा क्षेत्र में मेरा पैशन व फोकस इतना ज्यादा है कि अन्य क्षेत्रों में मेरी रुचि नहीं जगी। लोगों द्वारा कई बार प्रोत्साहन के बावजूद न तो मुझे राजनीति में जाने की कोई इच्छा हुई और न ही मेरा ऐसा कोई उद्देश्य है। शायद यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई कार्यक्रमों में न्यौता मिलने के बावजूद यह सोचकर कि इनकी कहीं न कहीं राजनीतिक सम्बद्धता (अफ्लिएशन) है, मैं किसी कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हुआ। पर कुछ विशेष व्यक्तियों के विशेष आग्रह के कारण इस बार मैंने इच्छा के विरुद्ध भीड़ का हिस्सा बनने का निर्णय लिया। और हां, किसी भी अच्छे वक्ता के भाषण को सुनने के अवसर को मैं चूकना नहीं चाहता। और यह लालच तो मेरे मन में था ही कि मोहन भागवत जैसे महान वक्ता को सुनने का सुअवसर मिलेगा, क्यों न इसका लाभ उठाया जाए। मुझे यह भी पता था कि वहां एक लाख हिंदू इकट्ठा होंगे,
जिनमें कई हजार स्वयंसेवक भी होंगे। यानी मैं मानकर चल रहा था कि हम एक बड़ी भीड़ का हिस्सा बनने जा रहे हैं।
पर यह क्या! जब मैं अपनी गाड़ी में बैठकर मेरे मित्र मोदी और केडिया जी के साथ खानापाड़ा मैदान की ओर पहुंच रहा था तो मेरे मन में यह भाव आ रहा था कि निश्‍चित रूप से गाड़ी को आधा किमी पहले रख बड़ी भीड़ के साथ पैदल चलना
पड़ेगा। पर मेरी सोच के विपरीत मेरी गाड़ी नौ नंबर गेट से 25 कदम की दूरी पर आकर रुकी, और जब हम उतर कर गेट की तरफ अग्रसर हो रहे थे तो देखा कि दोनों ओर कम से कम सौ मीटर की कतार में संघ के परिधान में संघ से जुड़े सदस्यगण हाथ जोड़ सबका अभिनंदन कर रहे थेऔर हमें बड़ी विनम्रता से कुर्सियों पर बैठाया गया।

नजर इधर-उधर दौड़ाने पर पता चला कि इसी दीर्घा में भारतीय जनता पार्टी के बहुत से सांसद व विधायक व अन्य वरिष्ठ लोग बैठे हैं। थोड़ी देर बाद इसी दीर्घा में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री राम माधव जी व पूर्वोत्तर भारत के बीजेपी प्रभारी अजय जामवाल जी भी आकर बैठ गए। मेरी कुर्सी से उनकी कुर्सी के बीच में सिर्फ दस कदम का फासला था। हमारे पूर्व
परिचित होने की वजह से मैंने उनके पास जाकर उनसे हाथ मिलाकर अभिनंदन किया।

मेरे सामने था एक भव्य मंच और पूरे मैदान में संघ के स्वयंसेवक बड़े ही अनुशासन के साथ कतारबद्ध तरीके से बैठे थे। बीच-बीच में जनसमूह को एलईडी पर दिखाया जा रहा था। कतारबद्ध तरीके से बैठे हुए स्वयंसेवकों की छवि अति अनुशासनात्मक व सुंदर लग रही थी। उन्हें छोड़ बाकी हजारों लोगों की जो भीड़ थी, उसमें भी मैंने कहीं कोई अव्यवस्था नहीं देखी।

अब मैं मेरी कलम को मोड़ रहा हूं लेख के मुख्य मुद्दे की ओर। जब मैं सभास्थल की ओर गाड़ी से अग्रसर हो रहा था तो दिमाग में एक अव्यवस्थित भीड़ की परिकल्पना थी। लेकिन उसके विपरीत मैंने स्वयंसेवकों को संघ के परिधान में स्कूली छात्रों की तरह बिल्कुल अनुशासन के साथ सभास्थल की ओर अग्रसर होते हुए देखा। और यही कारण था कि मेरी गाड़ी गेट के बिल्कुल नजदीक तक पहुंच सकी। गाड़ी से उतरने के बाद सामान्यतः वीआईपी लोगों के स्वागत के लिए किसी भी आयोजक संस्था के कुछ वरिष्ठ लोग खड़े रहते हैं। पर यहां तो हमने देखा कि सैकड़ों स्वयंसेवक कतारबद्ध तरीके से सबका हाथ जोड़कर स्वागत कर रहे हैं और आदर भाव से कुर्सियों की ओर अग्रेसित कर रहे हैं। सभास्थल के भीतर का नजारा अति मनोरम और सुंदर था। किसी तरह की अव्यवस्था नजर नहीं आ रही थी। बल्कि अनुशासन की चरम सीमा का मैंने अहसास किया। इतने बड़े जनसमावेश में ऐसा अनुशासन मैंने पहले कभी नहीं देखा। बात यहीं समाप्त नहीं होती, चूंकि  कार्यक्रम दो बजे शुरू होने वाला था, मैंने समय से पहले डेढ़ बजे अपना स्थान ग्रहण कर लिया था। मन ही मन में विचार आ रहा था और स्वाभाविक भी था कि शायद ढाई बजे के पहले मोहन भागवत जी मंच पर नहीं आएंगे। पर ठीक 1.50 बजे वे मंच पर पधार गए। उनके पांच मिनट पहले असम के माननीय मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल और माननीय शिक्षा मंत्री डॉ. हिमंत विश्‍व शर्मा तथा कुछ अन्य मंत्रीगण मंच पर पधारे थे। मंच पर उपस्थित थे संघ के कुछ और पदाधिकारी व उत्तर पूर्व भारत की विभिन्न जनजातियों के कुछ मुखिया। भागवत जी के मंच पर पधारने के साथ बड़े ही अनुशासनात्मक ढंग व बैंड ध्वनि के साथ संघ का भगवा ध्वज फहराया गया। स्वयंसेवकों को संघ की कुछ नियमित गतिविधियां कराई गईं, जो किसी मिलिट्री अनुशासन और मिलिट्री
परफेक्शन से कम नहीं लग रहीं थीं।

मंच संचालक द्वारा बड़े ही सूक्ष्म व सुंदर तरीके से सिर्फ अपनी वाणी द्वारा लोगों का स्वागत व अभिनंदन किया
गया। मुख्य अतिथि व मुख्य वक्ता श्री भागवत जी एवं मंच पर उपस्थित अन्य अतिथियों के स्वागत में न तो कोई शेलेंग चादर, न कोई गामोछा और न ही फूलों के गुलदस्ता का इस्तेमाल किया गया। धन्यवाद ज्ञापन भी सभा के अंत में देने की बजाए भागवत जी के सुभाषण के पहले ही प्रस्तुत किया गया ताकि उसकी गरिमा महसूस की जाए। अन्य स्थलों पर धन्यवाद ज्ञापन के समय लोग सभास्थल छोड़कर जाने लगते हैं। शुरू में संघ के जिस गीत को वहां प्रस्तुत किया गया, वह अति सुरीला, भावात्मक, धरती मां को धन्य, हमारे राष्ट्र को धन्य की जैसी पंक्तियों के साथ मन में राष्ट्रभक्ति की भावना पैदा कर रहा
था। दो मिनट का एक असमिया गीत भी प्रस्तुत किया गया। जहां वह अति मनोरम लग रहा था, वहीं समन्वय की एक छवि भी प्रस्तुत कर रहा था।

अब आया भागवत जी के भाषण का समय। मेरे मन में फिर वही विचार कि भागवत जी शायद हिंदू  (जाति व धर्म) की गाथा व परोक्ष रूप से राजनीति की बात करेंगे। कुछ विशेष लोगों, संस्थानों व राजनीतिक दलों पर अपना आक्रामक रूप भी दिखाएंगे। पर उनके 50 मिनट के भाषण से मेरी सोच एक आम व्यक्ति की तरह फिर मात खा गई। भागवत जी के जैसा भाषण मैंने मेरे जीवन में बहुत कम सुना है। और उन्होंने जिस तरह से हिंदू शब्द को परिभाषित कर सामान्य तौर पर जिसे हिंदू जाति व धर्म से जोड़ा जाता है की भ्रांति को दूर करने की कोशिश की, उससे मैं तो पूरी तरह से आश्‍वस्त (कन्विंस) हूं कि हिंदू किसी धर्म
का नाम नहीं, बल्कि हिंदू एक दर्शन है, एक सोच है, जिसे हम मानव धर्म, राष्ट्र धर्म व विश्‍व धर्म कह सकते हैं।
वह विचारधारा जो सबका भला चाहती है, जो विश्‍वशांति की सोच रखती है, सभी जाति-धर्म-भाषा-संस्कृति का सम्मान करती है व वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना करती है, उस विचारधारा का नाम है हिंदू व हिंदुत्व। भागवत जी
के भाषण से मैं यह निष्कर्ष निकालता हूं कि कोई यह कहे कि मैं हिंदू हूं और हिंदू धर्म पद्धति में आस्था रखता हूं तो यह बात जिस तरह से सही है, उसी तरह से यह भी सही होगा अगर कोई कहे कि मैं हिंदू हूं और मैं इस्लाम धर्म पद्धति में विश्‍वास रखता हूं या कोई कहे कि मैं हिंदू हूं और मैं जैन धर्म पद्धति में विश्‍वास रखता हूं या कोई कहे कि मैं हिंदू हूं और
ईसाई धर्म पद्धति में विश्‍वास रखता हूं।

भागवत जी ने अपने भाषण में जिस तरह की विचारधारा रखी, उससे निश्‍चित रूप से उन समाज के ठेकेदारों की यह कुचेष्टा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक गैर-सेक्युलर संस्था है या अन्य धर्म के प्रति असहिष्णु है, गलत साबित
होती है। जितना माधुर्य, जितना धरती माता के प्रति आभार, जितना राष्ट्र के प्र्रति सम्मान संघ के उस गीत में था, उतनी ही सौम्यता भागवत जी के भाषण में थी, उतने ही सुंदर ढंग से उन्होंने हिंदू शब्द को परिभाषित किया और हमारे देश प्रेम व राष्ट्र की अखंडता की अपनी बात रखी। उन्होंने सभी धर्म पद्धति, सभी जाति-उपजाति, सभी भाषा-संस्कृति, सभी के खानपान के सम्मान की बात करते हुए भारत को एक हिंदू (दर्शन और विचारधारा) राष्ट्र कहा। उन्होंने किसी भी राजनीतिक दल के प्रति न भक्ति दिखाई और न किसी राजनीतिक दल के बारे में नकारात्मक बात की। उन्होंने आज के परिप्रेक्ष्य में दुनिया के भटकने की बात कही और उसे सही रास्ता हमारा भारत ही दिखासकता है, ऐसा माना। अगर उस भटके हुए रास्ता रूपी अंधकार को  कोई प्रकाश दिखा सकता है तो वह है हमारा भारत, हमारा हिंदुस्तान। उन्होंने अपने भाषण में सीधे तौर पर कहा कि अगर हिंदू बचेगा तो भारत बचेगा।

उन्होंने यह भी कहा कि हम इतने सहिष्णु हैं कि हम सबका भला चाहते हैं, सबका कल्याण चाहते हैं और किसी जाति, धर्म पद्धति व किसी देश पर आक्रमण की बात तो सोच भी नहीं सकते। 1947 में विभाजन के बाद हम पाकिस्तान को भूल
चुके थे। पर यह उनकी विचारधारा का परिणाम है कि वे हमेशा आक्रमण की सोचते हैं, हिंसात्मक गतिविधियों के बारे में सोचते हैं।

भाषण के बाद भगवा ध्वज को ससम्मान बैंड की ध्वनि के साथ उतारा गया। संघ के नीति-नियमों के अनुसार स्वयंसेवकों द्वारा एक-दो प्रक्रियाएं की गईं और सभा की समाप्ति की घोषणा की गई। राम माधव जी और अजय जामवाल जी व संघ से जुड़े भाजपा के बड़े नेताओं का जनता-दीर्घा में साधारण व्यक्ति की तरह संघ के परिधान में बैठना संघ के अनुशासन व उसकी सादगी का परिचय दे रहा था, वहीं मंच पर उपस्थित भागवत जी के साथ संघ के अग्रणी नेता व अन्य नेताओं का नाम बार-बार लेना, उन्हें गामोछा-गुलदस्ता-चादर ओढ़ाने जैसे औपचारिक कार्यक्रमों में, जिसमें जनता-जनार्दन की बिल्कुल भी रुचि नहीं रहती, समय बरबाद नहीं करना यह दिखाता है कि संघ अन्य संस्थाओं से कहीं हटकर अपने मूल सिद्धांतों पर ज्यादा केंद्रित रहता है एवं औपचारिकता व दिखावा में विश्‍वास नहीं रखता। जहां कार्यक्रम के मध्य संघ के सदस्य पानी की बोतलें वितरित कर रहे थे, वहीं सभा समाप्ति के बाद हमने फिर एक बार किसी अव्यवस्था का अहसास नहीं
कियाऔर देखा कि लोग बड़े व्यवस्थित तरीके से सभा स्थल को छोड़ रहे थे। संघ के जो सदस्य आगमन के समय हाथ जोड़कर सबका स्वागत कर रहे थे, वही लोग जाते वक्त सभी को सम्मान के साथ खाने के पैकेट दे रहे थे।  सभी लोग इतने
आत्मविभोर थे कि बड़े आदर के साथ उस फूड पैकेट को ले रहे थे। मैंने भी एक फूड पैकेट लिया। उस पैकेट में पांच पूड़ियां और थोड़ी सी आलू की सब्जी थी। बाद में पता चला कि 70-80 हजार ऐसे पैकेट संघ के खर्चे से नहीं, बल्कि 15 हजार घरों से प्रति घर पांच फूड पैकेट के हिसाब से संघ के सदस्यों ने एकत्र किए हैं। उनकी यह प्रणाली जहां संघ को अर्थ-व्यय के बोझ से बचाती
है, वहीं समाज को संघ की विचारधारा से जोड़ती भी है। गेट से निकलने के बाद फिर उसी स्थान पर फोन कर मैंने अपनी गाड़ी को बुलाया और गाड़ी में बैठकर मन में सोचा, वाह रे वाह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघतुझे सलाम, तेरे आतिथ्य को सलाम, तेरी सरलता और सद्भावना को सलाम, तेरे उद्देश्यों को सलाम, सलाम तेरे अनुशासन को, सलाम तेरे धरती-मां प्रेम को, सलाम तेरे राष्ट्र प्रेम को।

कार्यक्रम में शामिल होकर एक आत्मसंतुष्टि का अहसास हो रहा था और तभी मन में आया कि इस आयोजन के विषय में मुझे कलम जरूर उठानी चाहिए। आनन-फानन में न तो मैं संघ की सदस्यता हासिल करना चाहूंगा और न ही संघ से प्रेरित लोगों द्वारा गठित राजनीतिक दल से विशेष लगाव रखूंगा। लेकिन निश्‍चित रूप से मैं यह कह सकता हूं कि इस आयोजन में उपस्थित होकर, भागवत जी के विचार सुनकर संघ के प्रति मेरी आस्था बहुत बढ़ी है और मेरा ऐसा मानना है कि संघ
जैसी विचारधाराओं ने ही हमारे देश को बचा रखा है, हमारे देश की अखंडता को अक्षुण्ण रखा है। अन्यथा आज तक हमारा देश कुछ विशेष राजनीतिक ठेकेदारों द्वारा बिक चुका होता, फिर से गुलाम हो चुका होता। पूरे कार्यक्रम में जहां मैंने बहुत कुछ देखा, सुना और सीखा, वहीं एक चीज की कमी का भी अहसास हुआ। भगवा झंडे के उतरने के बाद प्रोग्राम का समापन राष्ट्रगान के साथ होना चाहिए था। अगर इसमें कोई बड़ी अड़चन ना हो तो मैं मोहन भागवत जी से निवेदन करना चाहूंगा कि भविष्य में ऐसे आयोजनों का समापन राष्ट्रगान के साथ हो।  आयोजन के बारे में एक बार फिर से कहना चाहूंगा कि मैंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा।

लेखक जाने-माने शिक्षाविद्‌ व रॉयल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के चांसलर हैं।

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