अन्ना बेचारे / विष्णु गुप्त
अन्ना बेचारे है, मोहरे बन गये
साख समाप्त, भीड के लिए तरसे….
अन्ना कभी सधर्ष के प्रतीक नहीं रहे। अन्ना को हमेशा दूसरी शक्ति सक्रिय और आंदोलित करती रही। विज्ञान में जिस प्रकार से जीव एचईएलएमआईएनटीएचएस परजीवी होता है, उसी प्रकार अन्ना परजीवी है।
उनकी पिछडी भूख हडताल इसलिए सफल हुई थी कि अप्रत्यक्ष उनके साथ एक बडी शक्ति खडी थी और उस समय भ्रष्टाचार की अनेक कहानियां लोगों को आंदोलित करने के लिए बाध्य कर रही थी। वर्तमान समय में ऐसा कुछ भी नहीं है।
कुछ सेक्यूलर और मुस्लिम परस्ती के लोग अफवाह और झूठ के सहारे अन्ना को बैठा दिया। परिणाम यह हुआ कि न तो भीड जुट पा रही है और न ही आक्रोश का उफान है। अन्ना अगर फिर भी नहीं समझे तो दुष्परिणाम भी झेलेगे, उनकी विश्वसनीयता भी जायेगी। काठ की हाडी दुबारा नहीं चढती है। आप समझे या नहीं। समझ गये तो राय दीजिये।