असम विधानसभा में छिन गया कांग्रेस से मुख्य विरोधी दल होने का गौरव

-सत्यनारायण मिश्र

गुवाहाटी / राज्य में विधानसभा चुनावों की रणदुंदुभी तेज होती जा रही है,
भले ही चुनावों की औपचारिक घोषणा होने में दो से तीन माह की देरी है।
सत्ता पक्ष और विपक्षी खेमों की पेशबंदियां अपनी रवानी पर हैं। बीते पांच
साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस संगठन पूरी तरह से बिखरा-बिखरा नजर आ रहा
है। विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल होने का गौरव भी अब उसके हाथ से छिन
गया है। सदन में उसके विधायकों की संख्या कम होने से विधानसभा अध्यक्ष ने
सीएलपी लीडर देवब्रत सइकिया से नेता विरोधी दल का दर्जा छीन लिया है।
सइकिया ने दावा किया है कि यह पूरी तरह से गलत कदम है, क्योंकि विधानसभा
की वर्तमान सदस्य संख्या के हिसाब से जरूरी विधायक उसके पास हैं।

कुल 126 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 27 विधायक जीत कर पिछले चुनाव
में आए थे। जनिया विधायक अब्दुल खालिक बाद में 2019 के संसदीय चुनाव में
बरपेटा से सांसद चुन लिए गए। वह एक विधानसभा सीट उपचुनाव में कांग्रेस के
हाथ से निकल गई। उसके दो अन्य दिग्गज नेताओं (पूर्व मुख्यमंत्री तरुण
गोगोई और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रणव गोगोई) के निधन से यह संख्या घट
कर 24 और अभी हाल ही में पूर्व मंत्री अजंता नेउग तथा विधायक राजदीप
ग्वाला के इस्तीफा देने से यह संख्या 20 रह गई है।

विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कुल संख्या के छठवें हिस्से से कम होने के
कारण देवब्रत सइकिया को नेता विरोधी दल के पद से हटा दिया है। इसीके साथ
उन्हें दिया गया कैबिनेट स्तर का दर्जा भी छिन गया है।

सइकिया ने इस कदम को पूरी तरह से राजनीति प्रेरित बताया है। उनके मुताबिक
राज्य विधानसभा में इस समय 119 सदस्य हैं। कांग्रेस के पास अभी भी 20
विधायक हैं, जो उसके मुख्य विपक्षी दल बने रहने के लिए पर्याप्त हैं। ऐसे
में विधानसभा चुनावों के दो से तीन माह पहले कांग्रेस से मुख्य विपक्षी
दल का दर्जा छीनना पूरी तरह से गलत है।

कांग्रेस नेता ने कुछ अन्य राज्यों का उदाहरण भी दिया है, जहां उनके
मुताबिक कम संख्या में होने के बावजूद विपक्षी सदस्य को नेता प्रतिपक्ष
बनाया गया है। इस क्रम में उन्होंने कांग्रेस शासित छ्त्तीसगढ़, आप शासित
दिल्ली, तृणमूल शासित पश्चिम बंगाल, भाजपा शासित उत्तर प्रदेश के उदाहरण
दिए हैं।

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